प्रत्येक वर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। वास्तव में इस दिन को मनाने की शुरुआत सर्वप्रथम संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से 11 जुलाई 1989 को की गयी थी।वर्ल्डमीटर वेबसाइट के अनुसार, 05 अप्रैल 2021 में दुनिया की कुल जनसंख्या 7,974,229, 607 (797 करोड़) बताई गई है। अगर बिलियन में बात करें तो यह संख्या 7.9(लगभग 8 बिलियन)होती है लेकिन विकिपीडिया के लास्ट अपडेट (मई 2018) में विश्व की कुल आबादी 762 करोड़ दर्शाया गया है। आज विश्व की जनसंख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। वर्ष 2017 में जारी किए गए एक आंकड़े के अनुसार दुनिया की कुल जनसंख्या में अकेले भारत की भागीदारी 17.9(लगभग 18 प्रतिशत) है, जो कि अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है। जानकारी देना चाहूंगा कि वर्ष 1974 में विश्व की कुल जनसंख्या 4 अरब, 1987 में पांच अरब, 1999 में छह अरब, 2012 में सात अरब और 2023 में आठ अरब के लगभग है और यह उम्मीद जताई जा रही है कि यदि इसी प्रकार से जनसंख्या में इजाफा होता रहा तो वर्ष 2057 तक यह दस अरब का आंकड़ा छू जायेगी। आज विश्व में चीन, भारत, यूएसए, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, ब्राजील, नाइजीरिया, बांग्लादेश,रूस(रसिया), मेक्सिको, जापान, इथियोपिया, फिलीपींस, मिश्र, वियतनाम,कांगो,तुर्की, जर्मनी, ईरान और थाइलैंड दुनिया के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देशों में गिने जाते हैं। वर्ष 2100 में दुनिया की आबादी 11 अरब को पार करने की बात कही जा रही है। संयुक्त राष्ट्र की विश्व जनसंख्या रिपोर्ट के अनुसार, एक जुलाई, 2023 को भारत की आबादी 1.429 अरब होने की बात कही गई है, जो कि चीन से लगभग 30 लाख, (2.9 मिलियन) अधिक है। हाल फिलहाल भारत चीन को पीछे छोड़कर अब दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन चुका है और संयुक्त राष्ट्र की तरफ से जारी आंकड़ों में इस बात का खुलासा हुआ है। संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या कोष यानी कि यूएनएफपीए द्वारा कुछ समय पहले जारी आंकड़ों के मुताबिक चीन की कुल जनसंख्या 142.57 करोड़ है, जबकि भारत की आबादी 142.86 करोड़ पहुंच गई है। आज भारत दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है।यूएनएफपीए की ‘द स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट 2023’, जिसे ‘8 बिलियन लाइव्स, इनफिनिट पॉसिबिलिटीज: द केस फॉर राइट्स एंड चॉइस’ के टाइटल से जारी किया गया है, उसमें कहा गया है कि भारत और चीन की जनसंख्या में 2.9 मिलियन का अंतर हो गया है।यह पहली बार है कि भारत की जनसंख्या 1950 के बाद से चीन से ज्यादा दर्ज की गई है। यह बहुत महत्वपूर्ण व सुखद है कि आज भारत की जनसंख्या विश्व में सबसे ज्यादा ही नहीं बल्कि भारत के पास दुनिया में सबसे ज्यादा युवा भी है और भारत आज विश्व का सबसे युवा देश है। कहना ग़लत नहीं होगा कि युवा ही किसी भी देश का असली भविष्य होते हैं। यूएनएफपीए द्वारा जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की 25% आबादी 0-14 आयु वर्ग में है, यहां 10-19 साल तक की आयु के लोग 18% हैं, 10-24 साल तक के लोग 26% हैं, 15-64 साल तक के लोग 68% और 65 से ऊपर के लोग 7% हैं। वहीं पता चला है कि चीन में जन्म दर में कमी देखने को मिली है और वहां पर बुजुर्गों की संख्या में इजाफा हुआ है। चीन में 65 वर्ष से अधिक आयु के लोग लगभग 20 करोड़ हो गए हैं।जानकारी देना चाहूंगा कि कुछ दशक पहले चीनी सरकार ने 1 बच्चे वाली नीति लागू कर दी थी और यही कारण भी है कि चीन की जनसंख्या में कमी देखने को मिली है। आज चीनी सरकार दो या दो से ज्यादा बच्चों के लिए लोगों को लगातार प्रोत्साहित भी कर रही है और ऐसा करने पर अनेक सुविधाएं देने का वादा भी कर रही है लेकिन बावजूद इसके चीन की आबादी में इजाफा नहीं हो पा रहा है। मीडिया के हवाले से इस बात का खुलासा हुआ है कि दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर रहा बीजिंग, जो कि चीन की राजधानी भी है, वहां आबादी बढ़ने के बजाए पिछले कुछ समय में कम हो गई है। इसकी एक बड़ी वजह कोरोना महामारी को भी माना जा रहा है। बहरहाल, जनसंख्या के अपने फायदे और नुकसान हैं। जनसंख्या अभिशाप ही है तो वरदान भी। वैसे
