क्या I-N-D-I-A गठबंधन में दरार पड़ना शुरू हो गई है ?

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कांग्रेस के साथ 26 क्षेत्रीय दलों का नवोदित गठबंधन इंडिया भाजपा से  मुकाबले के लिए बन चुका है। गठबंधन बनने के कुछ माह भी नहीं बीते कि इसमें अभी से फूट पड़ती दिख रही है। कांग्रेस के दिल्ली की सभी सात सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद आप और कांग्रेस में ठन गई है।बता दें कांग्रेस और आप दोनों इंडिया गठबंधन में शामिल है।कांग्रेस नेतृत्व ने बुधवार  को एआईसीसी मुख्यालय में दिल्ली कांग्रेस के नेताओं के साथ बैठक की। इस दौरान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने नेताओं से बातचीत की। इस बीच कांग्रेस नेता अलका लांबा की ओर से दिल्ली की सभी सात लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने वाले बयान से सियासी खलबली मच गई।

वहीं आम आदमी पार्टी  ने विपक्षी गठबंधन इंडिया की बैठक में शामिल नहीं होने तक की चेतावनी दे डाली। तो इस पर कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल को  सफाई देनी पड़ी। अलका लांबा ने कहा कि मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाना है। लोकसभा की सात सीटें हैं और ये सीटें कैसे जीतनी हैं, इसको लेकर हमें आदेश दिया गया है। इन सभी सातों सीटों पर संगठन के नेताओं को काम करना है।दिल्ली में बुधवार को संगठन की मजबूती और आगामी चुनावों को लेकर कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की बैठक के बाद पार्टी नेता अलका लांबा के एक बयान से विपक्षी गठबंधन इंडिया में दरार के कयास लगाए जा रहे हैं। तीन घंटे तक राहुल गांधी, कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खडग़े, केसी वेणुगोपाल और दीपक बाबरिया जैसे नेताओं की मौजूदगी में हुई बैठक के बाद अलका लांबा ने कहा कि पार्टी ने हमें आगामी लोकसभा चुनाव के लिए तैयारी करने को कहा है। यह निर्णय लिया गया है कि दिल्ली में सभी सात सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।  अलका लांबा ने कहा कि पार्टी ने सभी सातों सीटों पर तैयारी रखने को कहा है। संगठन की तरफ से जो जिम्मेदारियां तय की जाएंगी उस पर हम लोग काम करेंगे।अलका लांबा के इस बयान के बाद कांग्रेस के कई नेताओं को सफाई देनी पड़ी। दिल्ली कांग्रेस प्रभारी दीपक बाबरिया ने कहा कि अलका लांबा एक प्रवक्ता हैं, लेकिन ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात करने के लिए वह अधिकृत प्रवक्ता नहीं हैं। मैंने प्रभारी के तौर पर कहा है कि आज बैठक में ऐसी कोई चर्चा नहीं हुई। मैं अलका लांबा के बयान का खंडन करता हूं।

इस बयान के बाद आम आदमी पार्टी की मुख्य प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जब कांग्रेस गठबंधन नहीं करना चाहती तो फिर मुंबई में 31 अगस्त और एक सितंबर को होने वाली विपक्षी गठबंधन की बैठक में आप के शामिल होने का कोई मतलब नहीं है। यह समय की बर्बादी है। हमारी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व तय करेगा कि इंडिया गठबंधन की अगली बैठक में शामिल होना है या नहीं। अलका ने आगे कहा कि पार्टी के पास सात महीने बचे हैं और सभी कार्यकर्ताओं को सातों सीटों के लिए तैयारी करने को कहा गया है। अलका लांबा के इस बयान के बाद दिल्ली में आम आदमी पार्टी के मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कहा कि कांग्रेस ने दिल्ली की सभी सात लोकसभा सीटों पर चुनाव लडऩे की बात की है।

