क्या राजस्थान में पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा के भाजपा में आने पर भाजपा को फायदा होगा ?

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राजस्थान सहित पांच राज्यों में इस साल के अंत में चुनाव होने हैं। ऐसे में भाजपा  हो या कांग्रेसदोनों ही पार्टियां इस चुनाव में अपनी ताकत झोंक रही हैं। ज्यादा  से ज्यादा सीटें पाने का गणित कुछ ऐसा खेला जा रहा है कि हर कद्दावर नेता को पार्टियां अपनी ओर खींचने में लगी हैं।राजस्थान में भी कुछ ऐसा ही चल रहा है। राजस्थान विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले नागौर लोकसभा सीट से कांग्रेस की पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा के भाजपा  में शामिल होने के बाद राजनीतिक नफे-नुकसान को लेकर कयासबाजी हो रही है। ज्योति कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे नाथूराम मिर्धा की पोती हैं। नाथूराम मिर्धा की कांग्रेस और राज्य की राजनीति में अच्छी पकड़ थी। वह सांसद और विधायक रहे। मिर्धा परिवार दशकों तक मारवाड़ की राजनीति की धुरी भी रहा है। पेशे से डॉक्टर ज्योति मिर्धा ने 2009 में नागौर से लोकसभा चुनाव जीतालेकिन उसके बाद वह लगातार 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव हार चुकी हैं।

दोनों ही चुनाव में ज्योति की टक्कर नागौर में आरएलपी  प्रत्याशी हनुमान बेनीवाल से हुई थी। बेनीवाल को भाजपा  का समर्थन मिला था। अब बेनीवाल के लिए भाजपा  का समर्थन पाना मुश्किल है। ऐसे में भाजपा  का दामन थामने के बाद ज्योति ने हनुमान बेनीवाल को उनके सामने चुनाव लड़ने की खुली चुनौती दी है।ज्योति का मानना है पिछले दोनों ही चुनावों में हनुमान बेनीवाल की जीत इसलिए हुई क्योंकि उन्हें भाजपा  का समर्थन मिला था। अब 2024 लोकसभा चुनाव में ज्योति भाजपा  से चुनाव लड़ सकती हैं। हनुमान बेनीवाल और ज्योति के बीच लंबे समय से वर्चस्व की जंग चल रही है। इसे देखते हुए अब हनुमान बेनीवाल का भाजपा  से गठबंधन करना भी मुश्किल है। साथ ही ज्योति ये चुनाव जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकने से भी पीछे नहीं हटेंगी।

दो चुनाव हारने के बाद अब ज्योति ने भाजपा  ज्वाइन कर ली तो टिका टिपण्णी तो होनी ही थी । अपने पाला बदलने को सही ठहराते हुएज्योति ने राजस्थान में कांग्रेस नेतृत्व पर – मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम लिए बिना – क्षेत्रीय दलों को बढ़ावा देने और उनकी अनदेखी करने का आरोप लगाया। उनका परोक्ष संदर्भ बेनीवाल की ओर थाजिन्होंने अब निरस्त हो चुके केंद्रीय कृषि कानूनों को लेकर भाजपा से नाता तोड़ लिया था और धीरे-धीरे उन्हें गहलोत का समर्थन मिल रहा है।

अब भाजपा  के रणनीतिकारों को लगता है कि ज्योति के आने पार्टी विधानसभा चुनाव में कम से कम से 10 सीटें जीत सकती है।ज्योति के दादा नाथूराम मिर्धा बार सांसद और बार विधायक रहे। इसके अलावा नाथूराम केंद्र और राज्य सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। उनकी अपने क्षेत्र में अच्छी पकड़ थी। 1996 में उनका देहांत हो गयालेकिन उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि उनके निधन के 14 साल बाद जब ज्योति मिर्धा ने चुनाव लड़ा तो नाथूराम मिर्धा की पोती होने के नाते उन्हें लोगों का भारी समर्थन मिला।

देखा जाय तो ज्योति मिर्धा के भाजपा  में शामिल होने की कहानी की शुरुआत 14 मई 2023 को उस समय हुईजब नागौर के मेड़ता में उनके दादा और किसान नेता नाथूराम मिर्धा की प्रतिमा का अनावरण उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा किया गया था। उस कार्यक्रम में मंच पर धनखड़ के साथ ज्योति मिर्धारिछपाल मिर्धा और राजस्थान सरकार के मंत्री लालचंद कटारिया भी मौजूद थे। ज्योति मिर्धा उपराष्ट्रपति के साथ ही दिल्ली गई थीं।

ज्योति मिर्धा के आने से भाजपा  10 सीटों का फायदा नजर आ रहा है। खींवसर की सीट पर हनुमान बेनीवाल का दबदबा रहा है। इस बार खुद बेनीवाल के खींवसर से विधानसभा चुनाव लड़ने की चर्चाएं हैं। ऐसे में ज्योति मिर्धा के साथ भाजपा  ज्वाइन करने वाले उनके करीबी और रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी सवाई सिंह को टिकट मिला तो फिर बेनीवाल और ज्योति मिर्धा की बीच आर पार की जंग देखने को मिलेगी। ज्योति मिर्धा के भाजपा  में शामिल होने से नागौरराजसमंद व कुचामन डीडवाना जिले की विधानसभा और नागौर व राजसमंद की विधानसभा सीटों पर हो सकता है।

