क्या तेलंगाना में होगा BRS , भाजपा व कांग्रेस ,  त्रिकोणात्मक मुकाबला ?

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तेलंगाना विधानसभा चुनाव को लेकर प्रचार लगातार जारी है। 30 नवंबर को राज्य में वोट डाले जाएंगे। उससे पहले राजनीतिक दल प्रचार में अपना दम दिखा रहे हैं।कर्नाटक चुनाव के बाद दक्षिण का इकलौता राज्य है तेलंगाना  जहां 2023 में विधानसभा चुनाव होने जा रहा है। तेलंगाना भाजपा के लिए  इसलिए भी अहम है क्योंकि भाजपा  ने 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा सीटें जीत कर देश को चौंकाया था। यहां तक कि KCR की बेटी को भी भाजपा  ने लोकसभा चुनाव में हराया था। 2014 में 10% के मुकाबले भाजपा  ने 2019 में 19.45% वोट हासिल किए थे। ऐसे में बड़ा सवाल है कि तेलंगाना में सत्ताधारी भारत राष्ट्र समिति (BRS) (जो पहले TRS थी) का मुकाबला भाजपा  और कांग्रेस त्रिकोणात्मक मुकाबला होने जा रहा है?

तेलंगाना में BRS पार्टी पिछले 10 वर्षों से सत्ता में है। तेलंगाना को परिवारवाद, भ्रष्टाचार, तुष्टीकरण की राजनीति से बचाने के लिए भाजपा  को जनता निश्चित रूप से आशीर्वाद देगी ऐसा भाजपा के नेताओं का मानना है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत आज पूरी दुनिया में अपना परचम लहरा रहा है और जनकल्याणकारी योजनाएं बिना किसी भ्रष्टाचार के आम जनता तक पहुंच रही है। भाजपा  को आशीर्वाद मिलता है तो एक डबल इंजन की सरकार तेलंगाना के विकास को गति देगी और ‘बंगारू तेलंगाना’ (स्वर्णिम तेलंगाना) का जो सपना अधूरा रह गया था, उसे भाजपा  पूर्ण करने का प्रयास करेगी।

इन सब के साथ  भाजपा और पवन कल्याण की पार्टी जनसेना अब राज्य में एक साथ चुनाव लड़ने की तैयारी में है। दोनों दलों ने एक साथ चुनाव लड़ने की बात कही है और जल्द ही सीट बंटवारे पर भी सहमति बन जाएगी। पवन कल्याण ने साफ तौर पर कहा है कि दोनों पर्टियों का लक्ष्य नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनाने का है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हम लोकसभा चुनाव में भी भाजपा के साथ चुनाव लड़ेंगे .

वैसे कहा जाता है कि तेलंगाना में भाजपा भारत राष्ट्र समिति और कांग्रेस के बाद तीसरे नंबर की पार्टी है। पार्टी को लगता है कि स्थानीय और प्रसिद्ध चेहरे को लेकर वह राज्य में खुद के लिए स्थिति मजबूत कर सकती है। इसमें पवन कल्याण एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। पवन कल्याण दक्षिण भारत के सुपरस्टार हैं और युवाओं में बेहद लोकप्रिय भी है। भाजपा के साथ पवन कल्याण के आने के बाद पार्टी को युवाओं से भी मदद मिल सकती हैं। पवन कल्याण मुन्नुरु कापू समुदाय से आते हैं। वह ओबीसी हैं। राज्य में इस जाति की आबादी 26% के आसपास है। इससे भाजपा को मजबूती मिल सकती है।

