हिन्दुआ सूरज, वीरशिरोमणी, दृढ-प्रतिज्ञ, सच्चे राष्ट्र-भक्त, अदम्य साहसी,भीष्म प्रतिज्ञ, कर्तव्यनिष्ठ, छापामार युद्ध प्रणाली के जनक, शास्त्र और शस्त्र में सुशिक्षित, अनुशासनप्रिय, कुशल नेतृत्वकर्ता,कष्ट-सहिष्णु, त्याग और तप की प्रतिमूर्ति, सफल राष्ट्र निर्माता, चतुर राज-नीतिज्ञ,सफल रण-नीतिज्ञ,प्रबन्धन-कुशल,सब पन्थों का समान आदर करने वाले, दार्शनिकों, कवियों, रचनाकारों, शिल्पियों व सन्तों के विशेष संरक्षक, अद्वितीय व्यक्तित्व के धनी, मेवाड़ के महान हिंदू शासक महाराणा प्रताप (सोलहवीं शताब्दी) ऐसे शासक थे, जो मुगल शासक अकबर को लगातार टक्कर देते रहे थे। महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह के घर 9 मई, 1540 ई. को हुआ था।इनके पिता महाराजा उदयसिंह और माता राणी जीवत कंवर थीं। इसके साथ ही वह महान राणा सांगा के पौत्र थे। कहते हैं कि प्रताप का वजन 110 किलो और हाईट 7 फीट 5 इंच थी। यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। उनका निधन 29 जनवरी, 1597 को चावंड में हुआ था। प्रताप ऐसे योद्धा थे, जो कभी मुगलों के आगे नहीं झुके। उनका संघर्ष इतिहास में अमर है। महाराणा प्रताप मातृप्रेम, शौर्य और स्वाभिमान के प्रतीक कहलाते हैं। मेवाड़ की रक्षा के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन, पूरा परिवार, पूरा वैभव, अर्थात सब कुछ दांव पर लगा दिया था।जानकारी देना चाहूंगा कि बादशाह अकबर की साम्राज्यवादी नीति में मेवाड़ हमेशा एक सशक्त अवरोधक के रूप में प्रस्तुत हुआ है और इस क्रम में महाराणा सांगा से लेकर राणा प्रताप तक एक सशक्त क्रमबद्धता दिखाई देती है।कहते हैं कि उनकी वाणी में साक्षात् काली माता विराजती थी अर्थात उनकी दकाल के आगे शत्रु-दल के प्राण सूख जाते थे -‘राणा थारी दकाल सुणनै अकबर धूज्यो जाय।’ कहते हैं कि महाराणा प्रताप अपने साथ सदैव दो तलवारें रखते थे कि वीर कभी निहत्थे पर वार नहीं करता और यदि शत्रु निहत्था मिल जाता था तो वे उसे एक तलवार दे कर बराबरी पर युद्ध करते थे। श्री जयवन्ती देवी सोनगरा जैसी माता श्री उनको प्राप्त थी, यह भी प्रताप की विशेषता है।वे हिन्दू-एकता के प्रतीक थे। वे जैन, शैव, शाक्त, वैष्णव, नाथ आदि विभिन्न हिन्दू पन्थों और समस्त हिन्दू जातियों, खापों, व पंचायतों के एक-छत्र नायक थे, इसलिए हिन्दुआ-सूर्य कहलाते थे। युद्ध काल में उन्होंने गाँव-खेत-खलिहान खाली करवा दिए थे तो शान्तिकाल में खेती को विकसित करने के लिए ‘विश्व-वल्लभ’ नामक पुस्तक उन्होंने लिखवायी थी। जानकारी देना चाहूंगा कि हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के पास सिर्फ 20000 सैनिक थे और मुगल शासक अकबर के पास 85000 सैनिक थे, इसके बावजूद भी महाराणा प्रताप ने अकबर से हार नहीं मानी थी और स्वतंत्रता के लिए लगातार संघर्ष करते रहे थे।
