राजस्थान विधानसभा के चुनाव इसी साल के अंत में होने हैं। चुनावों में अब कुछ महीनों का ही समय रह गया है। ऐसे में सभी राजनीतिक दलों के नेताओं ने अपनी-अपनी पार्टी की चुनावी तैयारियां प्रारंभ कर दी है। प्रदेश में सत्तारूढ़ होने के कारण कांग्रेस पार्टी को सत्ता विरोधी माहौल का भी सामना करना पड़ रहा है। राजस्थान में पिछले तीस वर्षों से परंपरा चली आ रही है कि एक बार कांग्रेस और दूसरी बार भाजपा की सरकार बनती है। ऐसे में मुख्य विपक्षी दल भाजपा को आशा है कि राज बदलने की परंपरा को कायम रखते हुए प्रदेश में उनकी सरकार बने। मगर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस रिवाज को बदलने का पूरा प्रयास कर रहे हैं।
गहलोत चाहते हैं कि प्रदेश में फिर से कांग्रेस की सरकार बनाकर हर बार सरकार बदलने के रिवाज को समाप्त किया जाए। इसके लिए गहलोत लगातार लोगों से संपर्क साध रहे हैं। अशोक गहलोत के दोनों पैरों के अंगूठे में चोट लगने के कारण वह पिछले कई दिनों से अपने आवास से ही वर्चुअल माध्यम से लोगों से संपर्क कर विभिन्न विकास कार्यों का शिलान्यास व लोकार्पण कर रहे हैं।
2018 के विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे तथा रामेश्वर डूडी नेता प्रतिपक्ष थे। उस समय कांग्रेस के पास मात्र 21 विधानसभा सीटें ही थी। तब वसुंधरा राजे भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री थी। भाजपा के पास 163 विधानसभा सीटें थी। लेकिन राज बदलने का रिवाज व वसुंधरा राजे के खिलाफ आम जनता में पनपी सत्ता विरोधी लहर के चलते कांग्रेस 100 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। जबकि भाजपा मात्र 73 सीटों पर ही सिमट गई थी।
तब कांग्रेस आलाकमान ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री व सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री बनवाया था। मुख्यमंत्री बनने के बाद अशोक गहलोत ने बसपा के सभी 6 विधायकों का कांग्रेस में विलय करवा कर विधानसभा में कांग्रेस की स्थिति मजबूत बना दी थी। वर्तमान में गहलोत सरकार को माकपा के दो, भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो, राष्ट्रीय लोक दल का एक व 13 निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त है। वहीं भाजपा विधायको की संख्या 73 से घटकर 70 पर आ गई है।
हालांकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी 2020 में अपने ही उपमुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की बगावत का सामना करना पड़ा था। सरकार बचाने के लिए गहलोत ने महीनों तक विधायकों को बाड़ेबंदी में रखा था। कांग्रेस आलाकमान के हस्तक्षेप के बाद सचिन पायलट ने अपना विद्रोह समाप्त कर कांग्रेस की मुख्यधारा में शामिल हो गए थे। हाल ही में कांग्रेस आलाकमान ने दिल्ली में एक बड़ी बैठक कर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, सचिन पायलट को आगामी विधानसभा चुनाव में एकजुट होकर लड़ने का मंत्र दिया है। आलाकमान से हुई बैठक के बाद दोनों ही नेता एकजुटता से चुनाव लड़ने की बात कह रहे हैं।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पिछले एक साल से प्रदेश में फिर से कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए सक्रिय होकर काम कर रहे हैं। उन्होंने अपने पिछले बजट में प्रदेश के लोगों के लिए अनेकों कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा की थी। जिनका क्रियान्वयन भी प्रारंभ हो गया है। पिछले तीन महीने तक राज्य सरकार ने गांव-गांव में महंगाई राहत कैंप लगाकर लोगों की समस्याओं का समाधान करवाया है। उन कैंपों के माध्यम से सरकार ने अपनी जन कल्याणकारी योजनाओं से भी आम आदमी को अवगत करवाया है। महंगाई राहत कैंपों के आयोजन से सरकार की छवि में काफी सुधार हुआ है। राज्य सरकार ने 60 साल से अधिक उम्र के वृद्धजन, विधवा महिलाओं, विकलांगों को मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि को भी बढ़ाकर न्यूनतम एक हजार प्रतिमाह कर दिया है। इसके साथ ही अनाथ बालिकाओं को पढ़ाई के लिये प्रतिमाह मिलने वाली राशि भी बढ़ाकर दोगुनी से अधिक कर दी गई है।
