साल 2022 के बाद से महाराष्ट्र में काफी सियासी उथल-पुथल देखने को मिली। क्योंकि उद्धव ठाकरे के कभी बेहद करीबी माने जाने वाले एकनाथ शिंदे ने 39 विधायकों के साथ बगावत शुरूकर दी। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी उद्धव गुट की बजाय एकनाथ शिंदे गुट को असली शिवसेना करार दे दिया। इस तरह से उद्धव ठाकरे गुट को शिवसेना यूबीटी नाम मिला। महाराष्ट्र राजनीतिक संकट के परिणामस्वरूप गठित मूल शिवसेना के दो अलग-अलग गुटों में बंट गई। जिस तरह से उद्धव ने सत्ता से हाथ धोया, ठीक उसी तरह वह अपने पिता की विरासत को भी खो बैठे। हालांकि उद्धव ठाकरे झुके नहीं और टूटे नहीं। उन्होंने बिखरी चीजों को समझा, समेटा और संभालने का काम किया। चुनाव प्रचार के दौरान उद्धव तय रणनीति पर काम करते रहे और दूसरी तरफ उनके बेटे आदित्य ठाकरे ने मोर्चा संभाला। हाल ही के दिनों में उद्धव ठाकरे ने अपनी इमेज एक कट्टर नहीं बल्कि सॉफ्ट हिंदुत्ववादी के तौर पर पेश की और जनता को उनका यह बदलाव काफी अच्छा लगा।

उद्धव ठाकरे के हाथ से कैसे फिसली पिता बालासाहेब की विरासत, 58 साल पहले हुई थी पार्टी की स्थापना
ram