घरेलू जलप्रदाय का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है भूजल

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भूजल घरेलू जल प्रदाय का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। भारत में घरेलू उपयोग के लिए ग्रामीण जल प्रदाय के 80 प्रतिशत भाग की पूर्ति भूजल से होती है। पेयजल की उपादेयता स्पष्ट है। लेकिन यह घरेलू उपयोग के रूप में भूजल की उपयोगिता का एक हिस्सा भर है।

शहरों व गांवों में स्थित कुएं, के पानी का उपयोग ही घरेलू कामों में होता है। देश में गर्मी के साथ ही जल संकट ने सरकार और देशवासियों की चिंता बढ़ा दी है। एक रिपोर्ट के अनुसार बाह्य स्रोत के अभाव में हम लगातार भूमिगत जल पर निर्भर होते जा रहे हैं इस कारण भूमिगत जल प्रत्येक वर्ष औसतन एक फीट की दर से नीचे खिसकता जा रहा है

इससे उत्तर भारत के ही करीब 15 करोड़ लोग भयंकर जल संकट से जूझ रहे हैं। भूमिगत जल के अन्धाधुन्ध दोहन का परिणाम है की आज देश के एक चौथाई ब्लॉक डार्क जोन में आ चुके हैं और यह संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। बढ़ते भूजल निकासी के फलस्वरूप न केवल पानी की गुणवत्ता में गिरावट आई है बल्कि अतिदोहित ब्लॉकों की संख्या में भी वृद्धि हुई है।

देश में एक साल में जमीन के अंदर जाने वाली पानी का कुल मात्रा का 60.08 प्रतिशत जल निकाल लिया जाता है। 2022 की मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार, सम्पूर्ण देश के लिए कुल वार्षिक भूमि जल री-चार्ज 437.60 अरब घन मीटर है तथा सम्पूर्ण देश में वार्षिक रूप से 239.16 अरब घन मीटर भूमि जल निकाला गया। रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल 7,089 मूल्यांकन इकाइयों में से 1,006 इकाइयों को अति- दोहन की श्रेणी में रखा गया है। 2017, मूल्यांकन आंकड़ों की तुलना में देश में 909 मूल्यांकन इकाइयों में भूमि जल परिस्थिति में सुधार इंगित करता है।

पेयजल का मुख्य स्रोत भूगर्भ जल ही है। भूजल वह जल होता है जो चट्टानों और मिट्टी से रिस जाता है और भूमि के नीचे जमा हो जाता है। जिन चट्टानों में भूजल जमा होता है, उन्हें जलभृत कहा जाता है। भारी वर्षा से जल स्तर बढ़ सकता है और इसके विपरीत, भूजल का लगातार दोहन करने से इसका स्तर गिर भी सकता है। एक सर्वेक्षण अनुसार धरती का तीन चौथाई हिस्सा पानी से ढका हुआ है अर्थात लगभग 71 प्रतिशत पानी धरती के ऊपर मौजूद है और 1.6 प्रतिशत पानी धरती के नीचे नीचे है।

जो पानी धरती के ऊपर मौजूद है, वह पानी पीने लायक नहीं है। शेष 3 प्रतिशत पानी पीने लायक है, जिसमें से 2.4 प्रतिशत पानी उत्तरी और हिस्से और ग्लेशियर में बर्फ के रूप में जमा हुआ है। सिर्फ 0.6 प्रतिशत पानी ही है, जो नदी और तालाब में मौजूद है जो पीने लायक है। यही 0.6 प्रतिशत पानी बढ़ती हुई आबादी और प्रदूषण के कारण पर्याप्त नहीं है, इसलिए धरती के नीचे जो पानी मौजूद है, उस पानी की भी बहुत ज्यादा आवश्यक ता है।

देश अनेक क्षेत्रों में भूजल की समस्या का हल लाने के लिए मोदी सरकार ने अटल भूजल योजना प्रारम्भ की है। इस योजना को तेजी से क्रियान्वित किया जा रहा है। केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, देश के 6584 भूजल ब्लॉकों में से 1034 ब्लॉकों का बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया गया है। इन ब्लॉकों के भूजल का वार्षिक उपभोग इनके पुनर्भरण से ज्यादा रहा। इसे डार्क जोन कहा जाता है।

इसके अलावा 934 ब्लॉक ऐसे हैं जिनमें पानी का स्तर कम हो रहा है, लेकिन उनका पुनर्भरण नहीं किया जा रहा। ऐसे ज्यादातर ब्लॉक पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में हैं। गौरतलब है देश के 256 जिलों के 1500 ब्लॉक को जलस्रोतों के जरूरत से ज्यादा दोहन या अन्य कारणों से जलसंकट के लिहाज से गंभीर श्रेणी में रखा गया है।

इन जिलों में भूजल को रीचार्ज करने के लिये जलशक्ति अभियान शुरु किया गया है। भूजल की वर्तमान स्थिति को सुधारने के लिये भूजल का स्तर और न गिरे इस दिशा में काम किए जाने के अलावा उचित उपायों से भूजल संवर्धन की व्यवस्था हमें करनी होगी।

पानी की कमी के चलते निरन्तर खोदे जा रहे गहरे कुओं और ट्यूबवेलों द्वारा भूमि भूमिगत जल का अन्धाधुन्ध दोहन गत जल का अन्धा धुन्ध दोहन होने से भूजल का स्तर निरन्तर घटता जा रहा है। देश में जल संकट का एक बड़ा कारण यह है कि जैसे-जैसे सिंचित भूमि का क्षेत्रफल बढ़ता गया वैसे-वैसे भूगर्भ के जल के स्तर में गिरावट आई है।

भूजल दोहन के अंधाधुंध दुरुपयोग को यदि समय रहते रोका नहीं गया, तो आने वाली पीढियों को इसके भयानक परिणाम भुगतने होंगे। सरकार को जनता में जागरूकता लाने के लिए विशेष प्रबन्ध और उपाय करने होंगे।

-बाल मुकुन्द ओझा

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