जनसंख्या नियंत्रण से ही होगा समुचित विकास

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जनसंख्या से तात्पर्य एक सीमित क्षेत्र मे रहने वाले व्यक्तियो की संख्या से है। जब किसी क्षेत्र मे रहने वाले व्यक्तियो की संख्या आवश्यकता से अधिक हो जाए तो उसे जनसंख्या वृद्धि कहते है। अब सवाल यह उठता है कि यह कैसे पता चलेगा कि किसी स्थान की जनसंख्या अधिक है। इसका उत्तर भी साफ है कि जब किसी क्षेत्र के युवाओ के लिए आमदनी के साधन कम हो जाये या किसी परिवार को अपनी दो वक्त की रोटी के लिए अत्याधिक परिश्रम करना पड़े तो निश्चित ही वहा की जनसंख्या आवश्यकता से अधिक होने लगी है। हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम की गवर्निंग काउंसिल ने 11 जुलाई 1989 को विश्व जनसंख्या दिवस के तौर पर मनाने का फैसला किया। इसके अगले साल 1990 में पहली बार दुनिया के 90 देशों में विश्व जनसंख्या दिवस मनाया गया। विश्व जनसंख्या दिवस का उद्देश्य वैश्विक जनसंख्या मुद्दों के बारे में जैसे परिवार नियोजन का महत्व, लैंगिक समानता, गरीबी पर लोगों की जागरूकता बढ़ाना है । इस दिन का सुझाव डॉ. के.सी.जकारिया ने दिया था। जब उन्होंने विश्व बैंक में सीनियर डेमोग्राफर के रूप में काम किया था। तब जनसंख्या पांच अरब तक पहुंच गई थी।

बढ़ती मानव जनसंख्या ने पूरी दुनिया के तंत्र को गहरे से प्रभावित किया और संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पैदा किया है। इस सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि:-

अति रूपेण वै सीता चाति गर्वेण रावणः।
अतिदानाद् बलिर्बद्धो ह्यति सर्वत्र वर्जयेत्।।
अर्थात् अति हर चीज की बुरी होती है। जिस तेजी से विश्व की जनसंख्या बढ़ रही है। उसको देखकर लगता है कि वो दिन दूर नहीं जब गणित के आंकड़े कम पड़ जाएंगे। क्योंकि धरती पर तो इतनी भूमि बचेगी नहीं कि इंसान रह सके। आज बेहिसाब बढ़ती जनसंख्या ना केवल चिंता का कारण है बल्कि सभी समस्याओं का मूल कारण भी है। फिर चाहे पृथ्वी का संतुलन बिगड़ना हो, बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग हो, बढ़ती बेरोजगारी हो या संसाधनों का अभाव हो। बढ़ती जनसंख्या न्यूक्लियर और हाइड्रोजन बम से भी ज्यादा खतरनाक है।

हमारे देश में लगातार बढ़ती जनसंख्या के चलते बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इससे देश का विकास भी बाधित हो रहा है। सरकार के जनसंख्या नियंत्रित करने के लिए नागरिकों को प्रेरित करने के प्रयास भी बहुत ज्यादा सफल होते नहीं दिख रहे। आये दिन जनसंख्या में वृद्धि हो रही है। इसके पीछे देश में अन्धविश्वास और साक्षरता की कमी को जिम्मेदार मान सकते हैं। हम देश में ये मानने वाली सोच को जिम्मेदार मान सकते हैं जो कहती है कि जितने ज्यादा बच्चे होंगे उतने ही ज्यादा कमाने वाले होंगे। जो लोग आज भी ऐसी सोच रखते हैं उन्हें ये समझना होगा कि सिर्फ घर में बहुत ज्यादा सदस्य होने से ही घर में आय नहीं बढ़ेगी। बल्कि इससे सभी के लिए भरण पोषण हेतु भी समस्या उत्पन्न हो जाएगी। जनसंख्या के अनुसार हर किसी के लिए संसाधन जुटाना भी उतना ही मुश्किल होगा क्योंकि देश में उपलब्ध संसाधनों का इतनी मात्रा में होना जरुरी भी नहीं है। ऐसे में एक समय के बाद सभी के लिए इन संसाधनों में कमी होने लगेगी। इसलिये पहले ही जागरूक होना बेहतर है।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) के स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट 2023 के जनसांख्यिकीय आंकड़ों का अनुमान है कि चीन की 142.57 करोड़ की तुलना में भारत की जनसंख्या 142.86 करोड़ है। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो अमेरिका 34 करोड़ की आबादी के साथ तीसरे नंबर पर है। यूएनएफपीए की एक नई रिपोर्ट के अनुसार भारत की 25 प्रतिशत जनसंख्या 0-14 वर्ष के आयु वर्ग की है। वहीं 18 प्रतिशत 10 से 19 आयु वर्ग, 26 प्रतिशत 10 से 24 आयु वर्ग, 68 प्रतिशत 15 से 64 वर्ष आयु वर्ग में और 65 वर्ष से ऊपर 7 प्रतिशत है। वहीं विभिन्न एजेंसियों के अनुमानों ने बताया है कि भारत की जनसंख्या लगभग तीन दशकों तक बढ़ती रहने की उम्मीद है। इससे आबादी 165 करोड़ हो सकती है।