ऐसा माना जाता है कि हल्दीघाटी(18 जून 1576 ई.) के युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही राणा हारे थे। यह युद्ध अनिर्णायक रहा था। कहते हैं कि महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का था और उनकी छाती का कवच 72 किलो का था। सच तो यह है कि महाराणा प्रताप के हथियारों को इतिहास के सबसे भारी युद्ध हथियारों में शामिल किया गया हैं।आपको जानकारी प्राप्त करके आश्चर्य होगा कि उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था। कहते हैं कि अकबर ने महाराणा प्रताप को समझाने के लिए 6 शान्ति दूतों को भेजा था, जिससे युद्ध को शांतिपूर्ण तरीके से खत्म किया जा सके, लेकिन महाराणा प्रताप ने यह कहते हुए हर बार उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया था कि राजपूत योद्धा यह कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता। प्रताप ने अपनी पत्नी और बच्चों के साथ जंगलों में भटकते हुए तृण-मूल व घास-पात की रोटियों में गुजर-बसर किया किंतु कभी भी धैर्य और संयम नहीं खोया। अथाह विकट परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने मातृभूमि के प्रति अपनी निष्ठा और स्वाभिमान को जागृत रखते हुए मुगल शासन के विरुद्ध अपनी लड़ाई हमेशा जारी रखी। कहते हैं कि बादशाह अकबर के 30 वर्षों के लगातार प्रयास के बावजूद भी वह महाराणा प्रताप को बंदी नहीं बना सके थे। प्रताप के घोड़े का नाम चेतक था, जो बहुत ही वफादार और बहादुर था। जानकारी मिलती है कि जब युद्ध के दौरान मुगल सेना उनके पीछे पड़ गई थी तो चेतक ने महाराणा प्रताप को अपनी पीठ पर बैठाकर कई फीट( लगभग 26 फीट) लंबे नाले को पार किया था।आज भी चित्तौड़ की हल्दी घाटी में चेतक की समाधि बनी हुई है। यहाँ यह भी बता दूं कि हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लड़ने वाले एकमात्र मुस्लिम सरदार हकीम खां सूरी थे।महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में आज भी सुरक्षित हैं।अकबर ने राणा प्रताप को कहा था कि अगर तुम(महाराणा प्रताप) हमारे आगे झुकते हो तो आधा भारत आप का रहेगा, लेकिन महाराणा प्रताप ने कहा मर जाऊँगा लेकिन मुगलों के आगे सर नहीं नीचा करूंगा। यह भी कहते हैं कि प्रताप का सेनापति सिर कटने के बाद भी कुछ देर तक लड़ता रहा था। प्रताप ने मायरा की गुफा में घास की रोटी खाकर दिन गुजारे थे।अकबर ने एक बार यह बात कही थी कि अगर महाराणा प्रताप और जयमल मेड़तिया मेरे साथ होते तो हम विश्व विजेता बन जाते। अकबर महाराणा प्रताप का सबसे बड़ा शत्रु था, पर उनकी मौत का समाचार सुन अकबर रोने लगा था क्योंकि ह्रदय से वो महाराणा प्रताप के गुणों का बहुत बड़ा प्रशंसक था और अकबर यह बात अच्छी तरह से जानता था कि महाराणा जैसा वीर इस धरती पर कोई नहीं है।अंत में यही कहूंगा कि महाराणा प्रताप ने अपने अप्रतिम साहस, शौर्य और युद्ध कौशल से मां भारती को सदैव गौरवान्वित किया है और करते रहेंगे । मातृभूमि के लिये उनका त्याग और समर्पण सदैव स्मरणीय रहेगा। प्रसिद्ध राजस्थानी साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया जी ने अपनी रचना ‘पीथल और पाथल’ में बड़े ही शानदार शब्दों में लिखा है-‘… हूं लड्यो घणो हूं सह्यो घणो मेवाड़ी मान बचावण नै, हूं पाछ नहीं राखी रण में
बैर्यां री खात खिडावण में, जद याद करूँ हळदीघाटी नैणां में रगत उतर आवै, सुख दुख रो साथी चेतकड़ो सूती सी हूक जगा ज्यावै, पण आज बिलखतो देखूं हूँ जद राज कंवर नै रोटी नै, तो क्षात्र-धरम नै भूलूं हूँ, भूलूं हिंदवाणी चोटी नै मैं’लां में छप्पन भोग जका मनवार बिनां करता कोनी, सोनै री थाल्यां नीलम रै बाजोट बिनां धरता कोनी, अै हाय जका करता पगल्या, फूलां री कंवळी सेजां पर, बै आज रुळै भूखा तिसिया, हिंदवाणै सूरज रा टाबर,…!
-सुनील कुमार महला