विश्व परिवार दिवस 15 मई को मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम जनसांख्यिकीय रुझान और परिवार
रखी गई है। परिवार एक बार फिर वैश्विक चर्चा का विषय बन गया है। मीडिया में आरही खबरों
के अनुसार जनसँख्या विस्फोट, शहरीकरण और सोशल मीडिया को एक हद तक परिवार के
विखंडन का दोषी माना जा रहा है। कहा जाता है परिवार ही वह संस्था है जो मनुष्य के सुखी
जीवन का आधारभूत स्तम्भ है। हमारे देश में परिवार को सबसे ज्यादा अहमियत दी जाती है।
शहरीकरण की वजह से परिवार टूट रहे हैं। बड़ी संख्या में लोग रोजगार की तलाश में गांवों से
शहरों में या विदेशों में पलायन कर रहे हैं जिसकी वजह से ना चाहते हुए भी परिवारों में एक
दूरी बन रही है। बड़े और संयुक्त परिवार छोटे होते जा रहे है, साथ ही आधुनिक जीवन शैली
आज के युवा को परिवार से अलग कर रही है।
संयुक्त राष्ट्र ने 1994 को अंतर्राष्ट्रीय परिवार वर्ष घोषित किया था। समूचे संसार में लोगों के बीच परिवार
की अहमियत बताने के लिए हर साल 15 मई को अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाने लगा है। किसी भी
समाज का केंद्र परिवार ही होता है। परिवार ही हर उम्र के लोगों को सुकून पहुँचाता है। परिवार मर्यादाओं से
बनता है। अनुशासन होता है, प्रेम और आपसी सद्भावना होती है। परिवार एक बार फिर वैश्विक चर्चा का
विषय बन गया है। घर में खुशी होगी तभी बाहर भी खुशी महसूस होती है। हम अपने आप को तभी सफल
और खुश महसूस करते हैं जब हम अपने घर में प्रसन्न रह पाते हैं।
आज बहुत.से ऐसे परिवार हैं जिन्हें एक.दूसरे से खुलकर बात करने के लिए ज्यादा वक्त नहीं मिल पाता।
आज के जमाने में लाइफ स्टाइल कितनी बदल गयी है। बच्चे बहुत छोटी उम्र में ही स्कूल जाना शुरू कर देते
हैं। बहुत.से माता.पिता काम पर चले जाते हैं। जो थोड़ा.बहुत समय वे साथ होते भी हैं वह भी टीवी.कंप्यूटर
या फोन पर चला जाता है। बहुत.से परिवारों में बच्चे और माता.पिता अजनबियों की तरह अपनी.अपनी
जिंदगी जीते हैं। उनके बीच जरा.भी बातचीत नहीं होती। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में परिजनों से
आपस में बात करने में जो खुशी और आनंद मिलता है उसकी कल्पना शब्दों में नहीं की जा सकती।
परिजनों से बात करने का सुख अब बिरलों को ही मिल पाता है। इससे तनाव कम होने के साथ विभिन्न
पारिवारिक दिक्कतों और समस्याओं का एक ही जाजम पर हाथोंहाथ निपटारा हो जाता है। परिवार मर्यादा
और आदर्श का जीवंत उदहारण है। यह सामाजिक संगठन की मौलिक इकाई है। परिवार के अभाव में मानव
समाज का अस्तित्व नामुमकिन है। फैमिली की बुनियाद उनके बीच का प्यार है जो सबको एक साथ जोड़
कर रखता है। अक्सर देखा जाता है परिजन रहते एक छत के नीचे है मगर उनमें आपसी बातचीत नहीं हो
पाती है। इससे परिवार में घुटन और तनाव के साथ असुरक्षा का भाव रहता है। यदि एक दिन में एक घंटे भी
परिजन साथ बैठ कर बातचीत करलें तो परिवार की खुशियां द्विगुणित हो सकती है।
हमारा देश भारत, विश्व में परिवार मर्यादा और आदर्श का जीवंत उदहारण है। यह सामाजिक संगठन की
मौलिक इकाई है। परिवार के अभाव में मानव समाज का अस्तित्व नामुमकिन है। पहले मानव एक कबीले
के रूप में रहता था। सभ्यता और संस्कृति के विकास के साथ परिवार की परिभाषा भी बदलती गई। आज
संयुक्त परिवार भी विघटन के कगार पर है। लोग एकाकी रहने लगे है। सियासी प्रगति की अंधी दौड़ में
हमने दुनिया को अवश्य अपनी मुट्ठी में कर लिया है मगर परिवार नामक संस्था से विमुख होते जा रहे है।
इसी का नतीजा है देश में पारिवारिक समस्याएं बढ़ती जा रही है जिसका खामियाजा बच्चे से बुजुर्ग तक को
उठाना पड़ रहा है। एक ही परिवार में धीरे धीरे एक दूसरे से आपसी बातचीत बंद होने से अनेक समस्याएं उठ
खड़ी हुई है। समय रहते बातचीत का रास्ता नहीं खुला तो तनाव, घुटन और अवसाद का सामना करना पड़
सकता है। बातचीत और आपसी संवाद खुशियों का खजाना है जिससे मरहूम होना किसी भी परिवार के लिए
संभावित व्याधि को आमंत्रित करना है। महानगरीय संस्कृति ने परिवार व्यवस्था को मटियामेट करने में
कोई कसर नहीं छोड़ी है फलस्वरूप मानव को अनेक संकटों का सामना करना पड़ रहा है। विशेषकर परिवार
विघटित होने से समाज व्यवस्था गड़बड़ाने लगी है।
-बाल मुकुन्द ओझा