अगर आप किसी समस्या के प्रति आंखें मूंद लेते हैं तो समस्या को उभरने में ज्यादा समय नहीं लगता। आप तब तक नहीं जागते जब तक आपको समस्या का एहसास न हो, समस्या आपके घर की दहलीज तक न आ जाए, जब तक कि समस्या आपको व्यक्तिगत नुकसान न पहुंचाए। समस्या को हल करने का प्रयास किया जाता है। एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी भारत को +5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने के साथ दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाने का दावा करते रहते हैं, दूसरी तरफ भारत भूखे लोगों, कुपोषित बच्चों और एनीमिया से पीड़ित महिलाओं का देश बनता जा रहा है। हाल में ही संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) और यूनिसेफ सहित चार अन्य संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों द्वारा जारी इस साल की ‘विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति’ (एसओएफटी) रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 194।6 मिलियन (19।5 करोड़) कुपोषित लोग हैं – जो दुनिया के किसी भी देश में सबसे ज्यादा है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि आधे से ज्यादा भारतीय 55।6% भारतीय याने कि 79 करोड़ लोग अभी भी ‘पौष्टिक आहार’ का खर्च उठाने में असमर्थ हैं। यह अनुपात दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा और चैकाने वाला है जो भारत के लिए एक चेतवानी है।
यदि कुपोषण की बढ़ती संख्या कम नहीं हुई, तो भविष्य डरावना होगा
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