एक वर्ष पूर्व नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़ आरजेडी के साथ के साथ सरकार बनाई व स्वयं मुख्यमंत्री बने व तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री बने . इसे चाचा भतीजे की जोड़ी कहा जाने लगा । उम्मीद थी कि यह चाचा भतीजा कि जोड़ी सरकार कुछ नया कर दिखाएगी पर वहां से प्राप्त समाचारों की माने तो इस एक वर्ष में अगर विकास हुआ है तो वह है यहां के अधिकारियों के निरंकुशता का, भ्रष्टाचार का, सत्ता संपोषित अत्याचार का और परिवारवाद का। नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने के मुंगेरी लाल के हसीन सपने देख रहे हैं और इसके लिए सभी राजनीतिक दलों को एकत्र करने में व्यस्त हैं और बिहार के जनता को एक ऐसे राजनीतिक दल के मुखिया के हवाले कर दिया है जिनका भ्रष्टाचार के साथ जीने मरने का अटूट रिश्ता है।
जहां तक बिहार के नौजवानों के नौकरी कि बात करें तो *राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन* सरकार के समय राज्स्व विभाग में जिन नौकरियों के लिए नियुक्ति पत्र जारी कर दिया गया था पुनः उन्हीं अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र देकर नौकरी देने के लिए अपनी पीठ थपथपा रही है। अभी तक शिक्षक के खाली पदों पर नियुक्ति नही कि गयी उल्टे टी ई टी पास अभ्यर्थियों पर लाठीचार्ज कर उनके आवाज को दबाने का कुचक्र, जबरन यू पी एस सी परीक्षा पास करने का दबाव बनाकर ऐसा माहौल बनाया जा रहा है ताकि परीक्षा के समय को टाला जाए ताकि इसके जद में आकर काफी लोगो का उम्र ही निकल जाए और नौकरी नही देने का बहाना ढूंढ लिया जाए।
आज शिक्षा कि स्थिति ऐसी है कि अगस्त महीना खत्म होने को है और विद्यालयों में विद्यार्थियों को पुस्तक तक उपलब्ध नही हो सका, मिड डे मील के नाम पर शिक्षकों का भयादोहन हो रहा है , विद्यालयों को मिड डे मील के अनाज में रिश्वतखोरी है। 50 किलो अनाज के जगह 40 किलो तथा अन्य सामग्री के राशि में अनधिकृत रूप से कटौती कर और ठीकरा शिक्षकों पर फोड़ा जाता है और उल्टे उनसे कारवाई का दिखाकर उगाही का धंधा फल-फूल रहा है। जहां तक जनहित के योजनाओं कि बात करें तो सरकार इसमें पूरी तरह फेल है। एक तरफ जहां नल जल योजना सफेद हाथी साबित हो रही है वहीं मनरेगा के माध्यम से होने वाले विकासात्मक कार्यों कि खानापूर्ति कर 70 से 80 प्रतिशत कि लुट से अधिकारियों का घर भर रहा है। अगर खासकर एक शिवहर जिले कि ही बात करें तो यहां अजब गजब कार्यों के खुलासे हो रहे हैं।पिछले वर्ष जिले में कोई बाढ़ नही आयी पर इस मद में करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गए, जिले में सत्तर अमृत सरोवर खोदे गए पर वह भी फाईलों में, सड़कें बनीं वह भी फाईलों में और संवेदकों को भुगतान भी हो गया। बिहार में कृषि विभाग एवं निबंधन कार्यालयों कि तो बात ही अनोखी है ।बताया जाता है कि इन विभागों में तो दलाल और अधिकारियों के मिलीभगत से जनता के गाढ़ी कमाई को जबरन लुटी जा रही है और बिहार के यशस्वी/माननीय मुख्यमंत्री जी इसे जीरो टॉलरेंस नीति वाली सरकार या फिर सुशासन की सरकार कहते अघाते नही।
किसानों के हित में केंद्र सरकार द्वारा लागू किया गया फसल क्षति बीमा जो खेत से लेकर खलिहान तक किसानों के हितों के रक्षा की गारंटी देती है उसे नीतीश कुमार ने अपने अहम एवं नरेन्द्र मोदी से जलन के कारण लागू नही होने दिया और इसके जगह कोआपरेटिव बैंकों से बीमा योजना लागू कर अधिकारियों एवं दलालों को लूट का छुट दे दिया जिसके कारण जरूरतमंद या पीड़ित किसानों को इसका लाभ नही मिल पाता और बिचौलियों तथा अधिकारियों के बीच राशि का बंदरबांट कर लिया जाता है।इतना ही नही किसानों के फसलों के लिए केंद्र सरकार द्वारा लागू न्यूनतम मूल्य पर किसानो से खरीददारी नही कर उन्हे बिचौलिए से लुटने के लिए छोड़ दिया जाता जिससे किसान औने पौने दामों पर अपने फसल को बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं और कर्ज में डूबते जा रहे हैं। इस तरह बिहार में महागठबंधन सरकार कि अन्य ऐसे बहुत सारे नकारात्मक कार्य हैं जिससे बिहार में प्रति व्यक्ति आय घटते जा रहे हैं जो बिहार देश के अन्य राज्यों के तुलना में पिछड़ते जा रहा है फिर भी नीतीश कुमार कहते हैं बिहार में विकास हो रहा जबकि सच्चाई यह है कि आज बिहार महागठबंधन सरकार के नेतृत्व में लगातार तेजी से पिछड़ते जा रहा है।
बिहार में कानून व्यवस्था की बात करे तो हत्या , लूट की घटनाओं की दिनों दिन वृद्धि होती जा रही है . हाल की घटना में प्रमुख हिंदी दैनिक जागरण के पत्रकार विमल कुमार यादव शुक्रवार सुबह अपने घर पर सो रहे थे, जब चार नक़ाबपोश हत्यारे आये और दरवाजा खोलते ही उनके सीने पर गोलियां दाग दीं। विमल कुमार 2019 में अपने सरपंच भाई शशिभूषण की हत्या के एकमात्र गवाह थे और वह अदालत में गवाही देने वाले थे। विमल कुमार के परिवार वालों का आरोप है कि बदमाशों ने अदालत में उन्हें गवाही न देने का धमकी दी. , पर विमल कुमार नहीं माने। पत्रकार के परिवारजनों ने आरोप लगाया कि उन्होने विमल की सुरक्षा के लिए पुलिस से गुहार लगाई थी, लेकिन उन्हें सुरक्षा नहीं दी गई। विमल के पिता की शिकायत के आधार पर दर्ज़ एफआईआर में 8 लोगों को नामजद किया गया है।बिहार पुलिस ने शनिवार को ऐलान किया कि आररिया में पत्रकार विमल कुमार यादव की हत्या के सिलसिले में चार आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, तथा दो अन्य आरोपियों से पूछताछ करने के लिए रिमांड आवेदन दिया गया है। ये दोनों अभी अररिया जेल में हैं। सुशासन बाबू के राज में अपराधियों के हौसले बुलंद है। दो दिन पहले पशु तस्करों ने समस्तीपुर में एक पुलिस दरोगा की थी। पत्रकार विमल कुमार यादव अपने घर में इकलौते कमाने वाले थे। उनके दो बच्चे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि ये बहुत गंभीर घटना है।, बहुत दुखद है, ऐसा नहीं होना चाहिए। नीतीश का जवाब सुनकर लगा कि किसी राज्य का मुखिया एक नौजवान की सरेआम हत्या पर इस तरह बड़े सपाट और संवेदनशून्य तरीके के कैसे रिएक्ट कर सकता है।
बिहार बीजेपी अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने कहा कि मुख्यमंत्री को दिल्ली, मुंबई घूमने से फुरसत नहीं, उनको पता ही नहीं होता कि बिहार में क्या हो रहा है, इसीलिए बिहार में अपराधी नियंत्रण से बाहर हो गए हैं। सम्राट चौधरी ने कहा कि नीतीश और तेजस्वी के राज में अपराधी इतने बेख़ौफ़ हैं कि वो पुलिसवालों को भी गोली मारने से नहीं डरते। उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने बीजेपी के नेताओं को अलग अंदाज में जवाब दिया। तेजस्वी ने कहा कि बीजेपी के नेता तो बिहार को बदनाम करने में लगे रहते हैं जबकि बिहार से ज़्यादा क्राइम रेट तो दिल्ली का है और दिल्ली पुलिस सीधे अमित शाह के तहत काम करती है। उन्होंने कहा कि जब बीजेपी दिल्ली में अपराध नहीं रोक पा रही, तो बिहार पर किस मुंह से जंगलराज का इल्ज़ाम लगाती है। सवाल ये है कि बिहार में एक पत्रकार की दिनदहाड़े हत्या हुई। पत्रकार अपने भाई की हत्या का चश्मदीद गवाह था, तो हत्या का मकसद तो साफ है। हत्यारे कौन हैं, इसका भी अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। तो फिर पुलिस के सामने क्या समस्या है। दूसरी बात ये कि हत्या की आशंका पहले से थी तो भी पुलिस ने सतर्कता पहले क्यों नहीं बरती। सवाल ये है कि अपराधियों की हिम्मत इतनी क्यों बढ़ गई। पत्रकार की हत्या हो गई, दारोगा को सरेआम गोली मार दी गई और मुख्यमंत्री का रुख ये है कि देखेंगे, सोचेंगे, बात करेंगे, पता लगाएंगे। लगता है कि ऐसे प्रॉब्लम इस तरह की सोच से है। अगर इस तरह से सरेआम हत्याएं होंगी तो लोग सवाल तो उठाएंगे। विरोधी दलों को भी आलोचना करने का मौका मिलेगा। लेकिन इस बात को ये कहकर नहीं दबाना चाहिए कि बीजेपी बिहार को बदनाम करना चाहती है, न ही ये कहकर अपराधों को कम आंकना चाहिए कि अपराध तो दिल्ली में भी होते हैं और आग तो मणिपुर में भी लगी हुई है। सवाल दिल्ली पर भी पूछे जाएंगे, सवाल मणिपुर पर भी पूछे जाएंगे लेकिन ये घटनाएं बिहार की हैं। अगर मीडिया और पुलिस सुरक्षित नहीं हैं, तो फिर आम जनता अपने आप को कैसे सुरक्षित महसूस करेगी।
-अशोक भाटिया