किसी भी देश में जब जनसंख्या विस्फोटक स्थिति में पहुँच जाती है या जनसंख्या में जब अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी होने लगती है तो इससे विभिन्न संसाधनों के साथ उसकी ग़ैर-अनुपातित वृद्धि होने लगती है, इसलिये इसमें स्थिरता लाना ज़रूरी हो जाता है। धरती पर संसाधन सीमित मात्रा में ही स्थित है और बढ़ती जनसंख्या के साथ संसाधनों का असंतुलन बढ़ सकता है। जनसंख्या वृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों का शोषण तेजी से होने लगता है और इससे साधनों की कमी हो जाती है जैसे – मकान, भोजन, वस्त्र आदि की समस्याएं पैदा हो जाती है। यहां तक कि जनसंख्या की तीव्र वृद्धि से प्रति व्यक्ति आय भी कम हो जाती है। अधिक जनसंख्या के लिए संसाधन भी अधिक चाहिए होते हैं। जनसंख्या वृद्धि से कृषि भूमि पर दबाव बढ़ता है। प्राकृतिक संसाधनों का जमकर शोषण होता है। बेरोजगारी में वृद्धि होती है। विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों यथा जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण,वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण होता है और एक तरफ से संपूर्ण पर्यावरण, धरती की पारिस्थितिकी पर बहुत प्रभाव पड़ता है। बढ़ती जनसंख्या के कारण खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव पड़ता है, कुपोषण की समस्या जन्म ले सकती है। इससे गरीबी बढ़ सकती हैं, संसाधनों का सही तरीके से बंटवारा नहीं हो पाता है। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र का तर्क है कि बढ़ती जनसंख्या से जीवन स्तर में गिरावट आती है। जनसंख्या बढ़ने के जहां एक ओर नुकसान हैं, वहीं अनेक फायदे भी हैं। यदि बढ़ती जनसंख्या उत्पादन में रत रहे तो जीवन स्तर में सुधार हो सकता है। सच तो यह है कि आज जनसांख्यिकीय लाभांश एक मूलमंत्र बन गया है। आज भारत की 68 आबादी को कामकाजी आबादी के रूप में देखा जा रहा है। आज विश्व के अनेक विकसित देशों में कामकाजी आबादी का प्रतिशत बहुत ही कम है। उदाहरण के तौर पर,जैसा कि ऊपर भी आलेख में पहले ही बता चुका हूं कि चीन में वृद्ध जनसंख्या का प्रतिशत बढ़ रहा है और भारत की तुलना में युवा आबादी वहां कम है,जो कि चीन के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। सीआईआई की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश भारत की जीडीपी वृद्धि को बढ़ा सकता है, वर्ष 2030 तक मौजूदा 3 ट्रिलियन डॉलर से 9 ट्रिलियन डॉलर और 2047 तक 40 ट्रिलियन डॉलर। जबकि भारत में 2020 के बीच कामकाजी उम्र की आबादी में 101 मिलियन लोग और जुड़ चुके हैं। यहां यह भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण तथ्य है कि भारत पश्चिमी देशों के बड़े व्यवसायों को आकर्षित करने के लिए अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठा सकता है। अधिक आबादी के साथ भारत निश्चित ही इन देशों को एक बड़ी मंडी के रूप में नजर आएगा। अधिक जनसंख्या वृद्धि से जरूरतों में भी अधिक इजाफा होगा और अधिक जरूरतें देश को अधिक उत्पादन की ओर अग्रसर कर सकती है। यहां बताना चाहूंगा कि मानवीय शक्ति (जनसंख्या वृद्धि) का आर्थिक विकास से सीधा संबंध होता है। उचित मानवीय संसाधनों के बिना विकास भी बहुत सी स्थितियों में संभव नहीं हो पाता है। ध्यान में रखने की जरूरत है कि जनशक्ति साधन राष्ट्र की विशाल पूँजी मानी गई है। अधिक जनसंख्या से कार्यशील श्रम की उपलब्धता होती है। औधोगिक विकास में सहायता मिल सकती है, क्यों कि जितने हाथ, उतना काम हो सकता है। अधिक जनसंख्या पूंजी निर्माण, बाजार का विस्तार, कौशल संवर्धन, तकनीकी उन्नति और संगठनात्मक सुधारों के साथ ही उत्पादकता में अभूतपूर्व वृद्धि कर सकती है। बहरहाल, मतलब यह है कि जनसंख्या वृद्धि के नुकसान और फायदे दोनों ही हैं। बहरहाल, पाठकों को यह जानकारी देना चाहूंगा कि हर वर्ष जनसंख्या दिवस की एक थीम रखी जाती है।विश्व जनसंख्या दिवस 2022 की थीम ‘8 बिलियन की दुनिया: सभी के लिए एक लचीला भविष्य की ओर – अवसरों का दोहन और सभी के लिए अधिकार और विकल्प सुनिश्चित करना’ रखी गई थी और इस वर्ष यानी कि वर्ष 2023 में यह थीम
‘एक ऐसी दुनिया की कल्पना करें जहां हममें से 8 अरब लोगों का भविष्य आशाओं और संभावनाओं से भरपूर हो।’ रखी गई है। वास्तव में, वैश्विक जनसंख्या मुद्दों के समाधान के महत्व पर प्रकाश डालने का काम करता है। 11 जुलाई का दिन शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और महिलाओं के सशक्तिकरण तक पहुंच की आवश्यकता पर भी कहीं न कहीं जोर देता नजर आता है। बहरहाल, हमें यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि विश्व की जनसंख्या पिछले कुछ समय से लगातार बढ़ रही है, इसलिए संसाधनों, पर्यावरण और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों सहित हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं पर इसके प्रभाव को समझना आवश्यक हो जाता है।
हमें यह भी ध्यान में रखने की जरूरत है कि जलवायु परिवर्तन, खाद्य असुरक्षा और गरीबी जैसी वैश्विक चुनौतियों के मामले में जनसंख्या नियंत्रण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अंत में, यही कहना चाहूंगा कि जनसंख्या वृद्धि संतुलित रूप से होनी चाहिए।
-सुनील कुमार महला