बोया पेड़ बबूल का तो फल कैसे होय !

ram

2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में इस बार पीलीभीत सीट से टिकट कटने की आशंकाओं के बीच वरुण गांधी ने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने की तभी से तैयारी शुरू कर दी थी । वरुणा गांधी तीन बार से सांसद रह चुके हैं। पार्टी के आंतरिक सूत्रों के अनुसार लगने लगा था कि उनका और उनकी मां मेनका गांधी का टिकट काटा जा सकता है। इन्हीं कयासबाजियों के बीच उन्होंने पीलीभीत लोकसभा सीट पर अपनी ताकत जुटानी शुरू कर दी थी । पीलीभीत सीट पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए उन्होंने जिस रणनीति पर काम शुरू किया थी , वह भाजपा की मुश्किलें बढाती रही थी । वरुण गांधी ने लोकसभा क्षेत्र में बने कार्यालयों पर भाजपा के पोस्टर तो लगाए थे , लेकिन सांसद ने अपनी एक अलग टीम भी बनानी शुरू की थी , जो उनके पक्ष में चुनाव प्रचार कर रही थी ।

वरुण ने युवाओं की इस फौज को लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली सभी पांच विधानसभा सीटों में चुनाव प्रचार के लिए उतार दिया था । युवाओं की इस टीम के कार्यकर्ता खुद को भाजपा से अलग टीम वरुण गांधी का सदस्य बताते रहे । मतलब साफ था । पीलीभीत में वरुण अपनी पहचान भाजपा सांसद से इतर पीलीभीत के सांसद के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे । इसमें यह संदेश एकदम स्पष्ट था कि अगर भाजपा ने उनका टिकट काटा, तो वे अपने दम पर चुनाव मैदान में उतर कर भाजपा प्रत्याशी को तगड़ी टक्कर दे सकते हैं।

लोकसभा चुनाव में चुनाव प्रचार को लेकर वरुण गांधी ने 500 से ज्यादा युवाओं को पीलीभीत के चुनाव प्रचार के लिए तैयार किया । यूथ ब्रिगेड में स्थानीय स्तर के कुछ लड़कों को शामिल किया गया । इसके अलावा, बड़ी संख्या में बाहर से भी युवाओं को लाया गया । टीम वरुण गांधी के ये सदस्य बीबीए, एमएबीए, स्नातक्र, पीजी और इंजीनियरिंग के छात्र रहे । इन ज्यादातर छात्रों का संबंध ग्रामीण परिवारों से रहा ।

इन सभी को आईटी सेल की जिम्मेदारी दी गई । उन्होंने व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर मिशन 2024 पर काम शुरू कर दिया । यूथ ब्रिगेड के सदस्य लोगों की समस्याएं सुन रहे थे । इसके बाद स्थानीय स्तर पर अधिकारियों के साथ मिलकर इसका समाधान कराया जा रहा था । इन कार्यों के जरिए क्षेत्र में वरुण गांधी अपनी पकड़ और पहचान दोनों बनाए रखने की कोशिश कर रहे थे ।

वरुण गांधी यूथ ब्रिगेड की शाखाएं लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली सभी पांच विधानसभा सीटों में खोली गई । यूथ ब्रिगेड के सदस्य लोगों से मिलते रहे । बहुत बड़े पैमाने पर व्हाट्सएप ग्रुप पर लोगों को जोड़ा जाता रहा । उनकी समस्याएं सुनी जाती रही । बिजली बिल, किसान लोन, पशु लोन, पीएम आवास योजना, उज्ज्वला योजना, पेंशन स्कीम जैसी योजनाओं में लोगों को आने वाली समस्याओं के समाधान के लिए यह टीम दिन रात काम चल रहा था ।

स्थानीय लोगों को पुलिस के स्तर पर होने वाली परेशानियों का भी यूथ ब्रिगेड समाधान कर रही थी । थानों से लोगों को मदद दिलाई जा रही थी । लोगों से सीधे अपने स्तर पर कनेक्ट कर वरुण गांधी क्षेत्र में अपने स्तर पर पहचान बनाने का प्रयास कर रहे ताकि अगर भाजपा उन्हें टिकट नहीं दे, तो भी वे अपने स्तर से इस सीट पर अपनी जीत दर्ज कर सकें। उनकी यह तैयारी निश्चित रूप से भाजपा को परेशान करने वाली रही ।

