क्या  मध्यप्रदेश में बागी ही तय करेंगे चुनाव के नतीजे  ?

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मध्य प्रदेश में भाजपा  और कांग्रेस दोनों ने लगभग सभी सीटों पर अपने-अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। चुनाव संग्राम में बेशक अभी काफी दिन बाकी हों लेकिन टिकट को लेकर घमासान जारी है। टिकट पाने वाले और टिकट गंवाने वाले एक-दूसरे के सामने हैं। सड़कों पर धरना प्रदर्शन का दौर शुरू हो चुका है। कई जगह समर्थक पुतला तक जला रहे हैं।टिकट को लेकर यह कलह सिर्फ एक पार्टी की कहानी नहीं, बल्कि लगभग सभी दलों की है, लेकिन सबसे ज्यादा ड्रामा कांग्रेस और भाजपा  में देखने को मिल रहा है। टिकट के लिए यह मारामारी सिर्फ मध्य प्रदेश में ही नहीं, बल्कि राजस्थान में भी देखने को मिल रही है। यहां भी टिकट कटने से नाराज दावेदार और उनके समर्थक पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे हैं। एक सीट पर कई दावेदार होने से पार्टियों में उथल-पुथल वाला माहौल देखने को मिल रहा है। भाजपा  से लेकर कांग्रेस तक में मान- मनोव्वल का दौर चल रहा है। नाराज नेता और उनके समर्थक विधानसभा क्षेत्र से लेकर भोपाल तक चक्कर काट रहे हैं। कुछ नेताओं ने  बगावत करते हुए अपने ही दल के कैंडिडेट को हराने की कसम खाकर चुनाव में उतरने का ऐलान किया है।

यदि हम पिछले चुनाव के समीकरण को देखे तोपिव्ह्हाले  मध्य प्रदेश के 2018 विधानसभा चुनाव में भाजपा  ने 109 सीटें जीती थीं। कांग्रेस को 114 सीटें मिलीं। जबकि बहुमत के लिए जरूरी आंकड़ा 116 सीट होता है यानी सरकार बनाने के लिए ना भाजपा  के पास बहुमत था,  ना कांग्रेस का पास । इतना ही नहीं, 2018 के आंकड़े यह भी बताते हैं कि तब टिकट कटने के बाद उतरे बागी प्रत्याशियों ने कड़े मुकाबले में भाजपा   को 5 सीट और कांग्रेस को सात सीट हरवा दी थीं। यानी कटे हुए टिकट के बाद उतरा बागी जीतती सीट हरवा कर किसी के भी सरकार बनने के सपनों को काट सकता है।

मध्य प्रदेश में भाजपा  गुना और विदिशा को छोड़कर 228 सीटों पर प्रत्याशियों का नाम ऐलान कर चुकी है। लेकिन जिन नेताओं के टिकट  कटे या जो दावेदारी करते रह गए, वो बगावत पर उतर आए हैं। प्रदेश की अब तक 26 सीटों पर टिकट कटने के बाद भाजपा  को चुनावी बगावत का सामना करना पड़ रहा है। इस बार भी अगर कांटे की टक्कर हुई तो टिकट कटने से बागी बनकर उतरा कैंडिडेट सिर्फ सीट ही  नहीं बल्कि सत्ता भी हिला सकता है, इसीलिए पार्टी पूरी कोशिश में जुटी है कि जो नाराज हैं, उन्हें आगे एडजस्ट करने की समझाइश देकर फिलहाल बागी बनने से रोका जाए।  चूंकि 2018 में दमोह सीट पर बागी भाजपा  नेता 1,131 वोट पाए और भाजपा  का उम्मीदवार 798 वोट से हार गया था। पथरिया सीट पर टिकट कटने पर बागी भाजपा  नेता 8755 वोट पाए। और भाजपा  का कैंडिडेट 2205 वोटों से हारा था। ग्वालियर दक्षिण सीट पर भाजपा  की  बागी कैंडिडेट 30 हजार से ज्यादा वोट पाईं और भाजपा  का अधिकृत उम्मीदवार 121 वोट से हारा। 2018 के कुल आंकड़ों में कांग्रेस से  भाजपा  सिर्फ पांच सीट पीछे थी। और पांच सीट ही भाजपा  ने 2018 में बागी कैंडिडेट की वजह से गंवाई थी।

