ऊल-जलूल और विवादित बयानों से गरमाई देश की सियासत

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देश में लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही मौसमी गर्मी के संग चुनाव प्रचार की गर्मी
देश भर में प्रचंड रूप लेने जा रही है। इसी के साथ नेताओं के विवादित, अभद्र और
शर्मसार करने वाले बयानों ने भाषा की मर्यादा को तार तार करके रख दिया है। नेता लोग
अक्सर चर्चा में रहने के लिए ऊल-जलूल और समाज में कटुता फैलाने वाले बयान देते रहते
है। विशेषकर चुनावों के दौरान गंदे बोलों से चुनावी बिसात बिछ जाती है। कांग्रेस की एक
प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने मंडी से भाजपा प्रत्याशी और अभिनेत्री कंगना रनौत पर बेहद
विवादस्पद टिप्पणी कर आग में घी डालने का कार्य किया है। भ्रष्टाचार के आरोपों में दिल्ली
के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल इस समय ईडी की हिरासत में है। केजरीवाल की पार्टी आप
के नेताओं ने इस गिरफ़्तारी से बौखलाकर प्रधानमंत्री पर जिस भाषा में आरोप प्रत्यारोपों की
बौछारे शुरू की है वह निश्चय ही लोकतंत्र के लिए घातक है।तमिलनाडु के नेता लगातार
अभद्र बयान दे रहे है। वहीं कांग्रेस के नेता यह कहने लगे है तानाशाह मोदी जीत गया तो
यह आखिरी चुनाव होगा। मोदी के परिवार को लेकर पहले ही अभद्र टिप्पणियां मीडिया में
सुर्खियां लिए हुए है।
कुछ सियासी नेताओं ने तो लगता है विवादित बयानों का ठेका ले रखा है। कई नेताओं पर
विवादित बयानों पर मुक़दमे भी दर्ज़ हुए। कुछ को न्यायालय से सजा भी मिली। मगर
इसका उनपर कोई फर्क नहीं पड़ा। विवादित बयानबाजी के कारण सुर्खियों में रहना नेताओं
को शायद आनंद देने लगा है। देश के न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर नफरत और
घृणा के बादल मंडरा रहे है। नफरत और घृणा के इस महासागर में सभी सियासी पार्टियां
डुबकी लगा रही है। न्यूज चैनलों पर विभिन्न सियासी दलों के प्रतिनिधि जिस प्रकार की
भाषा का प्रयोग करते है उन्हें देखकर लगता नहीं है की यह गाँधी, सुभाष, नेहरू, लोहिया
और अटलजी का देश है। देश की सर्वोच्च अदालत कई बार इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर
नियामकीय नियंत्रण की कमी पर अफसोस ज़ाहिर कर चुकी है । सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं के
भाषण और टीवी चैनलों को नफरती भाषण फैलाने का जिम्मेदार ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने
हेट स्पीच मामले में कई बार टेलीविजन चैनलों को जमकर फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने
कहा कि टेलीविजन चैनल समाज में विभाजन पैदा कर रहे हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि
टीवी चैनल ऐसे चैनल एजेंडे से संचालित होते हैं, जो विभाजन पैदा करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने
कहा कि टीवी चैनल सनसनीखेज न्यूजों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं और अपने धनदाताओं
(मालिकों) के आदेश के अनुसार काम करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नफरत फैलाने वाली
बातें एक ‘बड़ा खतरा हैं और भारत में स्वतंत्र एवं संतुलित प्रेस की जरूरत है। सुप्रीम

कोर्ट ने कहा कि यदि एंकरों और न्यूज़ चैनल के प्रबंधकों के खिलाफ कार्रवाई हो तो सब
लाइन पर आ जाएंगे। शीर्ष अदालत ने कहा कि आजकल सब कुछ टीआरपी से संचालित
होता है और चैनल एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं तथा समाज में विभाजन पैदा कर
रहे हैं।
पिछले दो दशक से गंदे और विवादित बोल बोले जा रहे है। नेताओं के बयानों से गाहे बगाहे राजनीति की
मर्यादाएं भंग होती रहती है। अमर्यादित बयानों की जैसे झड़ी लग जाती है। राजनीति में बयानबाजी का
स्तर इस तरह नीचे गिरता जा रहा है उसे देखकर लगता है हमारा लोकतंत्र तार तार हो रहा है। जिस
तरह से एक के बाद एक नेता विवादित बयान दे रहे हैं, उसकी वजह से चुनावी माहौल में सरगर्मी बढ़ गई
है। विवादित बयान देने में कांग्रेस और भाजपा सहित कोई भी नेता पीछे नहीं है। कहते है राजनीति के
हमाम में सब नंगे है। यहाँ तक तो ठीक है मगर यह नंगापन हमाम से निकलकर बाजार में आजाये तो
फिर भगवान ही मालिक है। सियासत में विवादास्पद बयान को नेता भले अपने पॉपुलर होने का जरिया
मानें, लेकिन ऐसे बयान राजनीति की स्वस्थ परंपरा के लिए ठीक नहीं होते। हमारे माननीय नेता
आजकल अक्सर ऐसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे हमारा सिर शर्म से झुक जाता है। देश के
नामी-गिरामी नेता और मंत्री भी मौके-बेमौके कुछ न कुछ ऐसा बोल ही देते हैं, जिसे सुनकर कान बंद
करने का जी करता है।

– बाल मुकुन्द ओझा

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