वरुण गांधी केंद्र और प्रदेश की सरकार पर लगातार हमला बोलते रहे । अल्पसंख्यकों को लेकर अक्सर अपने विवादित बयान देने वाले फायरब्रांड वरुण गांधी ने हाल के दिनों में अपने बयानों में बदलाव किया । इन दिनों वह विभिन्न मुद्दों पर केंद्र और राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा करते दिखाई दे रहे थे । वह भाजपा सरकार की सीधे आलोचना करते रहे , जबकि वह स्वयं भाजपा सांसद थे । यह उनकी सोची-समझी योजना का हिस्सा था । जिसके जरिए वह क्षेत्र में अपनी छवि को अलग रूप देने में जुट गए थे ।

पीलीभीत से एक बार फिर चुनाव मैदान में उतारने का दावा करने वाले वरुण गांधी जानते थे कि इस बार उनका टिकट काटा जा सकता है। वह तीन बार से सांसद हैं और उनकी मां मेनका गांधी लगातार 8 बार से सांसद हैं। वरुण जानते हैं कि उन्हें इस बार शायद टिकट न मिले, इसी लिए उन्होंने पहले से तैयारी शुरू कर दी थी । उन्होंने अपनी टीम के साथ पीलीभीत की विधानसभाओं में जोरदार चुनाव प्रचार शुरू कर दिया । वह अधिक से अधिक लोगों से सीधे मिलने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि स्थानीय लोग उन्हें क्षेत्रीय सांसद के रूप में स्वीकार करने में परहेज न करे।

वरुण गांधी ने मुजफ्फरनगर का मुद्दा भी जोरदार तरीके से उठाया था । ज्ञात हो कि मुजफ्फरनगर के एक स्कूल में मासूम बच्चे के साथियों की पिटाई का मुद्दा उस समय खास गरमाया हुआ था । इसको लेकर राहुल गांधी से लेकर असदुद्दीन ओवैसी तक केंद्र और राज्य सरकार पर हमला बोल चुके थे ।

वरुण गांधी ने भी इस पर कहा है कि ज्ञान के मंदिर में एक बच्चे के प्रति घृणा भाव ने पूरे देश का सिर शर्म से झुका दिया है। शिक्षक वह माली है, जो प्राथमिक संस्कारों में ज्ञान रूपी खाद डालकर व्यक्तित्व ही नहीं राष्ट्र गढ़ता है। इसलिए दूषित राजनीति से पड़े एक शिक्षक से कहीं अधिक उम्मीदें हैं। देश के भविष्य का सवाल है। वरुण गांधी ने दूषित राजनीति के जरिए वर्तमान राजनीतिक माहौल पर तंज कसते रहे ।

अब हुआ वही जिसका अंदाजा था क्योकि बोया पेड़ बबूल का तो फल कैसे होय . भाजपा ने लोकसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की पांचवीं सूची में उत्तर प्रदेश से सात मौजूदा सांसदों को हटा दिया , जिनमें गाजियाबाद से केंद्रीय मंत्री वीके सिंह और बरेली से पूर्व केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार शामिल हैं। हालाँकि, 2024 की लड़ाई के लिए चुने गए नामों में वरुण संजय गांधी की अनुपस्थिति बाकियों से अलग है। उत्तर प्रदेश के मंत्री जितिन प्रसाद को पीलीभीत से मैदान में उतारा गया है। यह सीट 1996 से वरुण और उनकी मां मेनका गांधी के बीच रही है।

हालाँकि नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय परिदृश्य पर आने से एक साल पहले, वरुण गांधी को भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव और पश्चिम बंगाल का प्रभारी बनाया गया था। परन्तु उन्होंने संगठनात्मक कार्यों में शायद ही कभी रुचि दिखाई। यह बंगाल के सह-प्रभारी सिद्धार्थ नाथ सिंह थे जो उनकी ओर से कार्य कर रहे थे। हालांकि राहुल गांधी और अखिलेश यादव के खिलाफ उनके लगातार आक्षेपों ने सुनिश्चित किया कि 2014 के चुनावों में उनकी गलतियों पर ध्यान न दिया जाए, लेकिन जल्द ही, उनके और भाजपा के बीच समस्याएं पैदा होने लगीं।