गौरतलब है कि पिछले साल छह दशकों में पहली बार चीन की आबादी में गिरावट आई थी। इसके बाद चीन की आबादी में कमी ही देखी जा रही है। कहा जा रहा है कि इसका असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत की वार्षिक जनसंख्या वृद्धि 2011 के बाद से औसतन 1.2 फीसदी रही है। जबकि पिछले 10 वर्षों में यह 1.7 फीसदी थी। यूएनएफपीए इंडिया के प्रतिनिधि एंड्रिया वोजनार ने कहा कि भारतीय सर्वेक्षण के निष्कर्ष बताते हैं कि लगातार बढ़ रही जनसंख्या का असर आम लोगों पर पड़ रहा है।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया की आबादी 8045 मिलियन है। जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा 65 प्रतिशत 15 से 64 वर्ष की आयु के बीच के लोगों का है। इसके बाद 24 प्रतिशत हिस्सा 10 से 24 वर्ष के समूह में है। 10 फीसदी आबादी 65 साल से ऊपर की है। रिपोर्ट के मुताबिक 15 नवंबर 2022 को दुनिया की आबादी 8 अरब लोगों को पार कर गई थी। दुनिया के 2 सबसे अधिक आबादी वाले क्षेत्र पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशिया है। जहां 2.3 अरब लोग रहते हैं। जो वैश्विक आबादी का 29 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करते हैं और मध्य और दक्षिण एशिया 2.1 बिलियन 26 प्रतिशत प्रतिनितधत्व के साथ है। मध्य और दक्षिण एशिया के 2037 तक दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला क्षेत्र बनने की सम्भावना है।

वर्ष 2050 तक वैश्विक जनसंख्या में अनुमानित वृद्धि का आधे से अधिक 8 देशों कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, मिश्र, इथियोपिया, भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और संयुक्त गणराज्य तंजानिया में केंद्रित होगा। स्वास्थ्य देखभाल तक बेहतर पहुंच और जीवन स्तर में सुधार के साथ दुनिया के विभिन्न हिस्सों में प्रजनन दर के साथ-साथ मृत्यु दर कम हो रही है। इसका मतलब यह है कि दुनिया के कुछ हिस्सों जैसे कि जापान में वृद्ध आबादी अधिक है। वर्ष 2023 की रिपोर्ट में पाया गया है कि पुरुषों में जीवन प्रत्याशा अब 71 वर्ष है। जबकि महिलाओं में यह 76 वर्ष है।

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में अब एक अरब 42 करोड़ 86 लाख लोग हैं और यह चीन की आबादी को पछाड़कर दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है। भारत की 68 प्रतिशत आबादी 15 से 64 वर्ष की श्रेणी की है। वहीं 26 प्रतिशत आबादी 10 से 24 वर्ष के समूह में है। जिससे भारत दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक है। हालांकि भारत में प्रजनन दर लगातार गिर रही है।

आज भारत में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। सरकारों के पास जितनी वैकेंसी है। उससे कई गुना लोग बेरोजगार हैं। इसलिए आये दिन लोग रोजगार के लिए सड़क पर उतरकर प्रदर्शन करने लगते हैं। यह समस्या अकेले भारत की ही नहीं ऐसे प्रदर्शन विश्व के कई देशों में हो रहे हैं। इसलिये बढ़ती जनसंख्या से हुए नुकसान को अब नियंत्रित करने का बहुत ही महत्वपूर्ण समय है। यदि अभी भी लोग जागरूक नहीं हुए तो आने वाले समय में उन्हें इसका बहुत बड़ा खामियाजा चुकाना पड़ सकता है। जनसंख्या को नियंत्रित करने का काम सरकार का ही नहीं बल्कि हर उस व्यक्ति का है जो इस देश में रह रहा है। सभी के प्रयासों और समझदारी से ही हम जनसंख्या विस्फोट से उत्पन्न होने वाली समस्या से निजात पा सकेंगे।

-रमेश सर्राफ धमोरा

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