बताया जाता है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के उनके समकक्ष भगवंत मान 20 अगस्त को मध्य प्रदेश के रीवा में एक रैली को संबोधित करेंगे। ‘आप’ की मध्य प्रदेश इकाई के एक नेता ने बुधवार को यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस अवसर पर उम्मीद है कि केजरीवाल साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले मतदाताओं को आम आदमी पार्टी की ‘गारंटी’ की घोषणा करेंगे। पार्टी के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव पंकज सिंह के अनुसार  को बताया कि ‘आप’ के संयोजक केजरीवाल और पार्टी के वरिष्ठ नेता मान सभा को संबोधित करेंगे और रीवा में लोगों के साथ बातचीत भी करेंगे। रीवा, मध्य प्रदेश के विंध्य इलाके का प्रमुख शहर है।सिंह के अनुसार  कार्यक्रम के दौरान केजरीवाल कुछ घोषणाएं करेंगे, जैसा कि सभी जानते हैं, केजरीवाल न केवल घोषणाएं करते हैं बल्कि सुविधाओं की गारंटी भी देते हैं।  उनके अनुसार ‘आप’ मध्य प्रदेश की सभी 230 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रही है। वर्तमान में मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी  का शासन है। उन्होंने कहा कि ‘आप’ ने आगामी चुनावों के लिए उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी है और सूची को अंतिम रूप देने के बाद उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की जाएगी।

दरअसल, आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के खिलाफ चुनाव में सफल होकर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल किया है। एक दशक में आप पार्टी का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करना पार्टी के लिए बड़ी उपलब्धि है। आम आदमी पार्टी का विस्तार उन्हीं राज्यों में हुआ है, जहां कांग्रेस कमजोर हुई है। इस तरह कांग्रेस की सियासी जमीन पर ही आम आदमी पार्टी की मंजिल खड़ी हुई है।इसलिए कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दो परस्पर विरोधी दल हैं, जो स्वभाविक रूप से साथ होकर राजनीति कर पाएंगी इसकी संभावनाओं को लेकर सवाल उठने लाजमी हैं। कांग्रेस केंद्र की सत्ता में थी तभी अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन किया था। आप पार्टी दो प्रदेश में कांग्रेस को हरा कर ही सरकार बनाने में सफल हुई है। दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस के सफाए के बाद ही आप पार्टी सरकार में आई है।

गोवा में अगर भाजपा सरकार बनाने में कामयाब रही है, तो इसके पीछे आम आदमी पार्टी की राजनीति को ही कांग्रेस जिम्मेदार ठहराती रही है। पिछले साल होने वाले हिमाचल, कर्नाटक और गुजरात के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी कांग्रेस के विरोध में उम्मीदवार खड़े कर चुकी है। गुजरात में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को तगड़ा झटका दिया था, जिसके चलते ही भाजपा ऐतिहासिक जीत दर्ज करने में सफल रही थी ।

वहीं, आम आदमी पार्टी के सर्वोपरि नेता अरविंद केजरीवाल राजस्थान, मध्य प्रदेश और छ्त्तीसगढ़ जैसे राज्यों में लगातार दौरा कर कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ बयानबाजी करते रहे   हैं। जाहिर है राजस्थान में अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे सिंधिया की दोस्ती से लेकर मध्य प्रदेश और छ्त्तीसगढ़ में कांग्रेस के खिलाफ आम आदमी पार्टी सालों से अपनी जमीन तैयार करती  रही है।

ऐसे में कांग्रेस के साथ आप पार्टी के गठबंधन की सूरत में दोनों पार्टियां अपने हितों को किस हद तक छोड़ने को तैयार होंगी इस पर सवाल उठने लाजमी हैं।दिल्ली और पंजाब समेत कई राज्यों में दोनों दलों के लिए सीट शेयरिंग का फॉर्मुला कैसे तय होगा, इस पर भी सवाल उठने लाजमी  थे , क्योंकि 2019 के चुनाव में दोनों पार्टियों के बीच दिल्ली में एक सीट पर पेंच फंसने के चलते गठबंधन नहीं हो सका था।

इसलिए आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की स्वभाविक दोस्ती की वजह महज राजनीतिक हो सकती है, लेकिन धरातल पर कामयाब करना कहीं ज्यादा मुश्किल दिखाई पड़ता है। वैसे भी दिल्ली में एक बार आम आदमी पार्टी को समर्थन देने का परिणाम कांग्रेस पिछले दो चुनाव से सीधे तौर पर भुगत रही है। इसलिए दिल्ली प्रदेश के ही नहीं बल्कि पंजाब के भी कांग्रेसी नेताओं के लिए आम आदमी पार्टी के साथ चलने की बात स्वीकार कर लेना आसान नहीं दिखाई पड़ता था ।आम आदमी पार्टी यूनिफॉर्म सिविल कोड और आर्टिकल 370 जैसे मुद्दों पर कांग्रेस के विपरीत स्टैंड रखने के लिए जानी जाती है। इतना ही नहीं आम आदमी पार्टी का स्टैंड अन्य कई मुद्दों पर भी कांग्रेस के खासा विपरीत रहा है। इनमें विपक्षी दलों पर जांच एजेंसियों की दबिश को लेकर भी है, जिसमें आम आदमी पार्टी और कांग्रेस एक दूसरे के साफ विरोधी नजर आए हैं।

