विश्व हीमोफिलिया दिवस : लगातार खून बहे तो हो जाएं सावधान

ram

विश्व फेडरेशन ऑफ हीमोफीलिया द्वारा हर साल 17 अप्रैल को हीमोफिलिया दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम सभी के लिए समान पहुंच : सभी रक्तस्राव विकारों को पहचानना रखी गई है। दुनियाभर में तरह तरह की बीमारियां है जिनसे निजात पाने के लिए वैश्विक संगठन अपने स्तर पर प्रयासरत है। बीमारियां है तो उसका इलाज भी है। मगर जागरूकता के आभाव में ये रोग तेजी से पनपते है। ऐसी ही एक बीमारी हीमोफीलिया है जिसके बारे में लोग कम ही जानते है। आश्चर्य की बात है इस बीमारी में भारत अव्वल है। विश्व हीमोफिलिया दिवस की शुरुआत वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हीमोफिलिया द्वारा की गई थी। इस दिन को दुनिया भर के रोगी समूहों द्वारा 1989 से देखा गया है। विश्व फेडरेशन ऑफ हीमोफिलिया के संस्थापक फ्रैंक नाबेल की जयंती को सम्मानित करने के लिए तारीख का चयन किया गया था। विश्व फेडरेशन ऑफ हीमोफिलिया के मुताबिक हीमोफिलिया एक रक्त विकार है जिसमें रक्त ठीक से नहीं जमता है। इसके कारण एक रक्त प्रोटीन की कमी होती है, जिसे क्लॉटिंग फैक्टर कहा जाता है। इसमें फैक्टर की विशेषता यह है कि यह बहते हुए रक्त के थक्के को जमाकर उसका बहना रोकता है। जागरूकता की कमी की वजह से कई लोग इस समस्या से अनजान रहते हैं। यह दिवस हीमोफीलिया तथा अन्य आनुवंशिक खून बहने वाले विकारों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिवर्ष मनाया जाता है। बढ़ी हुई जागरूकता उन लाखों लोगों की देखभाल के लिए बेहतर निदान और पहुंच बढ़ाएगी जो बिना इलाज के रहते हैं। हीमोफीलिया से पीड़ित व्यक्ति को अन्य सामान्य व्यक्तियों की तुलना में चोट लगने पर अधिक खून बहता है। यह बीमारी कभी- कभी जानलेवा हो जाती है। इसमें खून का बहना शुरू हो जाए, तो बंद नहीं होता। कोई हादसा होने पर मरीज की जान बचानी मुश्किल हो जाती है। शरीर में नीले निशान बन जाते हैं। जोड़ों में सूजन आना और रक्तस्राव होना। अचानक कमजोरी आना और चलने में तकलीफ होना। नाक से अचानक खून बहना भी इसके ही लक्षण है। यदि यह रक्तस्राव रोगी की आंतों में अथवा दिमाग के किसी हिस्से में शुरू हो जाये तो यह जानलेवा भी हो सकता है। इसका इलाज जल्द से जल्द होना अति आवश्यक है। कई बार इस बीमारी की वजह से लीवर, किडनी, मसल्स जैसे इंटरनल अंगों में बिना किसी कारण रक्तस्त्राव होने लगता है।इस बीमारी से महिलाओं की तुलना में पुरुषों के प्रभावित होने की संभावना अधिक होती है। यह रोग ‘हीमोफीलिया ए’ तथा ‘हीमोफीलिया बी’ दो प्रकार का होता है। आनुवंशिक की स्थिति है, जो कि चोट या सर्जरी के बाद लंबे समय तक रक्तस्राव और या चोट के बाद या बिना चोट के बाद जोड़ों में दर्दनाक सूजन का कारण है। विश्व फेडरेशन ऑफ हीमोफीलिया के मुताबिक आनुवंशिक का मतलब है, कि यह रोग जींस के माध्यम से माता-पिता से बच्चों में पारित होता है। हीमोफिलिया रोग के वाहक एक्स गुणसूत्र में पाए जाते है। एक शोध के अनुसार, करीब 80 प्रतिशत भारतीय इस बीमारी की चपेट हैं, जिसमें ज्यादातर संख्या पुरूषों की है। हीमोफीलिया के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है जहां ऐसे 2 लाख केस देखने को मिलेगें जिसका सबसे मुख्य कारण लोगों में इस बीमारी को लेकर जागरूकता की कमी है। देश में हीमोफीलिया से ग्रस्त केवल 20,000 मरीज रजिस्टर हैं जबकि इस आनुवंशिक बीमारी से कम से कम दो लाख लोग पीड़ित हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इस बीमारी का कोई सटीक इलाज नहीं है लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखकर इससे बचाव किया जा सकता है। डाइट में ज्यादा से ज्यादा प्रोटीन फूड को शामिल करें। एस्परिन या नॉन स्टेरॉयड दवाओं से परहेज करें। साथ ही हेपेटाइटिस बी का वैक्सिनेशन जरूर लगवाएं। अपनी रूटीन में योग व प्राणायाम को जरूर शामिल करें, जिससे हड्डियां एवं मांसपेशियां मजबूत हो। अगर बच्चे के जन्म से ही इस बीमारी का पता चल जाए तो उसका खास-ख्याल रखें। हीमोफिलिया को शाही रोग कहा जाता है। हीमोफिलिया जीन रूस (स्पेन, जो 1837 में इंग्लैंड की रानी बन गया था) से रूस, स्पेन और जर्मनी के शासक परिवारों को प्रेषित किया गया था। क्वीन विक्टोरिया में हीमोफिलिया के लिए जीन सहज परिवर्तन के कारण हुआ था। हीमोफिलिया अनुसंधान 1900 के आसपास शुरू हुआ। वैज्ञानिकों ने पाया कि मानव रक्त को समूहों या प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है। इस खोज ने रक्त संक्रमण को और अधिक सफल बना दिया। 1930 में वैज्ञानिकों ने इसके प्रमुख भागों, प्लाज्मा और लाल कोशिकाओं में रक्त को अलग करना सीखा। 1960 के दशक में डॉ जुडिथ ग्राहम पूल ने क्रायोप्रिसेपिट्रेट प्रक्रिया की खोज की, जो हेमोफिलिया ब्लड्स को रोकने का सबसे अच्छा तरीका है।

-बाल मुकुन्द ओझा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *