प्रकृति के अंधाधुंध दोहन से संकट में है मानव जीवन

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मानव और प्रकृति के बीच एक महत्वपूर्ण और आत्मीय संबंध है। प्रकृति और मानव एक दूसरे के पूरक हैं, जो एक दूस रे को पोषित और संरक्षित करते हैं। प्रकृति हमें जल, वायु, भोजन, आश्रय, औषधि और अन्य संसाधन प्रदान करती है, जो हमारे जीवन के लिए आवश्यक हैं। मानव प्रकृति की रक्षा और संवर्धन कर सकते हैं, जो उसकी स्वास्थ्य और समृद्धि को बढ़ाता है।

मनुष्य विकास के नाम पर प्रकृति का दोहन करता रहा है, जिसके कारण वन्यजीवों के साथ-साथ प्रकृति के अस्तित्व के लिए संकट खड़ा हो गया है। जल-जंगल-जमीन प्रकृति की अनमोल धरोहर हैं, इनके बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना अधूरी है। प्रकृति से हमारा तात्पर्य जल, जंगल और जमीन से है। जल, जंगल और जमीन के बिना प्रकृति संरक्षण की बात अधूरी है। विश्व में सबसे समृद्ध देश वही हुए हैं, जहाँ यह तीनों तत्व प्रचुर मात्रा में हों।

पृथ्वी पर रहने वाले तमाम जीव जंतुओं, पेड़-पौधों और प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिए हर स्तर पर प्रयास जरुरी है। प्रकृति की रक्षा, उसके संरक्षण और विलुप्ति की कगार पर पहुंच रहे जीव-जंतु तथा वनस्पति की रक्षा का संकल्प लिया जाता है। प्रकृति का संरक्षण प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से सबंधित है। इनमें मुख्यतः पानी, धूप, वातावरण, खनिज, भूमि, वनस्पति और जानवर शामिल हैं। प्रकृति हमें पानी, भूमि, सूर्य का प्रकाश और पेड़-पौधे प्रदान करके हमारी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करती है।

इन संसाधनों का उपयोग विभिन्न चीजों के निर्माण के लिए किया जा सकता है जो निश्चित ही मनुष्य के जीवन को अधिक सुविधाजनक और आरामदायक बनाते हैं। हम लगातार प्रकृति का दोहन करते जा रहे हैं जिससे मानव जीवन संकट में पड़ गया है।

जल, जंगल और जमीन के बिना प्रकृति अधूरी है। जल को व्यर्थ में बहा रहे हैं जंगलों को काट रहे हैं और जमीन पर जहरीले कीटनाशक का उपयोग करके उसकी उर्वरक क्षमता और उपजाऊ शक्ति को कमजोर कर रहे हैं। हम एक अर्से से प्रकृति दिवस मना रहे हैं और लोगों को प्रकृति संरक्षण का संदेश दे रहे हैं।

लेकिन इसके बावजूद प्रकृति पर मंडराता खतरा जस का तस बना हुआ है। सबसे बड़ा खतरा तो इसे ग्लोबल वार्मिंग से है। धरती के तापमान में लगातार बढ़ते स्तर को ग्लोबल वार्मिंग कहते है। वर्तमान में ये पूरे विश्व के समक्ष बड़ी समस्या के रुप में उभर रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि धरती के वातावरण के गर्म होने का मुख्य कारण का ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि है। इसे लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है जिससे प्रकृति पर खतरा बढ़ता जा रहा है।

ये आपदाएँ पृथ्वी पर ऐसे ही होती रहीं तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी से जीव-जन्तु व वनस्पति का अस्तिव ही समाप्त हो जाएगा। कहते है प्रकृति संरक्षित होगी तो मानव जीवन भी सुरक्षित होगा। प्रकृति हमारी धरोहर है, इसकी रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है। प्रकृति ने हमें जीव जंतुओं सहित सूर्य, चाँद, हवा, जल, धरती, नदियां, पहाड़,हरे-भरे वन और खनिज सम्पदा धरोहर के रूप में दी हैं।

मनुष्य अपने निहित स्वार्थ के कारण प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग कर रहा है। बढ़ती आबादी की समस्या के लिए आवास समस्या को हल करने के लिए हरे-भरे जंगलों को काट कर ऊंची-ऊंची इमारतें बनाई जा रही हैं।

वृक्षों के कटने से वातावरण का संतुलन बिगड़ गया है और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या पूरे विश्व के सामने भयंकर रूप से खड़ी है। खनिज-सम्पदा का अंधाधुंध प्रयोग किया जा रहा है। जीव-जंतुओं का संहार किया जा रहा है, जिसके कारण अनेक दुर्लभ प्रजातियां लुप्त होती जा रही हैं। प्रकृति का संरक्षण हमारे सुनहरे भविष्य का आधार है।

मनुष्य जन्म से ही प्रकृति और पर्यावरण के सम्पर्क में आ जाता है। प्राणी जीवन की रक्षा हेतु प्रकृति की रक्षा अति आवश्यक है। वर्तमान समय में विभिन्न प्रजाति के जीव जंतु, वनस्पतियां और पेड़-पौधे विलुप्त हो रहे हैं जो प्रकृति के संतुलन के लिए बहुत ही भयावह है।

मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समय समय पर प्रकृति का दोहन करता चला आ रहा है। अगर प्रकृति के साथ खिलवाड़ होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमें शुद्ध पानी, हवा, उपजाऊ भूमि, शुद्ध पर्यावरण , वातवरण एवं शुद्ध वनस्पतियाँ नहीं मिल सकेंगी।

इन सबके बिना हमारा जीवन जीना मुश्किल हो जायेगा। हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम पृथ्वी और उसके वातावरण को बचाने का प्रयास करेंगे। हम पर्यावरण के प्रति न सिर्फ जागरूक हो बल्कि उसके लिए कुछ करें भी। प्रकृति को संकट से बचाने के लिए स्वयं अपनी ओर से हमें शुरूआत करनी चाहिए। पानी को नष्ट होने से बचाना चाहिए। वृक्षारोपण को बढ़ावा देना चाहिए। अपने परिवेश को साफ-स्वच्छ रखना चाहिए। प्रकृति के सभी तत्वों को संरक्षण देने का संकल्प लेना चाहिए।

बाल मुकुन्द ओझा

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