टीडीपी राज्य में चुनाव नहीं लड़ रही है। ऐसे में पवन कल्याण के साथ आने से टीडीपी का वोट बीजेपी को ट्रांसफर हो सकता है। महत्वपूर्ण पहलू यह है कि भले ही भाजपा का टीडीपी के साथ कोई समझौता नहीं है, लेकिन वह चाहती है कि जन सेना चंद्रबाबू नायडू के साथ अपने संबंधों का लाभ उठाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि तेलंगाना में टीडीपी का वोट एनडीए को हस्तांतरित हो, न कि कांग्रेस को। यह एक राजनीतिक मास्टरस्ट्रोक है क्योंकि यह नायडू और पवन के बीच संबंधों का परीक्षण करेगा, और संभवतः इसे तनाव में भी डाल देगा। यदि ‘टीडीपी समर्थक जन सेना को वोट नहीं देते हैं, तो भाजपा इसे विश्वासघात का मामला बता सकती है और पूछ सकती है कि नायडू आंध्र प्रदेश में पवन के समर्थन की उम्मीद कैसे कर सकते हैं, जब वह तेलंगाना में समर्थन नहीं करते हैं।

दूसरी ओर तेलंगाना में कांग्रेस के लिए भी एक सहज स्थिति बन चुकी है। वाईएसआर तेलंगाना पार्टी की अध्यक्ष शर्मिला ने इस बात का ऐलान किया है कि उनकी पार्टी तेलंगाना में चुनाव नहीं लड़ेगी और वह कांग्रेस का समर्थन करेगी। आपको बता दें की अभिभाजित आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत वाईएस राजशेखर रेड्डी की बेटी शर्मिला आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी की बहन भी हैं। शर्मिला लगातार तेलंगाना में बीआरएस सरकार पर निशाना साध रही है। वह बीआरएस सरकार को भ्रष्ट बता रही हैं। शर्मिला ने कांग्रेस को समर्थन दिया है जिसका फायदा ग्रैंड ओल्ड पार्टी को हो सकता है। हालाँकि, यह निर्णय आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ दल के लिए अच्छा नहीं रहा, खासकर इसलिए क्योंकि इसने मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी को नकारात्मक छवि में चित्रित किया है। जगन ने चिंता व्यक्त की है कि कांग्रेस ने उनके मुख्यमंत्री बनने की संभावनाओं को कमजोर करने का प्रयास किया है।

वैसे कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री KCR ने पार्टी नेताओं की बैठक में कांग्रेस को अपना प्रतिद्वंद्वी माना है। मगर, राजनीति में जो बात कही जाती है उसके मायने उसी रूप में सीधे नहीं होते। KCR ने जिस तरीके से देशव्यापी स्तर पर गैर-भाजपा  सियासत को मजबूत करने की पूरी शिद्दत से कोशिश पिछले दिनों दिखाई है उससे यही पता चलता है कि वे भाजपा  को अपना प्रतिद्वंद्वी मानते हैं। स्पष्ट है केसीआर  कांग्रेस को प्रतिद्वंद्वी बोलते हैं और भाजपा  को मानते हैं।

ज्ञात हो कि तेलंगाना में 119 विधानसभा सीटें हैं। इनमें 19 SC और 12 ST वर्ग के लिए सुरक्षित हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में तेलंगाना में 73.37% वोट पड़े थे। 2 करोड़ 5 लाख 99 हजार 739 लोगों ने वोट डाले थे। कुल वैध मतों की संख्या 2 करोड़ 4 लाख 70 हजार 767 थी। TRS को 2018 के विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा 46.87% वोट मिले थे और उसे 88 सीटें हासिल हुई थीं। TRS प्रमुख KCR ने कर्नाटक चुनाव के बाद दावा किया है कि उनकी पार्टी को 95 से 110 सीटें आ रही हैं। दरअसल ये दावा उस माहौल को शांत करने के लिए किया गया है जो कर्नाटक में भाजपा  की हार के बाद कांग्रेस, उसे तेलंगाना की सियासत से जोड़कर बना रही थी।

