अंतर्राष्ट्रीय दिवसों की श्रृंखला में हर साल 26 अप्रैल को विश्व बौद्धिक संपदा दिवस मनाया जाता है। विश्व बौद्धिक संपदा दिवस, 2024 की थीम नवाचार और रचनात्मकता के साथ हमारे साझा भविष्य का निर्माण रखी गई है। यह दिवस आईपी कार्यालयों, उद्यमों और अन्वेषकों को नए नवाचारों के बारे में चर्चा करने और एक-दूसरे से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है जो दुनिया को आकार देने और लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में मदद करेगा।
बौद्धिक संपदा (आईपी) का अर्थ संपत्ति से है, जो बुद्धिमत्ता से सृजित हुई हो जैसे कि आविष्कार, पुस्तकें, चित्रकला, गीत, प्रतीक चिह्न, नाम, चित्र, या व्यापार में इस्तेमाल किया गया डिजाइन आदि। आईपी ऐसी संपत्ति है जिसे छुआ या देखा नहीं जा सकता है और यह व्यक्ति की बुद्धिमत्ता, कड़ी मेहनत और कौशल का उत्पाद है। इस दिन की शुरुआत विश्व बौद्धिक संपदा संगठन द्वारा साल 2000 में दुनिया भर में नवाचार और रचनात्मकता को बढ़ावा देने में बौद्धिक संपदा अधिकारों पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क और डिज़ाइन की भूमिका के बारे में जागरूकता फैलाने और रोजमर्रा के जीवन पर रचनाकारों द्वारा समाज के विकास में किए गए योगदान को बढ़ावा देने के लिए की गई थी।
देश और दुनियां में आज बौद्धिक संपदा का महत्व तेजी से बढ़ता जा रहा है। यह ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था का आधार है। अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में इसका महत्व होने के कारण यह उद्यमों की प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए उत्तरोत्तर प्रासंगिक व महत्वपूर्ण होती जा रही है। मनुष्य अपनी बुद्धि से कई तरह के आविष्कार और नई रचनाओं को जन्म देता है। उन विशेष आविष्कारों पर उसका पूरा अधिकार भी है लेकिन उसके इस अधिकार का संरक्षण हमेशा से चिंता का विषय भी रहा है। यहीं से बौद्धिक संपदा और बौद्धिक संपदा अधिकारों की बहस प्रारंभ होती है।
यदि हम मौलिक रूप से कोई रचना करते हैं और इस रचना का किसी अन्य व्यक्ति द्वारा गैर कानूनी तरीके से अपने लाभ के लिये प्रयोग किया जाता है तो यह रचनाकार के अधिकारों का स्पष्ट हनन है। व्यक्तियों को उनके बौद्धिक सृजन के परिप्रेक्ष्य में प्रदान किये जाने वाले अधिकार ही बौद्धिक संपदा अधिकार कहलाते हैं। वस्तुतः ऐसा समझा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति किसी प्रकार का बौद्धिक सृजन (जैसे साहित्यिक कृति की रचना, शोध, आविष्कार आदि) करता है तो सर्वप्रथम इस पर उसी व्यक्ति का अनन्य अधिकार होना चाहिये। चूँकि यह अधिकार बौद्धिक सृजन के लिये ही दिया जाता है, इसलिए इसे बौद्धिक संपदा अधिकार कहा जाता है।
बौद्धिक संपदा से अभिप्राय है- नैतिक और वाणिज्यिक रूप से मूल्यवान बौद्धिक सृजन। बौद्धिक संपदा अधिकार प्रदान किये जाने का यह अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिये कि अमुक बौद्धिक सृजन पर केवल और केवल उसके सृजनकर्त्ता का सदा-सर्वदा के लिये अधिकार हो जाएगा। यहाँ पर ये बताना आवश्यक है कि बौद्धिक संपदा अधिकार एक निश्चित समयावधि और एक निर्धारित भौगोलिक क्षेत्र के मद्देनज़र दिये जाते हैं। बौद्धिक संपदा अधिकारों का मूल उद्देश्य मानवीय सृजनशीलता को प्रोत्साहन देना है। बौद्धिक संपदा अधिकारों का क्षेत्र व्यापक होने के कारण यह आवश्यक समझा गया कि क्षेत्र विशेष के लिये उसके संगत अधिकारों एवं संबद्ध नियमों आदि की व्यवस्था की जाए। भारत सरकार ने भारतीय क्षेत्र में बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा के लिए, वैधानिक, प्रशासनिक और न्यायिक ढांचा स्थापित किया है।
अमेरिका चैंबर्स ऑफ कॉमर्स की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा सूचकांक 2023 में भारत 55 प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में 42वें स्थान पर है। रिपोर्ट के अनुसार भारत उन उभरते बाज़ारों का नेतृत्त्व करने हेतु सक्षम है जो आईपी संचालित नवाचार के माध्यम से अपनी अर्थव्यवस्था को बदलना चाहते हैं। अंतर्राष्ट्रीय आईपी सूचकांक में अमेरिका सबसे ऊपर है, इसके बाद यूनाइटेड किंगडम और फ्राँस का स्थान है। गौरतलब है गति भले ही धीमी हो मगर भारत द्वारा किसी भी देश की तुलना में अपनी रैंकिंग में समग्र वृद्धि दर्ज की गई है। देश की इस वृद्धि को बनाए रखने के लिये भारत को अपने समग्र बौद्धिक संपदा ढाँचे में परिवर्तनकारी बदलाव लाने की दिशा में अभी और काम करने की आवश्यकता है।
इतना ही नहीं मज़बूत बौद्धिक संपदा मानकों को लगातार लागू करने के लिये गंभीर कदम उठाए जाने की भी ज़रूरत है। संयुक्त राष्ट्र संघ की औद्योगिक विकास संस्था ने अपने एक अध्ययन में यह प्रमाणित किया है कि जिन देशों की बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था सुव्यवस्थित है वहाँ आर्थिक विकास तेज़ी से हुआ है। भारत को ‘पेटेंट, डिजाइन, ट्रेडमार्क्स और भौगोलिक संकेतक महानियंत्रक को चुस्त एवं दुरुस्त बनाने की आवश्यकता है।
-बाल मुकुन्द ओझा