क्या भाजपा-जेडीएस के बीच हो रहा गठबंधन भाजपा के लिए फायदेमंद रहेगा ?

ram

इस समय  देश में तीन दिन से G.20 की धूम मची हुई है । सभी अखबारें व टी वी चैनल उस धूम को अपने यहाँ कवरेज देने में लगे हुए है ऐसे में ऐसा लगता है कि देश में राजनीतिक हलचल थम सी गई है । पर ऐसा नहीं है देश में राजनीतिक गतिविधियां जोर शोर से चालू है । अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव  के लिए जहां विपक्षी दल एक होकर भारतीय जनता पार्टी को घेरने की तैयारी में लगे हैं, वहीं, भाजपा भी फिर से सत्ता में आने के लिए तमाम कोशिश कर रही है। इसी कड़ी में कर्नाटक  से एक बड़ी खबर सामने आ रही है। चर्चा है कि इस बार लोकसभा चुनाव में जनता दल ( एस ) भाजपा के साथ गठबंधन कर सकती है।

चर्चा को कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के उस बयान से और बल मिला है जिसमें उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (एस ) के बीच 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए समझौता हो गया है। हालांकि पार्टी सूत्रों का कहना है कि यह अंतिम नहीं है , इस पर आगे चर्चा की जाएगी और राज्यसभा सांसद लहर सिंह को इस मुद्दे पर बातचीत करने के लिए अधिकृत किया गया है।

इससे पहले येदियुरप्पा ने कहा था कि जे. डी . एस .  चार सीटों पर चुनाव लड़ेगी और यह समझौता हमें 25 या 26 सीटें जीतने में मदद करेगा। एक  रिपोर्ट के मुताबिक, जेडीएस मांड्या, हसन, बेंगलुरु (ग्रामीण) और चिकबल्लापुर सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। हालांकि पिछले चुनाव में उसने सिर्फ हसन पर जीत दर्ज की थी। वहीं, भाजपा ने 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में कर्नाटक में अपने दम पर 25 सीटें जीतीं थीं।

भारतीय जनता पार्टी जेडीएस के साथ गठबंधन इसलिए भी कर सकती है, क्योंकि विधानसभा चुनाव में उसे यहां हार मिली है। इस नतीजों से पहले वह सत्ता में थी और लोकसभा चुनाव में भी उसने अच्छा प्रदर्शन किया था, पर पांच साल में समीकरण बदल गया है। हालांकि सूत्रों के मुताबिक, भाजपा के कुछ नेता इस गठबंधन के पक्ष में नहीं हैं। इसकी वजह है जेडीएस का इस साल हुए विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन। इसके अलावा विपक्ष के गठबंधन इंडिया  जिसमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, शिवसेना यूबीटी और कई अन्य शामिल हैं। उनके पास कुछ न कुछ वोट शेयर है।

अगर वोटों के सम्मीकरण को देखें तो जेडीएस और भाजपा का गठबंधन इसलिए भी खेल बदल सकता है क्योंकि कर्नाटक की आबादी में लिंगायत समुदाय लगभग 17 फीसदी है। बीएस येदियुरप्पा भी लिंगायत समुदाय से हैं। वोक्कालिगा समुदाय की संख्या करीब 15 फीसदी है। वोक्कालिगा परंपरागत रूप से जेडीएस का वोटर वोटर माना जाता है। जेडीएस प्रमुख एचडी देवगौड़ा वोक्कालिगा समुदाय से ही हैं। ऐसे में दोनों पार्टियों में गठबंधन होता है तो यहां एनडीए का वोट बेस लगभग 32 प्रतिशत तक हो सकता है।

गौरतलब है कि जेडीएस के विपक्षी गठबंधन इंडिया की बैठक से दूर रहने के बाद ही यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि यह पार्टी लोकसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ जा सकती है। भाजपा संसदीय बोर्ड के सदस्य येदियुरप्पा का कहना है  कि चुनावी तालमेल के तहत जद(एस) कर्नाटक में 28 संसदीय क्षेत्रों में से चार पर चुनाव लड़ेगी। उनका मानना है कि  भाजपा और जेडीएस के बीच तालमेल होगा और  केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, जेडीएस को चार लोकसभा सीट देने के लिए राजी भी हो गए हैं।’ येदियुरप्पा ने यहां संवाददाताओं से बातचीत में कहना था कि  इसने हमें काफी ताकत दी है और इससे साथ मिल कर हमें 25-26 लोकसभा सीट जीतने में मदद मिलेगी। इससे पहले जेडीएस प्रमुख देवेगौड़ा ने हाल में कहा था कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेगी।

भाजपा ने कर्नाटक में 2019 के लोकसभा चुनावों में 25 सीट पर जीत हासिल की थी, वहीं, भाजपा समर्थित एक निर्दलीय उम्मीदवार ने एक सीट पर जीत हासिल की थी। कांग्रेस और जद(एस) ने एक-एक सीट पर जीत हासिल की थी।

फिलहाल राज्य में भाजपा और जेडीएस के सियासी ताकत की बात करें तो जेडीएस के मुकाबले भाजपा काफी आगे दिखती है। राज्य में 28 लोकसभा सीटों में से सबसे ज्यादा 25 सीटें भाजपा के पास हैं। इसके अलावा एक-एक सांसद कांग्रेस-जेडीएस और एक जेडीएस समर्थक निर्दलीय सांसद है।

