गहलोत सरकार को सोचना चाहिए कि कोटा राजस्थान में बाहर  से आकर पढ़ रहे छात्र प्रान्त की  अमानत है

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माना जाता है कि हर साल क़रीब ढाई से तीन  लाख बच्चे कॉम्पिटिशन की कोचिंग लेने कोटा पहुंचते हैं। इनमें बड़ी संख्या में बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के बच्चे होते हैं। राजस्थान के कोटा शहर का नाम सुनते ही सबसे पहले ज़ेहन में जो ख़याल आता है, वो है यहां के कोचिंग इंस्टीट्यूट। भारत के कई शहरों के बच्चे अच्छे इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज में दाख़िले का सपना लेकर इस शहर में आते हैं।कुछ साल पहले तक बिहार, झारखंड या मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के लिए पटना, रांची, बोकारो, इंदौर और दिल्ली, ऐसी कोचिंग का पसंदीदा केंद्र हुआ करता था। जिन अभिभावकों की आर्थिक स्थिति थोड़ी बेहतर होती थी, वे बच्चों को कोचिंग के लिए भारत के दक्षिणी शहर चेन्नई भी भेजा करते थे। लेकिन उत्तर भारत के शहरों से कोटा क़रीब है और अब कोटा इस तरह की कोचिंग का हब बना हुआ है। बताते हैं कि  साल 2004 और उसके आसपास से कोटा में कोचिंग कर रहे बच्चे इंजीनियरिंग के कॉम्पिटिशन में टॉप रैंकर रहने लगे। उसी समय से बच्चों और अभिभावकों का रुझान कोटा की तरफ होने लगा।

इन बच्चों के पेरेंट्स द्वारा चुकाई जाने वाली मोटी फीस की बदौलत कोटा की अर्थ व्यवस्था ने ऊंचाइयां छुई हैं।  कोचिंग का कारोबार दो हजार करोड़ रुपये का माना जाता है। शहर में एक दर्जन से अधिक कोचिंग इंस्टीट्यूट चल रहे हैं, जिनमें 5-6 इंस्टीट्यूट का कारोबार तो अरबों रुपयो का है। कोचिंग करने वाले आए बच्चों की वजह से कोटा में लगभग चार हजार हॉस्टल चल रहे हैं। इतने ही पीजी हैं। सैकड़ों मेस, रेस्टोरेंट, बुक डिपो, जिम आदि का कारोबार भी कोचिंग की वजह से फला-फूला है।

कोचिंग इंस्टीट्यूट तो चांदी कूट रहे हैं लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या वह बच्चों को मौत के मुंह से जाने से बचाने के लिए भी कुछ कर रहे हैं? यह सवाल इसलिए उठता है कि स्टूडेंट्स की बढ़ती सुसाइड इन इंस्टीट्यूट्स पर भी सवालिया निशान खड़े करती है। वर्ष 2016 में कोटा में सुसाइड करने वाली गाजियाबाद की कृति त्रिपाठी ने सुसाइड नोट में लिखा था, ”मैं भारत सरकार और मानव संसाधन विभाग से अपील करती हूं कि जितनी जल्दी हो सके, कोचिंग संस्थानों को बंद कर देना चाहिए। कोचिंग संस्थान खून चूसते हैं।”

उस समय कृति का सुसाइड नोट खूब चर्चा में रहा था लेकिन बाद में किसी को कुछ याद नहीं रहा। जब कोई बच्चा सुसाइड करता है तो कुछ दिन उसकी चर्चा होती है लेकिन बाद में सब भुला दिया जाता है। कोटा में कोचिंग स्टूडेंट्स की सुसाइड के मामलों पर राजस्थान हाई कोर्ट चिंता जता चुका है। राज्य सरकार का उच्च शिक्षा विभाग  कोटा समेत राज्य भर में चल रहे कोचिंग सेंटरों में पढ़ रहे बच्चों को मानसिक संबल और सुरक्षा प्रदान करने के लिए कई बार दिशा-निर्देश जारी कर चुका है।

अब इस  सप्ताह भी   कोटा में नीट परीक्षा की तैयारी कर रहे 2 छात्रों ने सुसाइड कर लिया । इन छात्रों की मौत से पूरे इलाके में नये सिरे से हड़कंप-सा मच गया । जानकारी दे दें कि नीट की तैयारी कर रहे दो छात्रों की रविवार को आत्महत्या कर ली, जिससे इस साल कोटा में मरने वाले छात्रों की संख्या 23 हो गई है।बता दें कि साल 2015 के बाद से यह संख्या अब तक की सबसे ज्यादा है, वहीं, 23 में से छह मौतें अकेले अगस्त माह में हुईं है ।

