जलझूलनी एकादशी पर व्रत रख की माता की पूजा …..

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लक्ष्मणगढ़ (अलवर) भाद्रपद माह (भादों) की शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता हैं। एकादशी को और भी कई नामों से भी जाना जाता है। जलझूलनी एकादशी, वामन एकादशी, पद्मा एकादशी, जयंती एकादशी और डोल ग्यारस  पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा के दौरान आज के दिन अपनी करवट बदलते हैं। इस कारण से इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता हैं।
जलझूलनी एकादशी व्रत (स्मार्त) 25 सितम्बर, सोमवार को किया गया। जलझूलनी एकादशी व्रत (वैष्णव) 26 सितम्बर, मंगलवार के दिन किया जायेगा ।
जलझूलनी एकादशी सोमवार को आज कस्बे में महिलाओं द्वारा बंधवाली चावड माता के दरबार में व्रत रख पूजा अर्चना की एवं मन्नतें मांगी। डीजे की धुन पर माता के दरबार में नाचती गाती समुह में पहुंची।
हिंदु धर्म शास्त्रों के अनुसार जलझूलनी एकादशी का व्रत बहुत ही उत्तम व्रतों में माना गया है। आज के दिन का व्रत करने से जातक को वाजपेय यज्ञ के बराबर पुण्यफल प्राप्त होता हैं। जलझूलनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के जीवन के सभी संकट और कष्टों का नाश होता है, समाज में मान-प्रतिष्ठा बढ़ती है, धन-धान्य की कोई कमी नही होती और जीवन के सभी सुखों का आनंद लेकर अंत में मोक्ष को प्राप्त होता हैं।
यह भी कहा जाता है कि इस एकादशी का व्रत करने से ही जन्माष्टमी का व्रत पूर्ण होता हैं। जो भी जन्माष्टमी का व्रत करता है, उसे जलझूलनी एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिये। तभी उसका जन्माष्टमी का व्रत पूर्ण होता हैं।
हिंदु मान्यता के अनुसार आज के एकादशी का व्रत विधि-विधान और पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से करने वाले मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।

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