नॉन स्मोकर्स में बढ़ रहा है लंग कैंसर का प्रकोप, नियमित स्क्रीनिंग से सम्भव है बचाव प्रदूषण व धुएं के संपर्क में रहने से बढ़ता है खतरा, बरतें सावधानी

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जयपुर। लंग कैंसर को आमतौर पर धूम्रपान से जोड़ा जाता है। लेकिन बीते कुछ समय में नॉन-स्मोकर्स में लंग कैंसर के बढ़ते मामले देखने को मिल रहे हैं। श्वांस रोग विशेषज्ञ डॉ. शुभ्रांशु बताते हैं कि इन बढ़ते मामलों के पीछे कई कारण हैं। जैसे पैसिव स्मोकिंग, बढ़ता प्रदूषण, इंडोर एलर्जी इत्यादि। गौरतलब है कि थोड़ी सावधानी बरतने और स्क्रीनिंग टेस्ट्स से नॉन-स्मोकर्स लंग कैंसर के खतरे को कम कर सकते हैं। शुभ लाइफ क्लिनिक के श्वांस रोग विशेषज्ञ डॉ. शुभ्रांशु बताते हैं कि नॉन-स्मोकर्स में बढ़ते लंग कैंसर के मामलों में सबसे बड़ा कारण है पैसिव स्मोकिंग। गौरतलब है कि लोगों को लगता है कि यदि वे स्वयं धूम्रपान नहीं कर रहे तो उन्हें कोई खतरा नहीं। लेकिन यदि वे धूमप्रान कर रहे व्यक्ति या धुंए के संपर्क में आते या रहते हैं तो उन्हें भी बीमारी का खतरा उतना ही होता है जितना एक स्मोकर को। इसके बाद प्रदूषण भी बढ़ते लंग कैंसर पेशेंट्स की संख्या का प्रमुख कारण है।

बड़ी-बड़ी मेट्रो सिटीज में प्रदूषण इस हद तक बढ़ गया है कि कुछ शोध बताते हैं कि एक दिन उन शहरों की हवा में सांस लेना करीब 10 सिगरेट पीने के बराबर दुष्प्रभाव डाल रहा है। इसी के साथ ऐसे क्षेत्र जहाँ बड़ी फैक्ट्री लगाई गई हैं, उनके द्वारा निकलने वाले हानिकारक केमिकल्स और डस्ट से शरीर में फेफड़ों पर गहरा दुष्प्रभाव पड़ता है जो समय के साथ और ख़राब होता जाता है। नॉन स्मोकर्स में लंग कैंसर बढ़ने का भी एक नया कारण इंडस्ट्रियल प्रदूषण भी बनता जा रहा है। इसके अलावा आज भी कई घरों और गाँव में चूल्हे पर खाना बनाया जाता है। चूल्हे से निकलने वाला धुआं भी फेफड़ों के लिए अत्यधिक हानिकारक साबित होता है। इससे टीबी होने की संभावना तो बढ़ती ही है साथ ही लम्बे समय तक इस धुंए के सम्पर्क में रहने से लंग कैंसर का खतरा भी काफी बढ़ जाता है। गौरतलब है कि आजकल इनडोर पोलूटेंट्स और फाइन डस्ट का एक्सपोज़र भी बहुत बढ़ गया है। घरों में लोग अब ज्यादा से ज्यादा कारपेट और ऐसे पदार्थों से बने फैब्रिक्स का उपयोग कर रहे हैं जो फाइन डस्ट को पकड़ के रखते हैं। ऐसे में फेफड़ों से जुड़े रोग, एलर्जी और लम्बे समय तक एक्सपोज़र से लंग कैंसर का खतरा भी बढ़ सकता है।

नीयमित चेस्ट सीटी स्क्रीनिंग से संभव है बचाव, समय रहते मिल सकता है बेहतर इलाज
लगातार खांसी आना, खांसी के साथ खून आना, सीने में दर्द होना या बेवजह वजन कम होना जैसे लक्षण यदि देखने को मिलते हैं तो सतर्क हो जाना चाहिए व जरूरी जांचें करानी चाहिए। ये कैंसर के लक्षण हो सकते हैं। डॉ. शुभ्रांशु बताते हैं कि स्मोकर्स को नियमित रूप से हर 6 महीने में एक बार लो डोज़ सीटी स्कैन स्क्रीनिंग करानी चाहिए। वहीँ ऐसे लोग जिन्हें उपरोक्त रिस्क फैक्टर्स हैं, उन्हें साल में एक बार तो लो डेंसिटी चेस्ट सिटी स्कैन जरूर करानी चाहिए। इस स्क्रीनिंग से पनप रहे कैंसर का पता चल सकता है व समय रहते उसका बेहतर इलाज किया जा सकता है। बचाव के तौर पर डस्ट और प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने का प्रयास करें, धूमप्रान न करें और साथ ही धुएं के संपर्क में आने से बचें व बेहतर ऑक्सीजन के लिए ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाएं।

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