क्या कांग्रेस के लिए कर्नाटक के बाद मध्यप्रदेश में चलेगा बजरंगबाण

ram

कर्नाटक चुनाव के बाद अब सियासत का नया ठिकाना मध्यप्रदेश बन चुका है। जहां हर चुनावी वादों, दावों के साथ सियासत गरमाने वाले मुद्दे आजमाए जा रहे हैं। खासकर वो मुद्दे अब मध्यप्रदेश में जोर-शोर से गूंज रहे हैं, जिन्हें कांग्रेस कर्नाटक में TRY AND TEST कर चुकी है और शायद कांग्रेस यही मानकर चल रही है कि जो मुद्दे वहां बजरंग बाण साबित हुए। वे यहां भी बेड़ा पार लगाएंगे।

कर्नाटक में सत्ता संभालते ही कांग्रेस ने धर्मांतरण संबंधी कानून निरस्त कर दिया। कर्नाटक फार्मूला कांग्रेस के लिए संजीवनी बन कर आया है लेकिन क्या ये फार्मूला मध्यप्रदेश  में भी संजीवनी साबित होगा या यहां कांग्रेस को दूसरा फार्मूला लगाना होगा। इस बात का अंदाजा लगाना फिलहाल कठिन है। लेकिन फिलहाल तो कांग्रेस को कर्नाटक के मुद्दों पर ही भरोसा कर रही है।

मध्यप्रदेश की सियासत में धर्मांतरण की सियासत सुलग ही जाती है। बीते दिनों भोपाल और इंदौर के साथ दमोह जैसे छोटे शहर भी सुर्खियों में आए, तो सियासत भी खूब गरमाई और वार-पलटवार का भी दौर चला है। अब फिर कर्नाटक से बयार चली है। धर्मांतरण के मुद्दे की आग ने भी तेजी पकड़ी, वहीं भाजपा  ने कांग्रेस से पूछा कि क्या ये पीसीसी चीफ कमलनाथ का भी स्टैंड है। गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा ने कांग्रेस का हाथ, जिहादियों का हाथ बता दिया ।

मध्यप्रदेश  की बात की जाए तो पिछले कुछ दिनों में धर्मांतरण की सियासत खूब सुलग रही है फिर चाहे वो दमोह के गंगाजमुना स्कूल का मामला हो या भोपाल और जबलपुर में संदिग्ध आंतकियों की गिरफ्तारी का मामला हो, जाहिर है भाजपा  कर्नाटक में रद्द किए गए धर्मातंरण कानून को एक मौके के तौर पर देख रही है।इधर भाजपा  की आरोपों पर कांग्रेस ने भी पलटवार किया है। कांग्रेस का कहना है भाजपा  नेता कर्नाटक की छोड़े मध्यप्रदेश  की बात करें। क्या कर्नाटक से उठी हवा मध्यप्रदेश  में चिंगारी का काम करेगी। यह समझने के लिए फिलहाल थोड़ा इंतजार करना होगा लेकिन इतना तय है कि कर्नाटक के बाद मध्यप्रदेश  की सियासत में नए सिरे से नैरेटिव सेट करने की कोशिश की जा रही हैं ।

गौरतलब है कि  कमलनाथ 2015 में सांसद थे। तब उन्होंने अपने लोकसभा क्षेत्र छिंदवाड़ा के सिमरिया में भगवान हनुमान की एक विशाल प्रतिमा बनवाई। 101 फीट 8 इंच की ये प्रतिमा मध्य प्रदेश में हनुमान की सबसे ऊंची मूर्ति है। सिमरिया वाले इसी हनुमान मंदिर के पास कमलनाथ राम कथा करवा रहे हैं। कथा करने के लिए उन्होंने बागेश्वर धाम वाले पंडित धीरेंद्र शास्त्री को बुलाया है। तीन दिन की इस राम कथा को यूं तो पूरी तरह धार्मिक बताया जा रहा है, लेकिन चुनावी माहौल में इसके राजनीतिक कारण छिपाए नहीं छिप रहे हैं।

कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में हिंदुत्व के पोस्टर बॉय बन रहे  हनुमान भक्त पंडित धीरेंद्र शास्त्री 4 से 7 अगस्त तक राम कथा करेंगे। सिमरिया वाले हनुमान मंदिर के पास इस कार्यक्रम के लिए तीन विशाल डोम बनाए गए हैं। यहां शनिवार को राम कथा का आयोजन हुआ तो कमलनाथ पूरे परिवार के साथ पहुंचे और वहां आए लोगों को संबोधित भी किया। कमलनाथ मानना है कि भारत कोई आर्थिक शक्ति नहीं है। भारत कोई सैन्य शक्ति नहीं हैं। भारत की सबसे बड़ी शक्ति उसकी आध्यात्मिक शक्ति है।

अपने संबोधन में कमलनाथ ने धीरेंद्र शास्त्री को महाराज कह कर पुकारते है  और उन्हें भारत की आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक बताने लगे है । इस प्रकरण से कांग्रेस की राजनीति को देखने समझने वालों की भौं जरूर चढ़ गई होंगी। धर्मनिर्पेक्षता की बात करने वाली कांग्रेस पार्टी का नेता हिंदू राष्ट्र की खुली वकालत करने वाले शख्स को भारत की आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक बता रहे  है।