 मिली जानकारी के मुताबिक,  मरने वाला एक छात्र महाराष्ट्र का था, जिसकी उम्र 16 वर्ष थी, छात्र ने कोटा के विज्ञान नगर इलाके में अपने कोचिंग संस्थान की छठी मंजिल से छलांग लगा दी। उस किशोर ने दोपहर में निर्धारित साप्ताहिक टेस्ट देने के बाद अपने कोचिंग संस्थान में यह कदम उठाया। वहीं, महज 6 घंटे बाद, बिहार का एक 18 वर्षीय छात्र अपने कमरे की छत के पंखे से लटक गया। बिहार का किशोर अपनी बहन और चचेरे भाई के साथ कुनाडी इलाके में एक किराए के अपार्टमेंट में रह रहा था।   बताया जाता है  कि उसी  शाम उसके भाई-बहनों ने उसे अपने ही कमरे में पंखे से लटका हुआ पाया। पीड़ित को अस्पताल ले जाया गया जहां बाद में उसकी मौत हो गई। दोनों छात्र नीट की तैयारी कर रहे थे, एक अधिकारी ने कहा, “बताया जाता है कि दोनों मामलों में कोई सुसाइड नोट नहीं मिला।

इन्हीं सब घटनाओं को देखते हुए कोटा जिला प्रशासन ने 17 अगस्त को सभी छात्रावासों और पीजी आवासों के सभी कमरों में स्प्रिंग-लोडेड पंखे लगाने का आदेश दिया था। पुलिस आंकड़ों के मुताबिक, कोटा में 2022 में 15, 2019 में 18, 2018 में 20, 2017 में सात, 2016 में 17 और 2015 में 18 छात्रों की मौत हुई। 2020 और 2021 में कोई आत्महत्या नहीं हुई।

कोटा जिला कलेक्टर की ओर से इसे संबंध में एक पत्र जारी किया गया है। जिसमें कोचिंग के लिए आए छात्रों को ‘मानसिक सहायता और सुरक्षा प्रदान करने’ को लेकर अहम फैसला लिया गया। कोटा में कोचिंग सेंटरों पर टेस्ट और परीक्षाएं दो महीने तक रोक दी गई हैं। दरअसल, कोटा में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए आए स्टूडेंट्स जिस भी कोचिंग में पढ़ते हैं वहां समय-समय टेस्ट होते रहते हैं। एक के बाद एक स्टूडेंट्स के सुसाइड की घटनाओं को देखते हुए जिला प्रशासन ने अब कोचिंग के इन टेस्ट और परीक्षाओं पर दो महीने के लिए रोक लगा दी है। दो महीने तक रोक अस्थाई समाधान ही कहलाया जा सकता है जब तक गहलोत सरकार इसका स्थाई हल नहीं खोजती । सरकार को सोचना चाहिए कि यदि स्थाई समाधान न खोजा गया तो यह कांग्रेस की गहलोत सरकार के लिए चुनावी मुद्दा भी बन सकता हैं । आखिर  कोटा राजस्थान में बाहर  से आकर पढ़ रहे छात्र प्रान्त की  अमानत है और उनकी हिफाजत करना राजस्थान सरकार की जिम्मेदारी हैं ।

इधर, इस पूरे घटनाक्रम को लेकर एलन कोचिंग संस्थान भी  सवाल के कटघरे में खड़ा हुआ है। यहां कोचिंग संस्थान की सबसे बड़ी लापरवाही सामने आई है कि सरकार और प्रशासन की गाइडलाइन को उनकी ओर से सिरे से खारिज किया जाएगा। लगातार सामने आ रहे सुसाइड केसेज के बाद राज्य सरकार की ओर से संडे स्टूडेंट की पूरी तरह से छुट्टी रखने के बाद और इंस्टीट्यूट की ओर से टेस्ट नहीं लिए जाने के दिशा निर्देश दिए गए थे। बावजूद इसके रविवार के दिन कोचिंग संस्थान की तरफ से स्टूडेंट का टेस्ट लिया गया।सवाल यह है कि सरकार की गाइडलाइन प्रशासन के निर्देश होने के बावजूद कोचिंग संस्थान ने क्यों टेस्ट लिया? इस पूरे मामले की जांच जरूरी है। सरकार प्रशासन कोचिंग संस्थान के खिलाफ क्या एक्शन लेगा। यह देखने वाली बात होगी।

