जनसंख्या विस्फोट एक वैश्विक चुनौती

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दुनिया की जनसंख्या 8 बिलियन यानि 8 अरब का आंकड़ा पार करने वाली है। जनसंख्या वृद्धि आज एक
वैश्विक समस्या बन चुकी है। संयुक्त राष्ट्र की ओर से हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस
मनाया जाता है। विश्व जनसंख्या दिवस हर साल एक थीम के साथ मनाया जाता है। यूएनएफपीए की ओर
से इस साल की थीम महिलाओं और बालिकाओं की सेहत की सुरक्षा तय किए जाने और कोविड 19 पर रोक
लगाने पर ध्यान केंद्रित करने की रखी गई है जनसंख्या विस्फोट ने न केवल विकास को प्रभावित किया है
अपितु इससे बेरोजगारी, भुखमरी और अशिक्षा जैसी भयावह समस्याओं ने विकराल रूप ले लिया हैं। ऐसे में
जनसंख्या नियंत्रण एक जरूरी कदम हो जाता है। इसी को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र की ओर से इस
दिन को मनाने की शुरुआत की गई।
आज दुनिया की एक बड़ी आबादी भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास समेत बुनियादी सुविधाओं से वंचित है
और इसकी एक प्रमुख वजह अनियंत्रित आबादी है। जनसंख्या वृद्धि भारत सहित दुनिया के कई देशों
विशेषकर विकासशील देशों में गंभीर समस्या का रूप ले चुकी है। देश और दुनिया में लगातार बढ़ती
जनसँख्या ने विकास के सारे मार्ग अवरुद्ध कर दिए है। कोई ठोस वैश्विक नीति नहीं होने का खामियाजा
हर व्यक्ति को उठाना पड़ रहा है। ऐसे में समूचे विश्व का ध्यान भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर केंद्रित
हो रहा है जो अपने कठोर फैसलों के लिए जाने जाते है। मोदी इस समय एक गलोबल लीडर के रूप में
स्थापित हो चुके है। जनसँख्या विशेषज्ञों का मानना है यदि भारत में कानून के जरिये बढ़ती जनसँख्या पर
लगाम लगाई जाती है तो दुनिया भारत का अनुसरण कर सकती है।
भारत में मोदी सरकार के लिए जनसँख्या कानून बनाने का यह सही समय है। देश के विकास को पटरी पर
लाने और खुशहाल भारत के सपने को साकार करने के लिए देश में जनसँख्या कानून को अमली जामा
पहनने की आज महत्ती जरुरत है। एक या दो बच्चों के आदर्श परिवार को अपनाकर ही हम देश की विभिन्न
ज्वलंत समस्याओं का समाधान कर सकते है। इसके लिए लोगों को जागरूक और शिक्षित कर अपने भले
बुरे का ज्ञान करना जरूरी है तभी हम अपने उद्देश्य में सफल हो सकते है।
भारत विश्व का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। आजादी के समय भारत की जनसंख्या 33
करोड़ थी जो आज चार गुना तक बढ़ गयी है। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक भारत की
जनसंख्या 121 करोड़ है। जबकि जनसंख्या वृद्धि दर संबंधी आंकड़ों पर नजर रखने वाली वेबसाइट
वर्ल्डोमीटर के अनुसार 2021 में भारत की जनसंख्या लगभग 139 करोड़ हो चुकी है। परिवार नियोजन के

कमजोर तरीकों, अशिक्षा, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के अभाव, अंधविश्वास और विकासात्मक
असंतुलन के चलते आबादी तेजी से बढ़ी है।
हमारी आबादी में अभी भी हर दिन पचास हजार की वृद्धि हो रही है। इतनी बड़ी जनसंख्या को भोजन
मुहैया कराने के लिए यह आवश्यक है कि हमारा खाद्यान्न उत्पादन प्रतिवर्ष 54 लाख टन से बढे जबकि वह
औसतन केवल 40 लाख टन प्रतिवर्ष की दर से ही बढ़ पाता है। जनसंख्या वृद्धि के दो मूल कारण अशिक्षा
एवं गरीबी है। लगातार बढ़ती आबादी के चलते बड़े पैमाने पर बेरोजगारी तो पैदा हो ही रही है, कई तरह की
अन्य आर्थिक और सामाजिक समस्याएं भी पैदा हो रही हैं । भारत के सामने अनेक समस्याएँ चुनौती
बनकर खड़ी हैं। जनसंख्या-विस्फोट उनमें से सर्वाधिक है। एक अरब भारतियों के पास धरती, खनिज,
साधन आज भी वही हैं जो 50 साल पहले थे परिणामस्वरूप लोगों के पास जमीन कम, आय कम और
समस्याएँ अधिक बढ़ती जा रही हैं।
जनसंख्या वृद्धि एक नयी चुनौती बनकर हमारे सामने आई हैं और आज भी इस पर काबू पाने में सरकार
को कठिनाई हो रही है। जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम देश को भोगने पड़ रहे हैं। बढ़ती जनसंख्या की
दुश्वारियां सिर चढ़कर बोलने लगी है। भूखों की संख्यां निरंतर बढ़ रही है। विकास कार्य सिकुड़ रहे है। रोटी,
कपडा और मकान की बुनियादी सुविधाओं की बात करना बेमानी हो गया है। विकास का स्थान विनाश ने
ले लिया है। अधिक जनसंख्या के कारण बेरोजगारी की विकराल समस्या उत्पन्न हो गयी है। लोगों के
आवास के लिए कृषि योग्य भूमि और जंगलों को उजाड़ा जा रहा है । इससे बचने का एक मात्र उपाय यही है
की हम येन केन प्रकारेण बढ़ती आबादी को रोके। अन्यथा विकास का स्थान विनाश को लेते अधिक देर नहीं
लगेगी।

– बाल मुकुन्द ओझा

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