संपूर्ण विश्व में आज लगातार जलवायु में लगातार परिवर्तन हो रहा है। वास्तव में,इस परिवर्तन का बड़ा कारण ग्लोबल वार्मिंग है। सच तो यह है कि ग्लोबल वार्मिंग आज के समय की एक बड़ी चुनौती, अति गंभीर और एक अति संवेदनशील समस्या है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि वर्ष 2019-20 में ऑस्ट्रेलिया में जंगलों में आग लगने के कारण 18 मिलियन हेक्टेयर जंगल जल कर राख हो गए थे और कितने ही जंगली जानवरों, जीव जंतुओं ने आग की लपटों में खुद को असहाय भस्म होने के लिए सौंप दिया था। इस आग को ब्लैक समर बुश फायर का नाम दिया गया था। जलवायु परिवर्तन होता है तो इसका सीधा असर धरती की पारिस्थितिकी तंत्र एवं इसके पर्यावरण पर पड़ता है। आज जलवायु परिवर्तन के कारण जंगलों में आग लग जाती है।जंगल में लगने वाली आग, जिसे दावानल भी कहा जाता है, आमतौर पर लंबे समय तक जलती रहती है और बहुत नुक्सान पहुंचाती है। यह आग जंगल में स्थित सूखी लकड़ियों, आसमानी बिजली गिरने या अन्य ज्वलनशील पदार्थों के कारण लगातार फैलती जाती है और इससे बड़े स्तर पर जहां जंगली पशु पक्षी व अनेक जीव जंतु मारे जाते हैं, वहीं दूसरी ओर इससे पर्यावरण को बहुत नुक्सान पहुंचता है। हाल ही में अमेरिका के हवाई में जंगलों में आग लग गई और आग ने अत्यंत विकराल रूप धारण कर लिया। मीडिया के हवाले से यह खबरें आ रही हैं कि माउइ द्वीप पर स्थित लाहानिया का पूरा शहर इस आग की चपेट में आ गया और यह अमेरिका के 100 साल के इतिहास की सबसे भीषण आग बन गई। बताया जा रहा है और आग के कारण वहां 89 लोगों की मौत हो गई, जबकि हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। जानकारी मिलती है कि इस प्राकृतिक आपदा ने ऐतिहासिक रिज़ॉर्ट शहर को नष्ट कर दिया और बड़ी इमारतों को भी अपनी चपेट में ले लिया। अमेरिकी आपातकालीन सेवा एजेंसी (फेमा) के अनुसार, लाहिना के नवीकरण की लागत 5.5 बिलियन डॉलर आंकी गई है, जिसमें 2,200 से अधिक संरचनाएं क्षतिग्रस्त हो गईं, जबकि 2,100 एकड़ से अधिक जल गईं। तेज हवाओं से आग फैलने में इजाफा हुआ।बताया जा रहा है कि
अमेरिका के एक सदी के इतिहास में यह जंगल में आग लगने की यह सबसे घातक व खतरनाक घटना है। वन की आग वन आवरण, मृदा, वृक्ष वृद्धि, वनस्पति और समग्र वनस्पतियों और जीवों पर कई प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। इसलिए इससे बचाव बहुत ही जरूरी है। जानकारी देना चाहूंगा कि इससे पहले उत्तरी कैलिफोर्निया में बट काउंटी के जंगलों में वर्ष 2018 में लगी आग में 85 लोगों की मौत हुई थी। इधर सरकार का यह कहना है कि लाहिना की आग पर अभी तक काबू नहीं पाया जा सका है।अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन इसे ‘बड़ी आपदा’ घोषित कर चुके हैं। अब यहां प्रश्न यह उठता है कि आखिर जंगलों में आग लगने के पीछे कारण क्या हैं ? क्यों जंगल यकायक जल उठते हैं ? तो इस संबंध में जानकारी देना चाहूंगा कि सामान्य तौर पर आग के लिए ईंधन, ऑक्सीजन और ताप की जरूरत होती है। आक्सीजन गैस जलने में सहायक है। जब भी भीषण गर्मी पड़ती है, तब जंगल में आग लगाने के लिए हल्की सी चिंगारी ही पर्याप्त होती है। बहुत बार कोई राहगीर जलती हुई बीड़ी, सिगरेट फेंक देते हैं अथवा अन्य ज्वलनशील पदार्थों को फेंक देते हैं, जिससे यकायक आग लग जाती है।कई बार सूख चुके पेड़ों की टहनियां ही आपस में रगड़-रगड़कर चिंगारी पैदा कर देती हैं और जंगल में भीषण आग का कारण बन जाती हैं। सूरज की तेज किरणें भी आग को बढ़ावा देने का काम करती हैं। बहुत बार कैंप फायर भी आग लगने का कारण बन जाता है। जंगली जानवरों को भगाने के लिए आदमी आग का प्रयोग करता है और खुले में इस आग को छोड़ देता है जो धीरे-धीरे संपूर्ण जंगल में फ़ैल जाती है। बहुत बार ज्वालामुखी फटने से, रेलवे ट्रैक पर रेल से निकलने वाली चिंगारियों से तथा कोयले के जलने से भी जंगलों में आग लग जाती है। कहीं कहीं झूमिंग कृषि भी आग का कारण बनती है क्यों कि श्रम बचाने के लिए आग लगा दी जाती है जो बाद में कई बार बुझ नहीं पाती है। वन और अग्नि का मानव जीवन के सामाजिक-आर्थिक पहलुओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अमेरिका ही नहीं भारत में भी
हिमाचल प्रदेश, नगालैंड-मणिपुर सीमा, ओडिशा, मध्य प्रदेश और गुजरात में वन्यजीव अभयारण्यों में वनाग्नि के मामले बड़ी संख्या में हुए हैं।नागालैंड-मणिपुर सीमा (दजुकौ घाटी) लम्बे समय से वनाग्नि से प्रभावित रही है। जानकारी देना चाहूंगा कि