दरअसल ये एक बयान नहीं है, बल्कि देश की सबसे पुरानी पार्टी की बदलती रणनीति है। इस नीति के तहत पार्टी हिंदुत्व के मुद्दे पर अपना रुख नरम कर रही है ताकि कांग्रेस मुक्त भारत बनाने का सपना देखने वाले भाजपा  के स्वभाविक से बन रहे हिंदू वोट बैंक में सेंध लगाई जा सके। साथ ही कमलनाथ ने इस बयान के जरिए शास्त्री के प्रशंसकों को अपनी ओर खींचने का प्रयास किया है। बागेश्वर धाम वाले धीरेंद्र शास्त्री मध्य प्रदेश के ही हैं और सूबे में उनकी लोकप्रियता काफी बढ़ी है।

ऐसे में कमलनाथ इस कार्यक्रम के जरिए बागेश्वर बाबा की लोकप्रियता को भी भुनाना चाहते हैं। अब तक ये काम भाजपा  के नेता ही कर रहे थे, वो ही बागेश्वर बाबा की कथाएं करा रहे थे, लेकिन अब इस लिस्ट में कांग्रेस पार्टी के नेता का नाम भी जुड़ गया है। पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने भी इस कथा के दौरान कमलनाथ को अपना आशीर्वाद दिया। इसी दौरान उन्होंने एक ऐसा बयान भी दे दिया, जिससे सूबे की आदिवासी जनता को साधा जा सके।

शास्त्री ने कहा कि छिंदवाड़ा में वो कमलनाथ के आग्रह पर आए हैं और ये कथा आदिवासियों के सम्मान में की जा रही है। यहां बता दें कि छिंदवाड़ा आदिवासी बहुल इलाका है। सूबे की सियासत में 82 सीटों पर जनजाति समाज का सीधा दखल है। ऐसे में कोई पार्टी इस वोट बैंक को हाथ से छिटकने नहीं देना चाहती। पिछले काफी समय से इस वर्ग को हिंदू धर्म से जोड़ते हुए दिखाने का प्रयास किया जा रहा है। अब कांग्रेस भी इस प्रयास में बाधा बनने की जगह इस अवसर का फायदा उठाने की कोशिश में लग गई है।

आदिवासी समाज को लुभाने के लिए एक तरफ कमलनाथ ने उनके इलाके में रामकथा कराई है तो कांग्रेस पार्टी के नेता पिछले कुछ समय से उन्हें शिव और हनुमान से जोड़ रहे हैं। पिछले दिनों कांग्रेस पार्टी के विधायक और पूर्व मंत्री उमंग सिंघार ने हनुमान को आदिवासी बताया था। उन्होंने कहा कि भगवान राम को लंका ले जाने वाली बंदरों की सेना नहीं बल्कि आदिवासी लोग थे। उनसे पहले वरिष्ठ विधायक अर्जुन सिंह काकोडिया भी हनुमान को आदिवासी बता चुके थे।

इस समय कमलनाथ  बाबा से आशीर्वाद पाने के लिए बेचैन रहे  क्योंकि साल चुनावी है ऐसे में कमलनाथ की चाह सियासी आशीर्वाद की रही । हवा देखकर सियासत का रुख बदलने में माहिर कमलनाथ बाबा बागेश्वर के सहारे अपना सियासी एजेंडा सेट करने में लगे हैं। वो एक तीर से दो निशाने लगा रहे हैं। एक विधानसभा चुनाव में जीत दर्जकर सत्ता में वापसी हो जाए। साथ ही अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में बेटे का सियासी भविष्य मजबूत करना।

दरअसल मध्य प्रदेश में 20 आदिवासी बाहुल्य जिले हैं जहां कुल 84 विधानसभा सीटों पर आदिवासी वोटर जीत के सबसे बड़े फैक्टर हैं। 2013 में इन 84 में 59 सीट भाजपा  ने जीती थी लेकिन 2018 में ये ग्राफ घटकर 34 पहुंच गया और भाजपा  सत्ता से बाहर हो गई। कांग्रेस इसी स्ट्राइक को बरकरार रखना चाहती है और इसीलिए आदिवासी समाज के नाम पर बाबा का दरबार सजाया गया है। मध्य प्रदेश में साल के आखिर में चुनाव हैं ऐसे में नकुलनाथ को राम और हनुमान दोनों एक साथ याद आ रहे हैं। हालांकि नकुलनाथ सभी धर्मों की बात करके कांग्रेस को हिंदूवादी पार्टी के टैग से भी बचाने में भले  लगे हैं ।

बागेश्वर सरकार अपनी हर कथा में हिंदू राष्ट्र और राम राज्य लाने का दावा करते हैं इसलिए नकुलनाथ से साफ कर दिया कि बाबा बागेश्वर की छिंदवाड़ा में केवल कथा हो रही है। बाबा के हिंदू राष्ट्र के एजेंडे से कांग्रेस का लेना देना नहीं है। बाबा का जो दिव्य दरबार लगने जा रहा है ऐसे में कमलनाथ की यही अर्जी लगी है कि एक बार फिर उन्हें मध्य प्रदेश के सीएम की कुर्सी मिल जाए।

गौरतलब है कि हिंदुत्व और सनातन का झंडा बुलंद करने वाले धीरेंद्र शास्त्री से अब तक सिर्फ भाजपा  से जुड़े नेता ही कथा करवा रहे थे लेकिन यह पहली बार है जब कांग्रेस का कोई बड़ा नेता धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की कथा का आयोजन करवा रहा हो। इससे पहले शिवराज कैबिनेट के मंत्री गोविन्द सिंह राजपूत और हरदीप सिंह डंग धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की कथा करवा चुके हैं। वैसे भी चुनावी साल में मध्य प्रदेश की सियासत में संतों के आयोजनों की बाढ़ सी आई हुई है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *