जयपुर: 2025 इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आईजेआर) आज जारी हुई, जो भारत में न्याय व्यवस्था पर राज्यों की रैंकिंग बताती है। इसमें राजस्थान को कुल मिलाकर 14वां स्थान मिला है (पिछले साल यह 15वें स्थान पर था)। 18 बड़े और मध्यम आकार के राज्यों (जिनकी आबादी एक करोड़ से ज्यादा है) में राजस्थान ने न्यायपालिका में सबसे ज्यादा सुधार किया है। यह 2022 में 17वें स्थान से इस साल 6वें स्थान पर पहुंच गया है। शीर्ष स्थान पर कर्नाटक कायम है, इसके बाद आंध्र प्रदेश (2022 में 5वें से दूसरा), तेलंगाना (तीसरा), और केरल (छठा) स्थान पर हैं। छोटे राज्यों (1 करोड़ से कम आबादी) में सिक्किम ने फिर से पहला स्थान हासिल किया, इसके बाद हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश हैं।
द इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आईजेआर) की शुरूआत टाटा ट्रस्ट्स ने की थी और उसकी पहली रैंकिंग 2019 में प्रकाशित हुई थी। यह रिपोर्ट का चौथा संस्करण है, जिसे सेंटर फॉर सोशल जस्टिस, कॉमन काउज, कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशियेटिव, दक्ष, टीआईएसएस-प्रयास, विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी और आईजेआर के डाटा पार्टनर हाऊ इंडिया लिव्स जैसे भागीदारों के साथ मिलकर बनाया गया है।आईजेआर 2025 पिछली तीन रिपोर्ट की तरह परिमाण के आधार पर 24 महीने हुए कठिन शोध के माध्यम से अनिवार्य सेवाओं की प्रभावी आपूर्ति के लिये न्याय की आपूर्ति करने वाली संरचनाओं को सक्षम बनाने में राज्यों का प्रदर्शन आंकती है। यह रिपोर्ट न केवल विभागीय आंकड़ों को एकत्र करती है, बल्कि न्याय वितरण की चार प्रमुख संस्थाओं – पुलिस, न्यायपालिका, जेल और विधिक सहायता – को छह मानकों: बजट, मानव संसाधन, कार्यभार, विविधता, अधोसंरचना और रुझानों के आधार पर राज्य-घोषित मानकों की कसौटी पर जांचती है।
इस संस्करण में 25 राज्य मानवाधिकार आयोगों की क्षमताओं का भी पृथक मूल्यांकन किया गया है (अधिक जानकारी के लिए एसएचआरसी ब्रीफ देखें)। साथ ही दिव्यांगजनों के लिए न्याय तक पहुंच और मध्यस्थता विषय पर विशेष निबंध भी शामिल हैं। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट पर चर्चा करते हुए, जस्टिस (रिटायर्ड) मदन बी. लोकुर ने कहा, “हम न्याय प्रणाली की अग्रिम पंक्ति – जैसे पुलिस थानों, पैरालीगल वॉलंटियर्स और जिला अदालतों – को पर्याप्त संसाधन और प्रशिक्षण देने में विफल रहे हैं। इसी कारण जनता का भरोसा टूटता है… यह संस्थाएं समान न्याय की हमारी प्रतिबद्धता का प्रतिरूप होनी चाहिए। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट का चौथा संस्करण दर्शाता है कि जब संसाधनों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता, तो सुधार सीमित रह जाते हैं।
दुर्भाग्यवश, न्याय पाने का बोझ आज भी उस व्यक्ति पर है जो न्याय मांग रहा है, न कि उस राज्य पर जो उसे प्रदान करना चाहिए।” इंडिया जस्टिस रिपोर्ट की चीफ एडिटर सुश्री माया दारुवाला ने कहा, ‘’भारत एक लोकतांत्रिक और कानून से चलने वाले देश के तौर पर सौ साल पूरे करने की ओर बढ़ रहा है। लेकिन यदि न्याय प्रणाली में सुधार तय नहीं होंगे, तो कानून के राज और समान अधिकारों का वादा खोखला रहेगा। सुधार अब विकल्प नहीं, आवश्यकता है। संसाधनों से संपन्न, संवेदनशील न्याय प्रणाली एक संवैधानिक अनिवार्यता है, जिसे हर नागरिक के लिए रोज़मर्रा की सच्चाई बनना चाहिए। ।‘’