क्यों पनप रहा है मध्यप्रदेश भाजपा में असंतोष, नेताओं की भागम भाग क्यों है  जारी ?

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मध्यप्रदेश में कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इस चुनाव में अपनी जीत दर्ज करने के लिए जहां एक तरफ शिवराज सरकार लगातार योजनाओं की झड़ी लगा रही है, तो वहीं दूसरी तरफ भाजपा   को हर दिन झटके भी मिल रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में भाजपा  के कई नेता या तो शिवराज सरकार को छोड़ कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं या फिर पार्टी से जाने की तैयारी में हैं।

हाल ही में पार्टी के नौ कद्दावर नेताओं ने शिवराज सरकार का साथ छोड़ मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस में आने की इच्छा भी जताई थी। इन नेताओं को बीते शनिवार मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने पार्टी की सदस्यता भी दिलाई। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर राज्य में एक के बाद एक नेता कांग्रेस का दामन क्यों थाम रहे हैं?

इन नौ नेताओं में भोपाल से पूर्व विधायक उमाशंकर गुप्ता के भांजे डॉ आशीष अग्रवाल गोलू सहित पूर्व विधायक भंवर सिंह शेखावत, चंद्रभूषण सिंह बुंदेला उर्फ गुड्डू राजा, दो बार झांसी से सांसद रहे सुजान सिंह बुंदेला के बेटे वीरेंद्र रघुवंशी, छेदीलाल पांडे, शिवम पांडे, अरविंद धाकड़ शिवपुरी, सुश्री अंशु रघुवंशी, डॉ केशव यादव भिंड और महेंद्र प्रताप सिंह हैं।

वर्ष 2023 के अंत में मध्‍य प्रदेश सहित पांच राज्‍यों में होने वाले विधानसभा चुनाव  को आम चुनाव 2024 के पहले ‘सेमीफाइनल’ की तौर पर देखा जा सकता  है। इस वर्ष जिन राज्‍यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें हिंदी बेल्‍ट के मध्‍य प्रदेश, राजस्‍थान और छत्‍तीसगढ़ प्रमुख हैं। इसके अलावा तेलंगाना और मिजोरम में भी लोग मताधिकार का प्रयोग कर सरकार चुनेंगे। इन पांचों राज्‍यों में मध्‍य प्रदेश  में सबसे अधिक 230 सीटें हैं, स्‍वाभाविक रूप से देश के इस ‘हृदय प्रदेश’ के नतीजों पर सबकी निगाह जमी है। राज्‍य में कुछ प्रमुख नेताओं के ‘पलायन’ का सामना कर रही भाजपा  के सामने सत्‍ता में वापसी की कठिन चुनौती हो गई है।

चुनावी बेला में भाजपा  तमाम अंतर्विरोधों का सामना कर रही। राज्‍य के कई छोटे नेता जहां ‘छिटककर’ कांग्रेस की शरण में जा रहे, वहीं पूर्व मुख्‍यमंत्री उमा भारती  जैसे बड़े नेता पार्टी में अपनी उपेक्षा से मुंह फुलाए हैं। कार्यकर्ताओं/नेताओं में सबसे ज्‍यादा नाराजगी ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया की भाजपा  की ‘एंट्री’ के बाद उनके समर्थक विधायकों को मलाईदार पद  देने को लेकर है। उनकी शिकायत है कि पार्टी कार्यक्रमों में दरी बिछाने,प्रचार करने और पोलिंग बूथ जैसे काम करने के बावजूद ‘इनाम’आयातित नेताओं को ही मिल रहा है ।असंतोष के सुरों को थामने और क्षेत्रीय संतुलन बनाने के लिए मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह  ने हाल ही में गौरीशंकर बिसेन, राजेंद्र शुक्ल और उमा भारती के भतीजे राहुल सिंह लोधी को कैबिनेट में जगह दी है लेकिन यह कवायद कितनी कारगर होगी, वक्‍त ही बताएगा।

चुनाव पूर्व सर्वे भी भाजपा  के समक्ष चुनौती की गंभीरता बयां कर रहे। ये सर्वेक्षण भाजपा  और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला होने की बात कह रहे। कुछ सर्वे 2018 के विधानसभा चुनाव की तरह कांग्रेस के सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने के संकेत दे रहे। संभवत:इसी कारण प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का फोकस इस समय मध्‍य प्रदेश पर हैं।अगस्‍त में सागर जिले में संत रविदास के भव्‍य मंदिर और स्‍मारक का भूमि पूजन करने पहुंचे प्रधानमंत्री  मोदी इस माह फिर एक कार्यक्रम में भाग लेने बीना पहुंचेंगे। राजनाथ सिंह और अमित शाह भी जन आशीर्वाद यात्रा को रवाना करने राज्‍य के विभिन्‍न स्‍थानों में पहुंच रहे हैं। भाजपा  की उम्‍मीद यही है कि मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान की हाल ही लोकलुभावन घोषणाओं और ‘मोदी मैजिक’ की बदौलत वह हालात अपने पक्ष में करने में सफल हो जाएगी।

वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में किसी भी पार्टी को बहुमत हासिल नहीं हुआ था। उस समय 114 सीटों के साथ कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी जबकि भाजपा  109 सीटों पर ठिठक गई थी।कांग्रेस ने जीत के बाद कमलनाथ की अगुवाई में सरकार बनाई थी लेकिन ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के भाजपा  ज्‍वॉइन करने के बाद उनके समर्थक विधायक भी इस ओर शिफ्ट हो गए थे और भाजपा  की सरकार बनने की मार्ग प्रशस्‍त हुआ था।