तेलंगाना विधानसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर रही थी कांग्रेस। उसे 28.43% वोट हासिल हुए थे और उसे 19 सीटें मिली थीं। भाजपा  ने बीते विधानसभा चुनाव में 6.98% वोट हासिल किए थे और उसे एक सीट पर जीत भी मिली थी। मगर, भाजपा  ने लोकसभा चुनाव में कहानी ही पलट दी। करीब 20% वोट लाकर भाजपा  ने जता दिया कि वो तेजी से उभरती हुई ऐसी ताकत है जो सरकार बनाने का दमखम जुटा रही है। इस चुनाव में यह भी देखने वाली बात होगी कि क्या भाजपा  का वो दमखम 2023 में बरकरार रहने वाला है? यां कांग्रेस दोबारा अपनी स्थिती मजबूत करने में सफल होती है ।तेलंगाना में 2018 के विधानसभा चुनाव में कई अन्य पार्टियां भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही थीं। इनमें BSP 2.06%, CPI-CPM 0.84%, NCP 0.14%, AIMIM 2.71% और TDP 3.51% शामिल हैं। आम आदमी पार्टी ने भी चुनाव लड़ा था और उसे  मात्र 0.06% वोट मिले थे।

वैसे यह भी बात देने योग्य है कि चाहे लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा चुनाव, TRS बाकी दलों से बहुत आगे रहा  है। लोकसभा चुनाव में TRS को 41.37% वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को 29.27%। TRS ने सबसे ज्यादा 9 सीटें जीती थीं तो भाजपा  ने 4 और कांग्रेस ने 3 सीटों पर कब्जा जमाया था। एक सीट AIMIM ने जीती भाजपा  ने 19.45% वोट हासिल कर सबको चौंकाया था। TRS के KCR की बेटी K कविता की हार भी हैरत भरी घटना थी। वो भाजपा  उम्मीदवार से चुनाव हार गई थीं। भाजपा  उम्मीदवार धर्मपुरी कांग्रेस के राज्यसभा सांसद D श्रीनिवास के बेटे हैं। भाजपा  का ST के लिए सुरक्षित सीट आदिलाबाद पर जीत जाना भी बीते लोकसभा चुनाव की बड़ी बात थी। इस सीट पर भाजपा  के सोयम बापू राव को जीत मिली थी जो कांग्रेस छोड़कर आए थे।

कर्नाटक के प्रभाव से निकलकर अगर भाजपा  ने तेलंगाना में अपनी पैठ को और मजबूत करने का प्रयास दिखया तो तेलंगाना में त्रिकोणात्मक संघर्ष दिखेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। कांग्रेस को खुद KCR अपना प्रतिद्वंद्वी मान रहे हैं और आंकड़े भी इसकी पुष्टि कर रहे हैं। कर्नाटक में जीत के बाद कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं और कांग्रेस के नेता भी प्रदेश में अपनी सरकार का सपना देख रहे हैं। TRS के लिए ये स्थिति अनुकूल भी साबित हो सकती है अगर वे अपना वोट बैंक बहुत अधिक बिखरने ना दें। ऐसी स्थिति में BRS विरोधी वोटों के बंटने का सीधा फायदा कांग्रेस या भाजपा  को मिलेगा। एक रोचक मुकाबले की उम्मीद तेलंगाना में की जा सकती है।

भाजपा के अनुसार भाजपा  तेलंगाना में भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टीकरण के खिलाफ और तेलंगाना के सर्वांगीण विकास के लिए लड़ाई लड़ रही है। यह लड़ाई जारी हैं । राज्य के संसाधनों पर केवल कुछ सत्ताधारी परिवारों का कब्जा रहा  है और तेलंगाना के लिए लड़ाई लड़ने वाले नायकों को इन परिवारों ने लगातार नजरअंदाज किया है। किसान अपने बढ़ते कर्ज और प्रदेश सरकार की कुनीतियों से परेशान होकर आत्महत्या कर रहा है, युवा आंदोलन कर रहे हैं, परीक्षाओं के पेपर लगातार लीक हो रहे हैं। कानून-व्यवस्था की बदतर स्थिति है। लोगों को अब भाजपा  से ही उम्मीद है।

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