चुनावी सर्वे से भाजपा बल्ले बल्ले और कांग्रेस में मायूसी

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राजस्थान के दो सर्वे इन दिनों चर्चा में है। दोनों अलग अलग एजेंसियों द्वारा कराये गए। दोनों ही सर्वे में
भाजपा को आगे दिखाया गया। इसका मतलब यह निकाला जा रहा है की मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा
बांटी जा रखी रेवड़ियों को मतदाताओं ने सिरे से नकार दिया है। पहला सर्वे एबीपी सी वोटर्स का था जो
विधाकनसभा चुनावों का था। दूसरा ओपिनियन पोल इंडिया टीवी सीएनएक्स द्वारा कराया गया था। यह
सर्वे लोकसभा चुनावों का था। पहले सर्वे में प्रदेश में भाजपा की जीत की भविष्यवाणी की गई। सर्वे में
भाजपा को 109 -119 और कांग्रेस को 78 -88 सीटें आने का अनुमान व्यक्त किया गया। सट्टा बाजार का
आकलन भी भाजपा की जीत की संभावनाएं व्यक्त कर रहा है। दूसरा सर्वे लोकसभा चुनाव का था जिसमें
प्रदेश की 25 लोकसभा सीटों में से भाजपा को 21 और कांग्रेस को 4 सीटें दी गई। इस सर्वे में देशभर में
भाजपा की जीत क़ा अनुमान भी व्यक्त किया गया ,जिसमें एनडीए को 318, कांग्रेस नीत इंडिया गठबंधन
को 175 और अन्य को 50 सीटें आने का अनुमान व्यक्त किया गया। दोनों सर्वे आते ही भाजपा खेमे में जहाँ
हर्ष व्यक्त किया गया वहीं कांग्रेसियों में मायूसी देखी गई। सर्वे के मुताबिक राजस्थान एक बार फिर
सरकार बदलने की कगार पर है। भाजपा को यहां बहुमत मिलता साफ नजर आ रहा है। यदि यही स्थिति
बरक़रार रहती है तो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार निश्चित है।
राजस्थान में पिछले 30 सालों से हर चुनाव में सत्ता बदलने की परंपरा चली आ रही है। विधानसभा चुनावों
के नतीजों पर नज़र डालें तो यह साफ तौर पर सामने आता है कि हर टर्म के बाद सरकार का बदलना जारी
है। राज्य में 200 विधानसभा सीटें हैं। वर्ष 2003 में 120 सीटें भाजपा ने जीतीं तो कांग्रेस के पास 56 सीटें
आईं और बाकी पर अन्यों ने जीत दर्ज की। वर्ष 2008 में कांग्रेस का प्रदर्शन सुधरा और करीब 96 सीटों पर
विजय प्राप्त की तो वहीं भाजपा की झोली में करीब 78 सीटें आईं। वर्ष 2013 में भाजपा ने 162 सीटों के साथ
भारी भरकम जीत दर्ज की। वहीं काँग्रेस के पास 21 सीटें ही रह गईं। इन परिणामों में कभी भाजपा सरकार
बनाती है तो कभी काँग्रेस। हर पांच साल में कार्यकाल पूरा होने के बाद होने वाले चुनावों में कांग्रेस या
भाजपा, दोनों में से एक पार्टी सत्ता पर काबिज़ हो जाती है। इस बार बारी भाजपा की है।
कांग्रेस नेता सचिन पायलेट पिछले साढ़े चार वर्षों से यह लगातार कहते आ रहे है की यह परम्परा बदलनी
चाहिए और इसके लिए उन्होंने एक फार्मूला कांग्रेस आलाकमान को सुझाया है। वहीं भाजपा आशान्वित है
की पांच साल में सत्ता बदलेगी। कांग्रेस की तरह भाजपा भी यहाँ गुटबंदी में फंसी है। कांग्रेस में गहलोत

बनाम पायलेट का संघर्ष जग जाहिर है तो भाजपा में वसुंधरा के सामने राठौड़, गजेंद्र सिंह, किरोड़ी और
पूनिया ताल ठोके हुए है।
गौरतलब है काँग्रेस और भाजपा के अलावा राजस्थान में तीसरी पार्टी का कोई अस्तित्व नहीं है। दशकों से
कांग्रेस और भाजपा ही राजस्थान की राजनीतिक ज़मीन पर काबिज रही है। इस प्रदेश में कुम्भाराम आर्य,
नाथूराम मिर्धा सहित किरोड़ी लाल मीणा, देवी सिंह भाटी और घनश्याम तिवाड़ी ने तीसरे मोर्चे की
आधारशिला रखने की तैयारी की थी मगर सफल नहीं हुए। वर्तमान में हनुमान बेनीवाल तीसरे मोर्चे की
कमान संभाले हुए है मगर उनकी तरकश के तीर भी निशाना भेदने में सफल नहीं हुए है। यहाँ फिलहाल
भाजपा और कांग्रेस में ही आमने सामने की लड़ाई है। और इस बार बारी एक बार फिर भाजपा की है जिसकी
भविष्यवाणी इंडिया टीवी के सर्वे ने करदी है।
भारत में जब भी चुनाव होता है उसके पहले और बाद में ज्यादातर सर्वे एजेंसियों, मीडिया
चैनलों और अखबारों द्वारा इलेक्शन सर्वे तैयार किया जाता है। यह इसलिए कराया जाता है
ताकि मालूम हो सके कि सरकार किसकी बन सकती है। ये ओपिनियन और एक्जिट पोल
कितने सही हैं, उसके बारे में कोई सर्वे एजेंसी नहीं बताती। सर्वे एजेंसियां मानती हैं कि उनके
रुझान करीब-करीब सही होते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। हालांकि कभी-कभी ये सही भी होते हैं।
टीवी चैनल टीआरपी के चक्कर में अपनी लोकप्रियता दांव पर लगा देते है। यदि सर्वे सही जाता है तो बल्ले
बल्ले अन्यथा साख पर विपरीत असर देखने को मिलता है। चुनाव के पहले और मतदान के बाद कई
एजेंसियां सर्वेक्षण कराती हैं और संभावित जीत- हार के अनुमान पेश करती हैं. कई बार इन सर्वेक्षणों के
नतीजे चुनावी नतीजों के करीब बैठते हैं तो कई बार औंधे मुंह गिर जाते हैं। मतदाताओं का मूड भांपने का
दावा करने वाले ऐसे सर्वेक्षणों में कई बार लोगों और राजनीतिक दलों की दिलचस्पी दिखाई देती है। कोई
दावा नहीं कर सकता कि हमारे देश में चुनाव पूर्व सर्वेक्षण तरह विश्वसनीय होते हैं ।

बाल मुकुन्द ओझा 

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