राज्य सरकार द्वारा प्रदेश भर में करीबन 76 लाख उज्जवला गैस कनेक्शन धारकों को 500 रूपैये में गैस सिलेंडर उपलब्ध करवाया जा रहा है। जो देश में अन्यत्र कहीं नहीं मिल रहा है। प्रदेश में घरेलू विद्युत उपभोक्ताओं को 100 यूनिट बिजली प्रतिमाह तथा कृषि उपभोक्ताओं को दो हजार यूनिट बिजली प्रतिमाह निशुल्क उपलब्ध करवायी जा रही है। राजस्थान की सीमा में यात्रा करने वाली महिलाओं को सभी श्रेणी की रोडवेज बसों में 50 प्रतिशत किराए में छूट दी जा रही है। स्कूलों व कॉलेजों में पढ़ने वाली छात्राओं, विधवा व एकल रहने वाली महिलाओं को शीघ्र ही सरकार की तरफ से मोबाइल हैंडसेट प्रदान किए जाएंगे। जिनमें तीन साल तक इंटरनेट का डाटा भी फ्री मिलेगा।
इसके अलावा सरकार द्वारा सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना के दायरे में फिर से शामिल किए जाने से आम लोगों के साथ ही कर्मचारी वर्ग में भी गहलोत सरकार के प्रति सकारात्मक माहौल नजर आ रहा है। 2004 से देशभर में पुरानी पेंशन योजना को बंद कर दिया गया था। उसके बाद से ही कर्मचारी वर्ग पुरानी पेंशन बहाली की मांग करते आ रहे थे। मगर किसी भी सरकार ने कर्मचारियों की मांगों पर ध्यान नहीं दिया था। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत देश भर में पहले नेता है जिन्होंने राजस्थान सरकार के कर्मचारियों को फिर से पुरानी पेंशन देने की शुरुआत की है।
संगठन की दृष्टि से भी राजस्थान में कांग्रेस कमेटी का नए सिरे से गठन कर दिया गया है। सभी जिला, नगर, ब्लाक व मंडल अध्यक्षों की नियुक्तियां हो चुकी है। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी व सह प्रभारी लगातार जिलों का दौरा कर कांग्रेस कार्यकर्ताओं से संवाद स्थापित कर रहे हैं। हाल ही में जयपुर में कांग्रेस के सभी जिला अध्यक्षों, ब्लॉक अध्यक्षों व प्रदेश कार्यकारिणी के पदाधिकारियों की बैठक हो चुकी है। जिसमें सभी पदाधिकारियों को पूरी सक्रियता से क्षेत्र में काम करने के लिए कहा गया है।
हालांकि पिछले वर्ष सितंबर में कांग्रेस आलाकमान द्धारा कांग्रेस विधायक दल की बैठक का आयोजन करवाने के लिए भेजे गए पर्यवेक्षकों प्रदेश प्रभारी महासचिव अजय माकन व मल्लिकार्जुन खरगे की उपस्थिति में विधायक दल की मीटिंग का बहिष्कार करवाने वाले कैबिनेट मंत्री शांति धारीवाल, महेश जोशी व पर्यटन निगम के अध्यक्ष धर्मेंद्र राठौड़ पर पार्टी आलाकमान ने कोई कार्यवाही नहीं की है। उल्टे शांति धारीवाल के पुत्र अमित धारीवाल को संगठन में प्रदेश महासचिव बना दिया गया है। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में गलत संदेश जा रहा है। पार्टी से जुड़े लोगों का मानना है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दबाव में पार्टी आलाकमान पार्टी से बगावत करने वाले लोगों के खिलाफ कार्यवाही करने से कतरा रहा है।
कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा चुनाव की जो तैयारियां की है उसको देखकर लगता है कि चुनाव की पूरी कमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के हाथ में होगी तथा वही पार्टी का चेहरा भी होंगे। पार्टी आलाकमान के समझाने पर सचिन पायलट मुख्यमंत्री गहलोत के साथ काम करने को तो तैयार हो गए हैं। मगर गहलोत पायलट को अपने साथ कितना जोड़े रख पाते हैं इसका पता तो आने वाले समय में ही लगेगा। फिलहाल तो कांग्रेस अपनी योजनाओं के बल पर जीत के सुनहरे सपने देख रही है। वही पार्टी से जुड़े जमीनी स्तर के कार्यकर्ता आज भी नेताओं की बेरुखी के चलते नाराज नजर आ रहे हैं।
राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी बनाये गए सुखजिंदर सिंह रंधावा चुनाव जीतने के तो बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं। मगर पिछले पंजाब विधानसभा चुनाव में उनके उपमुख्यमंत्री रहते कांग्रेस पार्टी की जो दुर्गति हुई थी उसकी चर्चा वह कभी नहीं करते हैं। अपने बड़बोले बयानों से रंधावा चुनाव तक पार्टी नेताओं को कितना एकजुट रख पाते हैं। इसका पता तो चुनावी नतीजों के बाद ही चल पाएगा।
-रमेश सर्राफ धमोरा