असल में, कोटा में कोचिंग करने वाले बच्चों की सुसाइड एक ऐसा सिलसिला बन गई है, जिसका कोई अंत नहीं नजर आ रहा है। कोई बच्चा फंदा लगाता है तो कोई ऊंची बिल्डिंग से कूद जाता है तो कोई अपने को आग की लपटों के हवाले कर रहा है। इस साल अब तक नौ बच्चे मौत को गले लगा चुके हैं। राज्य विधानसभा में सरकार द्वारा दी जानकारी के अनुसार वर्ष 2019 से 2022 तक चार साल में कोटा संभाग में 53 स्टूडेंट आत्महत्या कर चुके हैं। वहां कितने बच्चे मरे, इसके आंकड़े हैं लेकिन इस सवाल का पुख्ता जवाब किसी के पास नहीं है कि कोचिंग की बदौलत कॅरियर बनाने के लिए कोटा में आए ये बच्चे क्यों सुसाइड कर रहे हैं और इनमें जिंदगी के प्रति लगाव कैसे पैदा किया जा सकता है?

सरकार, मनोचिकित्सक और आत्महत्या करने वाले बच्चे (सुसाइड नोट में) अलग-अलग कारण गिनाते हैं। सरकार ने विधानसभा में जवाब दिया है कि कोचिंग सेंटरों में आयोजित टेस्टों में पिछड़ जाने के कारण  स्टूडेंट्स में आत्मविश्वास की कमी, अभिभावकों की बच्चों के प्रति महत्वाकांक्षा, बच्चों में स्टडी के प्रेशर में पनप रहा मानसिक तनाव, आर्थिक तंगी, ब्लैक मेलिंग, प्रेम प्रसंग जैसी वजहें आत्महत्या का सबब बन रही हैं। मनो चिकित्सक बच्चों में कॅरियर संबंधी प्रेशर को बड़ी वजह मान रहे हैं।

मनोचिकित्सक कहते हैं कि कई बार बच्चे की रुचि के विपरीत मां-बाप उस पर डॉक्टर या इंजीनियर बनने का दबाव डालते हैं। बच्चे अनमने भाव से उसमें एडमिशन ले लेते हैं। मां-बाप द्वारा भरी गई भारी-भरकम फीस भी उन्हें तनावग्रस्त करती है। कोटा में हॉस्टल का अकेलापन भी बच्चों को सताता  है क्योंकि वहां कोई ऐसा नहीं होता, जिससे वह मन की बात कह सकें। ऐसे में  तनाव अवसाद में बदल जाता है और नकारात्मक विचारों से घिरे बच्चे मौत में समस्याओं का समाधान खोजने लगते हैं।

कोचिंग संस्थान भी अपने यहां तनावग्रस्त बच्चों से बात करने के लिए काउंसलर रखे होने का दावा करते हैं। स्थानीय पुलिस भी इस मामले में कोचिंग संस्थानों और हॉस्टल संचालकों से संपर्क बनाकर रखती है। कोटा के कुछ मनोचिकित्सक मिलकर वहां होप सोसायटी प्रोजेक्ट भी चला रहे हैं, जिसके तहत स्टूडेंट्स में पसर रही टेंशन को कम करने और उन्हें जीवन की राह दिखाने की कोशिश की जा रही है लेकिन इसके बावजूद सुसाइड का सिलसिला थम नहीं रहा है। जब भी किसी बच्चे के मरने की खबर आती है, वह सुसाइड रोकने के लिए किए जा रहे उपायों की विफलता का प्रमाण होती है।

किसी बच्चे की सुसाइड अकेले उसी की मौत नहीं होती है, क्योंकि इसके साथ-साथ उसके माता-पिता, भाई-बहन, दादी-दादी, चाचा-चाची, नाना, मामा के अरमानों की भी मौत हो जाती है। बच्चा तो दुनिया को अलविदा कह जाता है लेकिन पेरेंट्स से तो न जीते बनता है और न मरते। पूरी उम्र सिसकियां भरते हुए गुजारनी पड़ती है। अच्छा कॅरियर बनाना जरूरी है। इसके लिए बच्चों को प्रेरित करना चाहिए। ऐसा कॅरियर भी किस काम का, जो जीने की लालसा ही खत्म कर दे। आज सबसे बड़ी जरूरत इन बच्चों के मन की थाह पाने, उन्हें नकारात्मकता से बाहर निकालने और उनमें जीवन के प्रति मोह पैदा करने की है। यह इसलिए जरूरी है कि ये बच्चे बड़े होकर मां-बाप का सहारा बनेंगे बल्कि इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ये बच्चे ही देश का भविष्य हैं।

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