क्या ‘इंडिया ‘गठबंधन’ के टूटने की शुरुआत हालिया  विधानसभा  चुनावों  से ही होगी   ?

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देश में अगले साल होने वाले आम चुनाव में एनडीए को हराने के लिए कई विपक्षी पार्टियां एक साथ मैदान में उतरने का फैसला कर चुकी है। कुछ महीने पहले ही 28 विपक्षी दलों ने बेंगलुरु में बैठक कर एक नए एलायंस की शुरुआत भी की थी जिसका नाम INDIA ‘इंडिया’ दिया गया। इंडिया गठबंधन बनने के बाद से ही इसे ऐसे पेश किया जा रहा है जैसे ये आने वाले आम चुनाव में भाजपा  के लिए चुनौती बन सकता है। लेकिन इस बात में भी कोई दोराय नहीं है कि जब से इस गठबंधन की शुरुआत हुई है तब से ही इसके भीतर रार की खबरें आम हो गई हैं। कभी प्रधानमंत्री  पद को लेकर तो कभी सीट बंटवारे को लेकर, अलग-अलग मंचो पर इस गठबंधन के नेता एक दूसरे से नाराजगी जताते नजर आते रहे हैं।

इसका ताजा उदाहरण मध्यप्रदेश में 15 अक्टूबर को कांग्रेस की पहली लिस्ट जारी होने के बाद भी देखा गया। दरअसल 15 अक्टूबर को कांग्रेस ने 3 राज्यों छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मध्य प्रदेश में उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी की थी। साथ ही ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर सकती है।

लेकिन कांग्रेस ने अपनी पहली लिस्ट में उन सात सीटों में से चार पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी, जहां अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली पार्टी पहले ही लिस्ट में उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी थी। कांग्रेस की इस लिस्ट ने न सिर्फ मध्यप्रदेश  में कांग्रेस-सपा गठबंधन के अफवाहों पर फुलस्टाप लगा दिया बल्कि समाजवादी पार्टी के नेताओं को भी नाराज कर दिया है। 15 अक्टूबर को ही अखिलेश यादव के करीबी माने जाने वाले एक वरिष्ठ नेता ने कांग्रेस को लेकर अपनी नाराजगी जताई थी।समाजवादी नेता ने कांग्रेस पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस चाहती ही नहीं की भाजपा  हारे। उन्होंने एक रिपोर्ट में ये भी बताया, ‘सपा ने कांग्रेस पार्टी को बताया था कि उनकी पार्टी मध्य प्रदेश में 10 सीटें चाहती है। लेकिन कांग्रेस ने कम सीटों की पेशकश की थी। फिर अचानक ही इतने सारे उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया गया।’ इन्ही कारणों से  मध्यप्रदेश  में कांग्रेस औरसमाजवादी के बीच तलवार खिंची हुई हैं। अब तक 19 सीटों पर दोनों दलों के उम्मीदवार आमने-सामने हैं। मध्यप्रदेश  में समाजवादी के पिछले चुनावी प्रदर्शनों को देखते हुए कांग्रेस ने उसके सीटों के दावों को भाव नहीं दिया है और राह अलग कर ली है। ऐसे में नजरें इस पर टिक गई हैं कि समाजवादी की अलग दावेदारी कांग्रेस पर क्या असर डालेगी?

कांग्रेस की इस लिस्ट के बाद ये तो तय हो गया है कि मध्य प्रदेश के चुनाव मैदान में दोनों ही पार्टियां अकेले उतरेगीं। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या इसका असर लोकसभा चुनाव के लिए होने वाले सीट बंटवारे पर पड़ेगा, आखिर ‘इंडिया’ गठबंधन में एकता क्यों नहीं बन पा रही है?15 अक्टूबर को कांग्रेस के उम्मीदवारों की लिस्ट के बाद समाजवादी और कांग्रेस में सब ठीक नहीं है ये तो जगजाहिर हो ही चुका है। लेकिन इस रार का असर लोकसभा चुनाव की सीटों पर भी असर डालना शुरू कर चुका है। दरअसल मंगलवार यानी 17 अक्टूबर को समाजवादी प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय कानपुर पहुंचे थे। वहां अखिलेश यादव एक बयान देते हुए सबको चौंका दिया है। उन्होंने कहा कि समाजवादी अपने दम पर चुनाव लड़ेगी, गठबंधन पर कांग्रेस निर्णय ले। अखिलेश यादव ने ये भी कहा कि अगर प्रदेश स्तर पर गठबंधन नहीं होगा तो देश स्तर पर भी नहीं हो सकता है। उत्तरप्रदेश  की लोकसभा सीटों पर गठबंधन कर मैदान में उतरने के सवाल पर अखिलेश कहते हैं कि गठबंधन की बातें और खबरें चली है, लेकिन खबरों में क्या चलता है इससे हमें फर्क नहीं पड़ता।समाजवादी पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक को साथ लेकर 80 सीटों पर भाजपा  को हराने की रणनीति तैयार करेगी।