जाटों के प्रभाव वाली इन जिलों की 10 सीटों पर भाजपा  की ताकत बढ़ सकती है। इसके अलावा भाजपा  के नेताओं को हरियाणा की सीमा से जुड़ी झुंझुनू और चूरू सीट पर भी फायदा मिलने की उम्मीद है। ज्योति मिर्धा का ताल्लुक हरियाणा कांग्रेस के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के परिवार से भी है। ज्योति मिर्धा की बहन श्वेता मिर्धा भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हुड्डा की पत्नी हैं। वैसे ज्योति मिर्धा की सास कृष्णा गहलोत भाजपा  की महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुकी हैं। दादा नाथूराम मिर्धा मारवाड़ में जाट समुदाय के सबसे ताकतवर और लोकप्रिय नेता रहे हैं। नाथूराम मिर्धा के निधन के बाद भाजपा  नेता भैरोंसिंह शेखावत ने उनके बेटे भानूप्रकाश मिर्धा को टिकट दिया था। वो भाजपा  से नागौर से सांसद बने थे।

अब भाजपा  के आला नेताओं को उम्मीद है कि मारवाड़ में ज्योति मिर्धा भाजपा  के जाट चेहरे की कमी को पूरा कर सकती हैं। साथ ही मारवाड़ में जाटों के प्रभाव वाली सीटों पर भाजपा  ज्योति मिर्धा से चुनाव प्रचार कराने का भी प्लान तैयार करेगी। महिला आरक्षण बिल लाने वाली भाजपा  राजस्थान में ज्योति मिर्धा को आगे लाकर उनके जाट समुदाय से युवा और महिला चेहरे के तौर पर सामने लाएगी। ज्योति मिर्धा ने बीते दिनों मीडिया से बातचीत करते हुए हनुमान बेनीवाल पर गंभीर आरोप लगाए थे। ज्योति मिर्धा पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बनी हुई है। कहते हैं राजस्थान में जाट और किसान जिस पार्टी के साथ है। वो सत्ता में काबिज होती है। ऐसे में भाजपा  हो या कांग्रेस दोनों ही पार्टियों जाटों और किसानों को लुभाने में लगी है। उनके नेताओं को बड़े पद दिए गए हैं। ज्योति मिर्धा को 2024 लोकसभा चुनाव में लोकसभा का उम्मीदवार भी माना जा रहा है। लेकिन विधानसभा चुनाव में ज्योति मिर्धा की परफॉर्मेंस पर उनके आगे की राजनीति निर्भर करेगी।

हालांकि बताया जाता है  कि ज्योति मिर्धा से भाजपा  की उम्मीदें गलत हैं।  पिछले काफी समय से ज्योति आम जनता से दूर हैं और वो अपने कारपोरेट काम में ही व्यस्त रही  हैं। ऐसे में जनता का ज्योति से जुड़ाव बचा नहीं है। पर कुछ जानकारों का कहना है कि पश्चिमी राजस्थान में जाट और राजपूत की आपस में रंजिश रही है। इन दोनों को काटने का काम किया नाथूराम मिर्धा और कल्याण सिंह राजपूत ने,नाथूराम मिर्धा जाटों के बड़े नेता थे और कल्याण सिंह राजपूतों के बड़े नेता थे। लेकिन जब हनुमान बेनीवाल की राजनीति हुई तो वापस इन दोनों जातियों में टकराव की स्थिति देखी गई। ऐसे में ज्योति मिर्धा इस टकराव को दूर कर सकती हैं। साथ ही मिर्धा परिवार को लोग पसंद भी करते हैं। अब देखना ये होगा कि भाजपा  कालवी परिवार से किसे जोड़ पाती है। क्योंकि 1990 में नागौर और कालवी परिवार का जो गठबंधन हुआ था वो काफी प्रभावी रहा था और दोनों ही परिवार को लोग पसंद भी करते हैं। अगर काल्वी परिवार से किसी को जोड़ लिया जाए तो न सिर्फ नागौर बल्कि पूरे पश्चिमी राजस्थान में इसका असर देखने को मिल सकता है। वहीं हनुमान बेनीवाल जमीनी स्तर के नेता माने जाते हैं जो हर मौकों पर मौजूद रहते हैं। हनुमान बेनीवाल का उस तरह के नेता हैं जो एक समय नाथूराम मिर्धा माने जाते थे। लेकिन कालवी परिवार और मिर्धा परिवार एक होता है तो इसका असर जरुर होगा। हालांकि कालवी परिवार से अभी भाजपा  में कौन शामिल होने वाला है इसके पत्ते नहीं खुले हैं।

बता देंकल्याण सिंह कालवी केंद्र और राज्य सरकार में मंत्री रहे थे। जिनके बेटे लोकेंद्र सिंह कालवी काफी जाने माने नेता रहे हैं। लोकेंद्र सिंह कालवी ने ही करणी सेना बनाई थी।अब उनके बेटे भवानी सिंह कालवी इंटरनेशनल पोलो प्लेयर हैं। ऐसे में पश्चिम में इस परिवार का प्रभाव ज्यादा होने से अगर इस परिवार का कोई सदस्य भाजपा  में शामिल हो जाता है तो इसका सीधा असर देखने को मिलेगा।बताया तो यह भी जाता है  कि लम्बे समय से कांग्रेस सचिन पायलट को इग्नोर कर रही है और  इस बार सचिन पायलट को इग्नोर करना कांग्रेस को भारी पड़ सकता है। वहीं जनता में विधायकों के प्रति भी नाराजगी है।

कुछ जानकर लोग यह भी बताते है कि भाजपा राजस्थान में कांग्रेस के राजनीतिक परिवार से एक नेता पर कब्ज़ा करने की कोशिश कर रही है जबकि वह वंशवाद की राजनीति का विरोध करने का दावा करती है। जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैंभाजपा ऐसे और नेताओं को शामिल कर सकती है और इसके परिणामस्वरूपअपने कुछ वफादार नेताओं को कांग्रेस के हाथों खोना पड़ सकता है।

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