जब कर्नाटक की बात आती है तो जेडीएस के साथ भाजपा के रिश्ते को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जाती हैं।  कुछ विश्लेषकों का मानना है कि एक साथ जाने से दोनों पार्टियों को मदद मिलेगी, दूसरों का कहना है कि भाजपा के लिए संभावित मामूली लाभ गठबंधन के लायक नहीं हो सकता है। इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस और जेडीएस के बीच गठबंधन की ओर इशारा किया जाता है, जब दोनों पार्टियां केवल एक-एक सीट ही जीत सकीं।अब भाजपा-जेडीएस गठबंधन पर बातचीत के साथ एक सवाल यह है कि क्या दोनों पार्टियां एक-दूसरे को वोट ट्रांसफर कर सकती हैं। हाल के विधानसभा चुनावों में भाजपा का वोट शेयर 36 फीसदी और जेडीएस का 14 फीसदी था, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में अकेले भाजपा को 52 फीसदी वोट मिले थे। जेडीएस को जहां भाजपा की जरूरत है, वहीं इसको क्षेत्रीय पार्टी पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है।

माना  जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में जेडीएस को साथ लेने के लिए भाजपा की ओर से गंभीर प्रयास भी किए जा रहे हैं। सतही तौर पर यह एक अच्छा समीकरण दिखता है, लेकिन जमीनी स्तर पर कई बड़े मुद्दे हैं, जिन्हें सुलझाना बाकी है। लोकसभा चुनाव से पहले बीबीएमपी और जिला पंचायत चुनाव हैं। कोई भी गठजोड़ को इन दो चुनावों में कमाल दिखाना होगा और गठबंधन के काम करने के लिए दोनों पार्टियों के बीच की केमिस्ट्री भी होनी चाहिए।

भारतीय जनता पार्टी  के वरिष्ठ विधायक बसनगौड़ा पाटिल यतनाल ने सोमवार को यह दावा कर सबको चौका दिया है कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले गिर जाएगी, क्योंकि करीब 25 विधायक सत्तारूढ़ दल को छोड़ने के लिए तैयार हैं। बीजापुर (विजयपुरा) शहर से विधायक ने यह भी उम्मीद जताई कि भाजपा एक बार फिर से सत्ता में आएगी। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने यहां भीड़ को संबोधित करते हुए दावा किया था कि  कांग्रेस कहती है कि उसने 135 सीटें जीती हैं लेकिन वे सो नहीं पा रही है।

अगर 30 विधायक लोग पार्टी को छोड़ दें तो सरकार गिर जाएगी। 25 विधायक लोग पार्टी छोड़ने के लिए तैयार भी  हैं। कुछ मंत्री ऐसे व्यवहार कर रहे हैं जैसे उनके पास सारी शक्तियां आ गई हैं और अधिकारियों को हटा रहे हैं या स्थानांतरित कर रहे हैं। विजयपुरा में मुस्लिम अधिकारियों को तैनात करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने पूछा था कि  आप मुसलमानों को लाकर क्या कर सकते हैं? मैं विधायक हूं और उन्हें मेरी बात माननी चाहिए।अगर कोई अधिकारी हिंदुओं पर अत्याचार करने के लिए नाटक करता है तो हम जनवरी में वापस आएंगे।आप गारंटी दें यह मार्च तक हैं।  कांग्रेस लोकसभा चुनाव से पहले सरकार से बाहर हो जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि  यही कारण है कि विजयपुरा के दोनों मंत्री, जो सत्ता में आने के बाद ऐसा व्यवहार कर रहे थे मानो वे ऊंची उड़ान भर रहे हों, लेकिन अब उन्होंने अपना स्वर हल्का कर लिया है।उन्हें अहसास हो गया है कि 35-40 विधायक लोग पार्टी छोड़ने को  तैयार हैं। अगर 30-35 लोग विधायक तैयार हों तो सरकार चली जायेगी।

बसवराज रायरेड्डी जैसे कांग्रेस के वरिष्ठ विधायकों द्वारा हाल में विधायक दल की बैठक में कर्नाटक के ‘भ्रष्ट राज्य’ बनने पर नाखुशी जताने और असंतोष व्यक्त करने की ओर इशारा करते हुए यतनाल ने कहा था कि  उनके खुद के विधायक बोल रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि  वे पैसा चाहते हैं, क्योंकि उन्होंने चुनाव में इसे खर्च किया है। यतनाल ने आरोप लगाया कि तबादलों में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और ‘गारंटी योजनाओं’ की वजह से विकास के लिए कोष की कमी के चलते विधायक नाराज़ है। उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने हाल में दावा किया था कि राज्य सरकार को गिराने के लिए सिंगापुर में साज़िश रची जा रही है।ऐसे में देखना है कि कर्नाटक में चल रही राजनीतिक  हलचल का क्या परिणाम होता है । साथ ही  भाजपा-जेडीएस के बीच हो रहा गठबंधन भाजपा के लिए कितना फायदेमंद रहता है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *