यह हर भारतीय बहुत अच्छी तरह जानता और समझता है की चुनावों में राजनैतिक पार्टियां और उम्मीदवार प्रचार प्रसार पर बेहताशा धन खर्च करते है। भारत निर्वाचन आयोग के मुताबिक लोकसभा चुनावों में इस बार प्रत्याशी चुनाव प्रचार व प्रबंधन पर अधिकतम 95 लाख रुपये का खर्चा कर सकेंगे। मगर यह माने को कोई तैयार नहीं है कि उम्मीदवार खर्च की इस सीमा में ही चुनाव लड़ते है। यह सब जानते है कि उम्मीदवार और राजनीतिक पार्टियां वोटरों को लुभाने के लिए साधन सुविधा सुलभ करते है जिसमें काळा धन का जमकर उपयोग होता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि चुनाव प्रचार अभियानों में बहुत बड़े पैमाने पर धनराशि व्यय की जाती है। लोगों को लगता है कि चुनाव जीतने के बाद खूब पैसा बनाया जा सकता है। एक बार किसी दल की तरफ से टिकट मिल जाए, फिर तो नेता चुनाव जीतने के लिए धन और बल लगा देते हैं। चुनावों में धन का बहुत ज्यादा प्रभाव बढ़ रहा है। उम्मीदवार जीतने के लिए खूब धन खर्च करते हैं। चुनाव के दौरान कच्ची बस्तियों में पैसा या सामान बांटा जाता है। पानी की तरह पैसा बहाकर बहुत से उम्मीदवार जीत हासिल कर लेते हैं। धन बल के इस्तेमाल को रोक पाना चुनाव आयोग के सामने सब से बड़ी चुनौती है। चुनाव आयोग से मिली जानकारी के अनुसार लोकसभा चुनावों के 75 साल के इतिहास में, 2024 के आम चुनावों के दौरान, निर्वाचन आयोग देश में अब तक की सबसे अधिक प्रलोभन संबंधी सामग्री जब्त करने की ओर अग्रसर है। 18वीं लोकसभा के लिए पहले चरण का मतदान शुरू होने से पहले धनबल के खिलाफ निर्वाचन आयोग के संघर्ष की दृढ़ता के साथ प्रवर्तन एजेंसियों ने 4650 करोड़ से अधिक रुपये की रिकॉर्ड जब्ती की। यह 2019 में पूरे लोकसभा चुनाव के दौरान जब्त किए गए 3475 करोड़ रुपये से अधिक की वृद्धि है। गौरतलब है कि 45 प्रतिशत जब्ती ड्रग्स और नशीले पदार्थों की है, जिन पर आयोग का विशेष ध्यान है। यह जब्ती व्यापक योजना बनाने, सहयोग बढ़ाने और एजेंसियों की सम्मिलित निवारण कार्रवाई, सक्रिय नागरिक भागीदारी और प्रौद्योगिकी के बेहतर उपयोग से संभव हुई है भारत दुनियां का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है। हमें अपने लोकतंत्र पर गर्व की अनुभूति होती है। मगर लोकतान्त्रिक संस्थाओं के चुनावों ने हमारे इस गर्व को चूर चूर करके रख दिया है। इसका एक बड़ा कारण इन चुनाव में काले धन के बेहताशा खर्च पर है। भारत चुनाव आयोग की लाख चेष्टाओं के बाद भी चुनावों में बेहिसाबी धन के खर्चे पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है। यह धन सफेद और काला दोनों है। चुनाव सुधार की बातें हम एक अरसे से सुनते आये है मगर यह सुधार कागजों से आगे नहीं बढ़ पाया है। चुनाव में काला धन खर्च कर जीतने वाला प्रत्याशी अपने धन की उगाही में सदा सर्वदा जुटा रहता है। उसे अपने अगले चुनाव की चिंता सताए रहती है। भारत में गैरकानूनी तरीके से कमाए गए काले धन को कई तरह से ठिकाने लगाया जाता है जिसमें जमीन जायदाद का कारोबार और चुनाव प्रचार जैसे तरीके भी शामिल हैं। चुनाव में पैसा और दारू के अनुचित प्रयोग के साथ गरीब मतदाताओं के वोट खरीदना आम बात हो गयी है। शुरु के कुछ आम चुनावों तक दिग्गज उम्मीदवार भी बैलगाड़ियों, साइकलों, ट्रैक्टरों पर प्रचार करते थे। उम्मीदवार की आर्थिक मदद खुद कार्यकर्ता किया करते थे। लेकिन आज के नेता हेलिकॉप्टरों या निजी विमानों से सीधे रैलियों में उतरते हैं और करोड़ों रुपए खर्च करके लाखों लोगों की भीड़ जुटाते हैं। उस समय पैदल यात्रा का भी अपना आकर्षण था। समाजवादी और साम्यवादी नेता साईकिल और बैलगाड़ियों पर संपर्क करते थे। समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया को अपने उम्मीदवारों का प्रचार बैलगाड़ी पर करते देखा जा सकता था। सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं के पास अवश्य कार देखी जा सकती थी। नेता अपनी गांठ से खाना खाते थे अथवा किसी कार्यकर्ता के यहाँ विश्राम कर वहीँ भोजन करते थे। आज किसी बड़े होटल में रुकते है और निजी विमान से प्रचार करते है।
-बाल मुकुन्द ओझा