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की शराब नीति को लेकर कांग्रेस ने जमकर केजरीवाल पर हमला बोला था। एन .आर. सी. और सी .ए. ए. जैसे मुद्दे पर भी आम आदमी पार्टी का स्टैंड कांग्रेस से अलग रहा है। ऐसे में दिल्ली सर्विस बिल पर  बने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का समझौता कब तक बना रहेगा इसको लेकर सवाल तो पहले से ही था । दिल्ली में कांग्रेस के नेता संदीप दीक्षित और अजय माकन, अरविंद केजरीवाल को समर्थन देने को लेकर गंभीर सवाल उठा चुके हैं   तो पंजाब में कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा सहित कई नेता खुलकर आम आदमी पार्टी की अलोचना करते रहे  हैं।

देखा जाय तो इस तरह दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच जुबानी जंग पहले से जारी है। ऐसे में आने वाले दिनों में ये समझौता दिल्ली और पंजाब सहित अन्य राज्यों में कैसे कारगर होगा ये सवाल  पहले से बना हुआ था । कांग्रेस और आप पार्टी के लिए लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ना आसान नहीं रहने वाला है। दो परस्पर विरोधी दलों के कार्यकर्ताओं को एक प्लेटफॉर्म पर लाना दोनों पार्टियों के लिए गंभीर चुनौती रहने वाली है।कांग्रेस और आप पार्टी मोदी विरोधी मतों को गोलबंद कर पाने में कामयाब होती हैं। ऐसे में एनडीए के लिए कई राज्यों में नुकसानदायक साबित हो सकता है। इसके लिए अर्थमैटिक के साथ-साथ दोनों दलों के लिए कैमिस्ट्री सही करना भी बड़ी चुनौती है।

दिल्ली सर्विस अमेंडमेंट बिल पर चर्चा के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने कांग्रेस को पंडित नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल और डॉ अंबेडकर की बातों को याद दिलाकर राजनीतिक रोटियां सेंकने की कोशिश की होगी, लेकिन कांग्रेस के लिए गठबंधन की मजबूरियों में न फंसकर आम आदमी पार्टी से सावधान रहने की नसीहत के पीछे कई गूढ़ रहस्य छिपे थे , ये कांग्रेसी भी दबी जुबान में स्वीकार करते हैं। देखना है कि कांग्रेस और आप पार्टी की दोस्ती की मियाद कितने दिनों तक रहती है।

  आप पार्टी के आलावा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की हरकत भी संगठन के लिए चिंताजनक    हो सकती है ।   नीतीश कुमार दिल्ली आए और पूर्व प्रधानमंत्री  अटल जी की समाधि पर पहुंचकर श्रद्धांजलि दी, लेकिन अटल जी की समाधि पर जाकर उनका श्रद्धांजलि अर्पित करना कई कयासों को जन्म दे गया। खासकर तब, जब अटल बिहारी वाजपेयी की पार्टी बीजेपी के नीतीश अब कट्टर विरोधी हैं। विपक्ष का कोई नेता पूर्व प्रधानमंत्री  अटल बिहारी वाजपेयी को भले न याद करे, पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उन्हें कभी नहीं भूलते। आज भी वे उनका गुणगान ही नहीं करते बल्कि ये कहें कि अटल जी भाजपा  नेताओं से कहीं अधिक नीतीश के जेहन में रहते। शायद यही वजह रही कि वाजपेयी की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करने वे दिल्ली पहुंच गए।

अटल जी की समाधि पर जाकर मुख्यमंत्री नीतीश का श्रद्धांजलि अर्पित करना कई रहस्यों को जन्म देता है। खासकर तब, जब अटल बिहारी वाजपेयी की पार्टी भाजपा  के नीतीश अब कट्टर विरोधी हो गए हैं। सच तो ये है कि नीतीश को भाजपा  से नहीं, बल्कि उसके दो नेताओं- प्रधानमंत्री  मोदी और अमित शाह से परेशानी है। अक्सर उनकी जुबान से भाजपा  और अटल जी की चर्चा अनायास होती रहती है। भाजपा  की भी कमोबेश यही स्थिति है। भाजपा  को भी नीतीश कुमार का मोह छूट नहीं रहा है। ऊपर से चाहे कितना भी हमला करे नीतीश को भाजपा  भूल नहीं पा रही हैं।

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