मुख्यमंत्री  शिवराज के सामने सबसे बड़ी समस्‍या पूर्व मुख्यमंत्री  उमा भारती की नाराजगी दूर करना है। राज्‍य के बुंदेलखंड क्षेत्र में खासा प्रभाव रखने वाली उमा जन आशीर्वाद यात्रा का न्‍यौता न मिलने से खफा हैं।उन्होंने कहा, ‘मुझे यात्रा में कहीं भी नहीं बुलाया गया। अब यदि मुझे निमंत्रण नहीं दिया तो भी मैं इसमें नहीं जाऊंगी। मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता लेकिन मन में यह सवाल जरूर आता है कि ज्‍योतिरादित्‍य ने अगर पार्टी की सरकार बनवाई तो मैंने भी तो उन्‍हें एक सरकार बनाकर दी थी।’ उन्‍होंने कहा-इन लोगो को शायद डर लगता है कि अगर मैं यात्रा में पहुंचूंगी  तो लोगों का ध्‍यान मेरी तरफ हो जाएगा।

वर्ष 2018 में कमलनाथ के नेतृत्‍व वाली कांग्रेस सरकार के करीब डेढ़ साल माह के कार्यकाल को अपवाद स्‍वरूप छोड़ दें तो मध्‍य प्रदेश में भाजपा  दो दशक से सत्‍ता में है।2003 में कांग्रेस को हराकर भाजपा  ने उमा भारती की अगुवाई में सरकार बनाई थी। इसके बाद 2008 और 2013 के चुनाव में पार्टी ने सत्‍ता में वापसी की थी।कमलनाथ सरकार की बेदखली के बाद शिवराज सिंह ने 2020 में जब फिर सत्‍ता संभाली तो कांग्रेस समर्थकों की नाराजगी यही थी कि ‘जनबल’पर ‘धनबल’ भारी पड़ने के कारण उसके हाथ से सत्‍ता गई। शिवराज ने बेशक राज्‍य में ‘मामा’ के रूप में लोकप्रियता हासिल की है लेकिन लोगों को यह भी लगने लगा कि भाजपा  नेताओं में सत्‍ता का नशा चढ़ रहा है। पोषण आहार घोटाला मामले ने सरकार की छवि को प्रभावित किया है। विधानसभा में भाजपा  को कांग्रेस के साथ एंटी इनकमबेंसी फैक्‍टर (सत्‍ताविरोधी )का भी सामना करना पड़ रहा  है।

 राज्‍य में आदिवासियों और दलितों पर जुल्‍म के सामने आए मामलों ने शिवराज सरकार की छवि पर विपरीत असर डाला है।राज्‍य के इंदौर में आदिवासी समाज के दो युवाओं तथा शिवपुरी और छतरपुर जिले में दलित समाज के खिलाफ ऐसी घटनाएं सामने आई जिन पर कांग्रेस ने सरकार को घेरा। सीधी जिले में एक आदिवासी पर एक शख्‍स द्वारा पेशाब किए जाने की घटना की गूंज तो देशभर में रही। बाद में मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह ने इस आदिवासी को अपने घर बुलाकर उसके पैर धोए और माफी मांगी। माना जा रहा कि सीधी कांड के आरोपी के घर पर बुलडोजर चलाए जाने की कार्रवाई से ब्राह्मण समाज भी सरकार से नाराज है। आरोपी का घर दोबारा बनवाने के लिए कुछ ब्राह्मण संगठनों ने चंदा भी जुटाया। विधानसभा चुनाव के पहले आदिवासी-दलित समाज के साथ ब्राह्मणों का विश्‍वास जीतने के लिए  सरकार एड़ीचोटी का जोर लगा रही।

चुनावी बेला में पिछले दो-तीन माह में भाजपा  के दो दर्जन से ज्‍यादा नेता निष्‍ठा बदलकर कांग्रेस में शामिल हुए हैं। इसमें ज्‍योतिरादित्‍य के खेमे के नेताओं के अलावा खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे खांटी भाजपा  नेता भी शामिल हैं। इन नेताओं में पूर्व मुख्यमंत्री  कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी, कोलारस विधायक वीरेंद्र रघुवंशी, भंवर सिंह शेखावत, गिरिजाशंकर शर्मा, महेंद्र बागरी और आदिवासी नेता माखन सिंह सोलंकी प्रमुख हैं। कोलारस विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी ने हाल ही में अपने एक बयान में कहा था, ‘मैं पिछले तीन सालों से कोलारस का विधायक हूं और जब से सिंधिया जी के सहयोग से भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बनाई है, तब से मुझे जनसेवा करने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।’ उन्होंने आगे कहा कि मैं विकास के मुद्दे उठाता था। लेकिन उसे अंजाम देने के लिए पार्टी के प्रभारी मंत्री तक मेरी मुलाकात शिवराज जी से नहीं करवाते थे। वीरेन्द्र रघुवंशी का आरोप है कि वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी एक खास परिवार के वर्चस्व के अंदर आ गई है। इस खास परिवार से उनका इशारा ज्योतिरादित्य सिंधिया परिवार से था।

हालांकि कांग्रेस से नाता तोड़कर कई नेता भी भाजपा  में आए हैं। चुनाव नतीजों से ही पता चल पाएगा कि नेताओं की यह ‘निष्‍ठा शिफ्टिंग’ भाजपा  को नुकसान पहुंचा पाती है या नहीं।

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