अब वरुण गाँधी के टिकट कटने में बड़े कारणों में पहला कारण जिसने भाजपा नेतृत्व को परेशान कर दिया था वह 2016 में था जब संजय गांधी के बेटे ने पार्टी के भीतर पोस्टर युद्ध की घोषणा की थी। प्रयागराज में भाजपा की महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से ठीक पहले -शहर भर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की तस्वीरों के साथ वरुण गांधी के चेहरे वाले बड़े-बड़े होर्डिंग लगे हुए पाए गए। यह माना गया कि वरुण 2017 के उत्तर प्रदेश चुनाव में खुद को भाजपा के अगले मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में पेश कर रहे थे। जिस बात ने कई लोगों को चौंका दिया, वह यह थी कि भाजपा नेतृत्व ने उनसे अपनी राजनीतिक गतिविधियों को उनके तत्कालीन निर्वाचन क्षेत्र सुल्तानपुर तक ही सीमित रखने के लिए कहा था, इसके बावजूद उनका अति उत्साह था।

एक और कारण यह है कि उसी वर्ष, वरुण ने एक आवास पहल शुरू की जिसके तहत उन्होंने गरीबों, मुसलमानों और पिछड़ी जातियों के लिए संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास निधि से कई घर बनाए। उन्होंने घर बनाने के लिए अपने निजी धन का भी उपयोग किया। मकान वितरित करते समय, उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि मैं एक आशावादी हूं और उन चीजों को करने में विश्वास करता हूं जो लोगों की मदद कर सकती हैं। वे (लोग) पुराने राजनीतिक तरीकों से तंग आ चुके हैं। आज के युवा केवल बयानबाजी के बजाय परिणामों पर विश्वास करते हैं। उस समय कई लोगों ने इसे उनके अन्य सहयोगियों पर कटाक्ष के रूप में देखा और पार्टी ने इसे अधिक गंभीरता से नहीं लिया।

कोविड-19 की पहली लहर खत्म हो गई थी और दूसरी लहर के दौरान, 2021 में रात का कर्फ्यू वापस लाया गया – एक ऐसा कदम जो वरुण गांधी को पसंद नहीं आया। उन्होंने कोविड-19 पर अंकुश लगाने के लिए रात्रि कर्फ्यू लगाने के योगी आदित्यनाथ सहित राज्य सरकारों के फैसले पर सवाल उठाया। इसके अलावा वह लगातार किसान आंदोलन के दौरान पार्टी की रणनीति पर सवाल खड़े करते रहे। वह अपनी ही सरकार पर जमकर निशाना साधते थे। उसी वर्ष, वरुण गांधी एक बार फिर अपनी पार्टी के साथ युद्ध में उलझ गए, जब केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी से जुड़े वाहनों के प्रदर्शनकारी किसानों की भीड़ में घुसने के कारण लखीमपुर खीरी में चार किसानों सहित आठ लोगों की जान चली गई।

सबसे हालिया और गंभीर वाकयुद्ध में से एक, जो ताबूत में आखिरी कील साबित हो सकता है, वह था जब भाजपा नेता ने पिछले साल सितंबर में अमेठी में संजय गांधी अस्पताल के लाइसेंस के निलंबन की आलोचना करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार पर हमला बोला था। उन्होंने इसे “एक नाम के खिलाफ नाराजगी” करार दिया। अस्पताल का नाम वरुण गांधी के पिता के नाम पर रखा गया है और कांग्रेस नेता सोनिया गांधी संजय गांधी मेमोरियल ट्रस्ट की अध्यक्ष हैं, जो अमेठी अस्पताल चलाती है। यह बताना मुश्किल हो सकता है कि वरुण गांधी और भाजपा कब ऐसी स्थिति में पहुंच गए जहां से वापसी संभव नहीं थी।

हालांकि, पिछले कुछ महीनों में वरुण गांधी मोदी सरकार के काम की प्रशंसा करके भरपाई करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन पार्टी को शर्मिंदा करने के उनके लंबे ट्रैक रिकॉर्ड की भरपाई कुछ महीनों में नहीं की जा सकी। जबकि वरुण गांधी को अप्रत्याशित रूप से लेकिन अनुमानित रूप से हटा दिया गया है, भाजपा ने उनकी मां मेनका गांधी को उनकी सीट सुल्तानपुर से फिर से उम्मीदवार बनाकर परिवार के साथ संतुलन बनाए रखने की कोशिश की है। वाजपेयी और मोदी सरकार (प्रथम कार्यकाल) में समान रूप से मंत्री रहीं, मेनका गांधी को टिकट देना एक संकेत है कि भाजपा को परिवार से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन उनके बेटे के लगातार पार्टी विरोधी बयानबाज़ी से दिक्कत है।

– अशोक भाटिया,

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *