छत्तीसगढ़ म नौकरी के बरसात, जोन भीगगे उही खास

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आरक्षण के अदालती फइसला के राहत ले छत्तीसगढ़ म आनी-बानी के बिकेंसी के धुआ गुंगवात हे। जरूरी घलो हरे काबर की चुनावी बछर म अगर सरकारी नौकरी के छमाछम बरसा नइ होही त, रोजगार के नाव म वोट के खेल बिदर जहीं। बर्तमान म बेरोजगारी के मार झेलत लइका मन के मन तको मुस्कुरावत हे, काबर की गेदराए आम रूपी सरकारी नौकरी के अबसर म अपन भविष्य के किसम-किसम के सपना के बियासी करे के तियारी चलत हे।
भरती परीक्षा ले लेके,नियुक्ति तक के दउड़ म कोनो कसर म छुटय कहिए, कोचिंग के मार्गदर्शन बर घलो युवा मं ठउर-ठउर भटकता हे। गोठ चाहे दंतेवाडा के हो, अम्बिकापुर, सरगुजा या दूरुग भिलई के हो कोचिंग सेंटर के संचालक मन तो चिल्ला-चिल्ला के कहत हे, कका हे-तो भरोसा हे। परिक्छा म पास होए अऊ नौकरी के बाट जोहे बर उदिम-उदिस के परियास करत हे। कोनो गुरुजी,कोनो आपरेटर त कोनो कहत हे चपरासी भर के नौकरी लगा दे कका। अंधों के लेना न मांधो के देना के हाना तो जम्मो सूने हवन, इसने कस आज काली के टूरा-टानका इहो गोठ ल बिसरा ठारिन की नौकरी बिगन तो संगवारी नइ पूछे, अउ नइ पूछे दाई घर म दार-भात, बिहतरा तो बनते रहिथन, बने दुल्हा बर पूछे ससुरा करथस का तेज कोनो सरकारी काज। मनों सरकारी नौकरी नइ रासन कारड हरे, मिलिस तो मांदी भात नही त परो उपास।
जुगाड़ के इसी सरेखा म मोला सुरता आथे। जइसे नौकरी के भरती खूलथे- तइसे डिग्री तो डिग्री तत्काल वाला डिग्री के कारोबार के यहा गर्मी के महिना मं भूर्री तपईया मनके कोनो कमी नइ हे। नमुसी के कोन ल चिंता हे, अभी तो अबसर जिंदा हे कहिके घलो, बीच रथिया के छपा-छपा लइ-चोपी कस धकाधक डिग्री घलो छप जथे। काबर सरकारी नौकरी के सवाल हे बबा।
जइसे नंदिया म पानी बर कलपत मनखे बर चुहरा के छलक जिंनगी के आस बन जथे। जइसे भोरहा के खोंधरा हर, आसा के पियास बन जथे। उसने बेरोजगारी के करिया रंग ल मिटाए बर पाउडर थोकन माहंगी म बिसा लेबे तभो का घाटा हे। भई जिनगी के भरके फइदा अउ परिबार ल इहीं कलियुग म सतयुग के सुख दिखाए के इरादा हे। इसने मरम के चार तिरिया चक्कर तको चलत हे। परेतिन के बेनी धरईया कस अठल-मठल करके डिग्री छपईया मन के कोन से कमी हे।
अउ तो अउ हुदर-हुदर के परान लेवइया परोसी के सवाल के जवाब देके बेर आगे कहिके ददा तो, अखबार के कोंटा-कोंटा ल पढ़त हे। काबर की भक्का म नौकरी हर दुरगासी चाटी के बिला ले निकले कस अजो,काली अऊ परनदिन निकलत हे। दई के ताना अऊ समधिन के चिढ़ाना कि अतेक पढ़े ले का करेस, टंगिया धर के बनबिलवा मन कस घुमथ, जइसे जम्मों हाना ल थिराना हे काबर की एसो प्रतियोगिता परिक्छा दिलाना हे।
फेर चिंता कोनो ल नइ हे कि परिक्छा के बाद का होही। का बरा सोहारी चुरही धुन पिछघुच्चा चुनावी बछर कस नौकरी के लाहर, कस मन के लाडू मने म घुट जही। का चुनाव से पहली रिजल्ट अउ ज्वाइनिंग के इंटा रच जही। धून अंडा के घर बनाए अऊ पथारा के छानही कस किसा होके। कलेजा चिटपुटा के रह जही ए तो खैर बखत हर जरूर बताही। अभी तो अटकन-मटकन के बेरा हे, जोन परिक्छा म पछुवाही उही दाम दिही, बाकी तो जिंनगी आराम ले जिही क नारा अछी छत्तीसगढ़ के भुइंया म छाए हे। काबर रोजगार के वादा पुरा करे बर कका घलो कमर कसके आघु आए हे।
बांचे खोचें म जोन आखरी बछर के पढ़ई करइया लइका मन के मनतरपी होवत हे। अतेक छटपटासी म उदासी के घला बादर छावत हे। काबर की चुनाव के बाद बछर दू-चार बछर तो भरती के अकाल जरूर परही। अइसे म परिक्छा म नइ बइठ सकिन देकर मन के जी जरूर तड़पही। जी भूलवारे बर दू चार गाने हे, बाचे कसर ल सोशल मीडिया हर पूरा करही। न खाए भात सुहाही ना खाए साग मिठाही, कोन जनी फेर कब सरकारी नौकरी के बदरा छाही।

-पुखराज प्राज

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