आग मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों से शुरू होती हैं। वैसे आग लगने के प्राकृतिक कारण तो हैं ही।
वर्तमान समय में सम्पूर्ण विश्व, विशेष रूप से ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया में ,में वनाग्नि की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं जिसके लिए जलवायु परिवर्तन को उत्तरदायी समझा जा सकता है।ग़लत नहीं है कि तेजी से बदलता मौसम जंगलों में आग लगने की घटनाओं की संख्या को बढ़ाने के काफी हद तक जिम्मेदार है। दरअसल, कम बारिश होना, सूखे जैसी हालात बनना, गर्म हवाओं यानी लू का ज्यादा चलना और भीषण गर्मी जंगलों में आग के लिए जिम्मेदार है। आज धरती की जलवायु में लगातार परिवर्तन हो रहा है। प्रकृति और पर्यावरण का लगातार दोहन किया जा रहा है। इससे पारिस्थितिकी असंतुलन बढ़ रहा है और यही कारण है कि इससे जंगलों में आग का खतरा बढ़ रहा है। वनाग्नि के कारण वनों की जैव विविधता और पूरा पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है। आग लगने से जंगल में पेड़ पौधों के साथ ही छोटी-छोटी घास व झाड़ियाँ भी नष्ट हो जाती हैं। जीव जंतु और मानव तो आग से प्रभावित होते ही हैं। आज दावानल से भू-क्षरण, भू-स्खलन और त्वरित बाढ़ की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है।वनाग्नि के इमारती लकड़ियां भी जल जाती हैं जो आर्थिक नुक्सान का कारक बनती हैं। इतना ही नहीं जनजातीय वर्ग, आदिवासियों के परिवार तथा समुदाय आज भी वनों पर निर्भर रहते हैं तथा वनाग्नि से उनकी सामाजिक तथा आर्थिक दशा प्रभावित होती है। दावानल (वनों की आग) से उठने वाला धुआँ और विभिन्न प्रकार की जहरीली गैसें मानव और सभी प्राणियों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इस आग से निकलने वाली गैसें, जिनका प्रभाव वायुमंडल में 3 साल तक रहता है के कारण कैंसर जैसी घातक बीमारियाँ हो सकती हैं। इस प्रकार यह पर्यावरणीय प्रदूषण का कारण बनती है। जंगलों की आग रोकने के लिए जंगल में बीच-बीच में गड्ढे खोदे जा सकते हैं ताकि आग फैल नहीं पाए।साथ ही जंगलों से चिंगारी पैदा करने वाली उन सभी चीजों, ज्वलनशील पदार्थों को हटा दिया जाना चाहिए ताकि आग फैले नहीं।
चीड़, देवदार, रई के पौधे बहुत ही तेजी से आग पकड़ते हैं। सूखी घास, चीड़ की सूखी पत्तियां सूरज की तेज़ किरणों से आग पकड़ सकती हैं, इसलिए हमें सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।
जंगलों में आग न लगे, इसके लिए हम सभी को नए सिरे से सोचना होगा, चिंतन मनन करना होगा। चीड़-देवदार के पेड़ों की जगह बड़े चौड़े पत्तों वाले पेड़ों के बारे में गंभीरता से सोचना होगा और हमें सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करना होगा। उल्लेखनीय है कि देश में लगभग 35 मिलियन हेक्टेयर जंगल हर साल आग से प्रभावित होते हैं। किसी भी देश में जंगलों की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। क्यों कि ये जंगल न केवल हम सभी के लिए पानी की प्रबंधता करते हैं, अपितु पर्यावरण को प्राकृतिक रूप से वातानुकूलित भी करते हैं। जंगलों में हर साल लगने वाली आग को रोकना कठिन है, लेकिन असंभव नहीं है। जागरूकता और सहयोग बहुत जरूरी है। जंगलों के अवैध कटान और तस्करी पर काबू करना बहुत ही जरूरी है। वैसे हेलिकाप्टर्स से पानी की बौछारों से आग पर काबू पाया जा सकता है, जैसा कि हाल ही में अमेरिका जंगलों में आग लगने पर ऐसा किया गया। कार्बन डाइऑक्साइड से भी आग पर काबू पाया जा सकता है। तरल नाइट्रोजऩ को पहले आग लगे जंगल में स्प्रे करके, उसके बाद उस पर पानी फेंककर भी जंगलों की आग पर काबू पाया जा सकता है। इतना ही नहीं हमें वनों में आग लगने की घटनाओं के कारणों की तह तक जाना बहुत जरूरी है। वनों की आग को हमें गंभीरता से लेना होगा। वनाधिकारियों, कर्मचारियों को भी अतिरिक्त अधिकारों से लैस करना होगा ताकि वे जंगल की सुरक्षा के लिए आपात स्थिति में तुरंत निर्णय ले सकें। जल निकासी बिंदु, अच्छी सड़क अवसंरचना, एक कार्यशील निगरानी प्रणाली और एक प्रशिक्षित अग्निशमन दल सफलता की कुंजी हैं। इसके अलावा, हमें संचार की व्यवस्थाओं को और अधिक बेहतर करना होगा, आग बुझाने के यंत्रों की पर्याप्त और माकूल व्यवस्थाएं करनी होंगी। जंगलों की आग की हवाई निगरानी, सहयोग एवं संयुक्त अभ्यास को बढ़ावा देना होगा। वन संकट प्रबंधन, आपातकालीन सेवाएं , आधारभूत संरचना तथा मानचित्रण आदि पर पर्याप्त ध्यान देना होगा तभी जंगलों की आग पर काबू पाया जा सकता है।