अखिलेश यादव के बयान के तुरंत बाद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि उनकी पार्टी (कांग्रेस) अखिलेश यादव की शर्तों पर नहीं, अपने संकल्पों पर चुनाव लड़ेगी। उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस की तैयारी उत्तर प्रदेश के सभी 80 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की है। सीटों के बंटवारे और गठबंधन का फैसला हाईकमान लेगा।

गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी  अध्यक्ष पहले ही एलान कर चुके थे  कि उनकी पार्टी मिजोरम को छोड़कर बाकी चार राज्यों में भी चुनाव लड़ेगी। मध्य प्रदेश  में समाजवादी पार्टी  पहले ही अपने छह उम्मीदवारों के नामों का एलान कर चुकी थी  तो वहीं अब  छत्तीसगढ़ को लेकर भी तैयारी की जा रही है। समाजवादी पार्टी  ने छत्तीसगढ़ में  भी 40 निर्वाचन क्षेत्रों की सूची    तैयार की है, जहां से पार्टी ने चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है।

समाजवादी पार्टी  अध्यक्ष अखिलेश यादव चाहते हैं कि अब उत्तर  प्रदेश से बाहर भी पार्टी का विस्तार किया जाए और समाजवादी पार्टी  को राष्ट्रीय स्तर की पार्टी में बदला जाए। पिछले काफी समय से वो इसकी कोशिशें भी करते आ रहे हैं। 2024 से पहले समाजवादी पार्टी  अब विपक्षी दलों के  इंडिया गठबंधन का हिस्सा भी बन गई । ऐसे में वो दूसरे राज्यों में भी अपनी ताकत को दिखाकर 20 24  में कुछ ज्यादा सीटें हासिल करना चाहेगी।

देखा जाय तो वर्ष 2018 के चुनाव में पार्टी ने 52 सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, हालांकि उसे सिर्फ एक सीट मिली थी। वर्ष 2013 में पार्टी ने 164 सीट पर किस्मत आजमाई थी, पर पार्टी किसी भी सीट पर जीत दर्ज करने में विफल रही थी। अगस्त महीने में मध्यप्रदेश में विधायक रह चुके लक्ष्मण तिवारी ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी। वहीं सतना के जिला कांग्रेस कमेटी के महासचिव संजय सिंह भी समाजवादी पार्टी  में शामिल हुए थे। जाहिर-सी बात है कि मध्यप्रदेश में समाजवादी पार्टी का एक्टिव होना कहीं ना कहीं कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।इसके पहले  समाजवादी पार्टी  ने ऐलान किया था कि आगामी राजस्थान विधानसभा चुनाव में राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ विधानसभा से पूर्व विधायक सूरजभान धानका समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी होंगे। अखिलेश ने सोशल मीडिया पर लिखा- ‘घोसी की घोषणा’ पूरे देश के लिए संदेश बन गई है।

वहीं, राजस्थान में भी समाजवादी पार्टी इस बार पूरी तैयारी के साथ चुनाव मैदान में उतरने की बात कह रही है। राजस्थान के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता और जनता दल के राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष रहे अर्जुन देथा ने अखिलेश यादव से लखनऊ में मुलाकात की। चुनावी रणनीति पर चर्चा की।जबकि छत्तीसगढ़ में भी पार्टी चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। इसे अखिलेश यादव के पॉलिटिकल स्ट्रेटजी भी माना जा रहा है क्योंकि अगर इन राज्यों में कांग्रेस समाजवादी पार्टी के साथ सीटों पर कोई तालमेल नहीं करती है तो उसका सीधा असर उत्तर प्रदेश में भी सीट बंटवारे पर पड़ेगा।