वहीं, मध्य प्रदेश में भाजपा  से ज्यादा टिकट बांट चुकी कांग्रेस का ज्यादा बागियों से भी सामना हो रहा है। कई नेता अब टिकट कटने के बाद खुद मैदान में उतरकर कमलनाथ के सपनों को पूरा ना होने देने का दावा करने लगे हैं। जबकि कांग्रेस दावा करती है कि अबकी बार जितनी पारदर्शिता से और ग्राउंड लेवल तक सर्वे कराके टिकट बांटा है, ऐसा पहले कभी मध्य प्रदेश में नहीं हुआ। टिकट कटने से नाराज नेता और उनके समर्थक भोपाल में डेरा डालने के आलावा  कांग्रेस दफ्तर के बाहर हनुमान चालीस का पाठ भी किया जा  रहा है। जिनका टिकट कटा है, वे हनुमान भक्त कमलनाथ को अपनी ताकत दिखा रहे हैं। कांग्रेस के खेमे में कहीं प्रदर्शन का बम चुनावी युद्ध  में फूट रहा है तो कहीं आंसुओं का रॉकेट चल रहा है। इतना ही नहीं, मंदसौर सीट से टिकट पाए परशुराम सिसोदिया को भी रोता देखा गया।  उनका दर्द यह है कि जिनका टिकट कटा वो विरोध में माहौल बना रहे हैं।  जैसे किसी युद्ध में अलग अलग हथियार इस्तेमाल होते हैं। वैसे ही चुनावी लड़ाई में होता है। अब जैसे भोपाल में कांग्रेस दफ्तर के बाहर ये शीर्षासन वाला विरोध है। जो निवाड़ी से रजनीश पटैरिया को टिकट ना मिलने पर समर्थक कर रहे हैं। यही समर्थक अगर चुनाव में आगे  बगावत करके अपना नेता निर्दलीय लड़ा दें तो पार्टी कैंडिडेट को भी जीतने में सिर उल्टा पैर ऊपर करना पड़ जाए।

2018 के नतीजे बताते हैं कि कांग्रेस बागी उम्मीदवारों की वजह से 7 सीट हारी थी। तीन सीट से उदाहरण समझिए। झाबुआ में कांग्रेस के बागी कैंडिडेट को 35,943 वोट मिले थे। कांग्रेस के कैंडिडेट जबकि 10437 वोट से हार गए थे। पंधाना सीट पर कांग्रेस के बागी उम्मीदवार  को 25456 वोट मिले और कांग्रेस उम्मीदवार 23000 वोट से हार गए। उज्जैन दक्षिण सीट पर कांग्रेस के बागी कैंडिडेट को 19560 वोट  मिले और कांग्रेस का अपना उम्मीदवार 18960 वोट से हार गया। विरोध की यही आग बढ़ती जाए तो जीत के सारे दावे धरे के धरे रह जाते हैं। कमलनाथ के घर के बाहर नाराज नेताओं ने टायर जला दिया है, लेकिन इससे पहले जो हुआ वो और गंभीर है। बड़नगर से सिटिंग कांग्रेस विधायक मुरली मोरवाल के समर्थकों ने पेट्रोल डालकर आत्मदाह की कोशिश कर दी। जो अपने नेता का टिकट कटने से नाराज हुए, इन्हें तो रोक लिया गया, लेकिन टिकट कटी बगावत रुक  पाएगी? ऐसे में कांग्रेस दफ्तर से लेकर कमलनाथ के घर तक कटे हुए टिकट वाले नेता के समर्थकों के विरोध को हल्के में नहीं लिया जाता सकता है।

बताते चलें कि मध्य प्रदेश की 230 सीट में से कांग्रेस 229 टिकट का ऐलान कर चुकी है। सिर्फ बैतूल जिले की एक सीट ही बची है। दावा है कि कांग्रेस के खेमे में 40 से ज्यादा सीट पर अब तक बागी खुद मैदान में उतरने का ऐलान करने लगे हैं।  कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह कहते हैं कि नाराज होना स्वभाविक है। सबको लगता है मैं ही कैंडिडेट बनूंगा। इतने पारदर्शी तरीके से पहले कभी चयन नहीं हुआ। 90 फीसदी सीट सर्वे के आधार पर तय हुई हैं। सभी से हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूं, भरोसा रखिए।

गौरतलब है कि पिछले साल हिमाचल प्रदेश के चुनाव में भी टिकट कटने से नेताओं की नाराजगी सामने आई थी। दावा है कि वहां एक पुराने नेता को तो  खुद प्रधानमंत्री तक ने फोन कॉल करके मनाने की कोशिश की। लेकिन ना नेता माने, ना हिमाचल में भाजपा  जीत पाई। टिकट कटते ही नेताओं के एकदम से जज्बात बदल जाते हैं। यही हाल मध्यप्रदेश  में  भाजपा  और कांग्रेस दोनों के खेमे में नजर आ रहा है। वैसे भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की डैमेज कंट्रोल कमेटी बागी नेताओं को मनाने की कोशिश कर रही है। अगर बागी मैदान में डटे रहते हैं तो आने वाले विधानसभा चुनाव के परिणाम भी प्रभावित हो सकते हैं और अनुमान लगाने वाले भी गच्चा खा सकते हैं ।

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