वर्ष 2018 के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने छत्तीसगढ़ में 85 सीट, मध्य प्रदेश में 208 सीट, राजस्थान में 142 सीट और तेलंगाना में 41 सीट पर अपनी किस्मत आजमाई थी। पर पार्टी किसी राज्य में कोई सीट जीतने में विफल रही थी। हालांकि, 2018 के चुनाव में रालोद ने राजस्थान में एक सीट जीती थी।छत्तीसगढ़ राज्य में अभी कांग्रेस की सरकार है। ऐसे में अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने घोषणा की है कि वो राज्य की सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। आम आदमी पार्टी  आप के मध्य प्रदेश प्रभारी बीएस जून ने कहा कि उनकी पार्टी मध्य प्रदेश  में चुनाव लड़ेगी। रविवार को उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी इस साल के अंत में प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में सभी 230 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। चुनाव के लिए जल्द ही प्रत्याशियों के नामों की सूची जारी करेगी। उन्होंने कहा  था कि मध्य प्रदेश में आम आदमी पार्टी पूरी मुस्तैदी से चुनाव की तैयारी में जुटी है। प्रदेश की सभी 230 विधानसभा सीटों पर हम चुनाव लड़ेंगे और चुनाव जीतेंगे। प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया जारी है। जल्द ही प्रत्याशियों के नामों की सूची भी जारी कर दी जाएगी।

उन्होंने कहा कि प्रत्याशी चयन में सिर्फ सर्वेक्षण ही टिकट देने का मापदंड होगा। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश के हर जिले में हम ‘परिवर्तन यात्रा’ निकाल रहे हैं। जिसका समापन चार अगस्त को होगा। जून ने दावा किया कि ‘परिवर्तन यात्रा’ के दौरान लोगों का आम आदमी पार्टी के प्रति एक जुड़ाव दिख रहा है और हमें अपार जनसमर्थन मिल रहा है।

आप पार्टी का मानना है  कि जनता मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी  और कांग्रेस का विकल्प चाहती है और उसे ‘आप’विकल्प के तौर पर दिख रही है। दिल्ली से आप के विधायक जून ने कहा कि मध्य प्रदेश में हम बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने दावा किया कि मध्य प्रदेश में जनता ‘आप’ के साथ है और पार्टी की मध्य प्रदेश में सरकार बनेगी। सरकार बनने के बाद दिल्ली की तरह ही मध्य प्रदेश में हम शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी की सुविधाएं लोगों को देंगे।

इस साल के अंत में होने वाले मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी सभी 230 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। आम आदमी पार्टी ने लोगों को जुड़ने के लिए मिस कॉल नंबर भी जारी किया हुआ है। इसके साथ ही ये भी वादा किया है कि जो फ्री सुविधाएं पंजाब और दिल्ली में आप सरकार दे रही है। उसे मध्य प्रदेश में भी दिया जाएगा।

इस बयान से आपको समझ में आ गया होगा कि मध्य प्रदेश में भी आम आदमी पार्टी उसी रणनीति के साथ उतरने की तैयारी में है जिसके चलते वह पंजाब और दिल्ली में सत्ता के सिंहासन पर पहुंची और इसी के दम पर वह गुजरात विधानसभा में एंट्री करवाई। वैसे, आम आदमी पार्टी के भी  मध्य प्रदेश की सभी सीटों पर ऐलान के साथ ही कांग्रेस की टेंशन डबल  बढ़ गई है। 2018 के विधानसभा चुनाव में जोरदार टक्कर देने वाली कांग्रेस खेमे में ये आशंका है कि कहीं आम आदमी पार्टी गुजरात की तरह ही खेल न बिगाड़ दे। यह सिर्फ विधानसभा चुनाव के लिए नहीं है, बल्कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को झटका दे सकता है। राजस्थान में भी चुनाव लड़ने का एलान आप पहले ही कर चुकी है।

आप के इन ऐलानों के बाद एक सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या आम आदमी पार्टी कांग्रेस को खत्म करके उसकी जगह लेने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस नेता आप पर भाजपा  को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते हैं। हालांकि, इसका उलटा आरोप भाजपा  की तरफ से भी लगाए जाते हैं, लेकिन आम आदमी के अब तक के प्रदर्शन को देखें तो इसके उभरने से ज्यादा नुकसान कांग्रेस को ही हुआ है। दिल्ली हो या फिर पंजाब, दोनों राज्यों में आम आदमी पार्टी कांग्रेस को हटाकर ही सत्ता के शीर्ष पर पहुंची है। इसके साथ ही गोवा, उत्तराखंड, हिमाचल या फिर गुजरात हो, आप ने जिन प्रदेशों में ताल ठोकी वहां कांग्रेस प्रमुख विपक्षी दल के रूप में है।

यदि 2023  विधानसभा चुनावों में  ‘इंडिया ‘ गठबंधन के घटक दलों का यही रवैया रहा तो कह नहीं सकते कि 2024 के   लोकसभा चुनाव में यह गठबंधन कितना टिकेगा ।

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