परिचय के नाम पर रैगिंग का डर हर साल नया सत्र शुरू होते ही नये छात्रों का डराने लगता है। यह भयावह रूप ले चुका। रैगिंग पर लगाम लगाने के लिए नियम कानून से लेकर तमाम दिशा निर्देश सुप्रीम कोर्ट और यूजीसी समय समय पर देता रहा है। बावजूद इसके रैगिंग का घिनौना और गंदा खेल हर साल रूप—रंग बदल बदलकर जारी रहता है। देश में हर साल रैगिंग के तमाम मामले सामने आते हैं।
रैगिंग का इतिहास उठाकर देखें तो दुनिया में अलग-अलग नामों से पहचाना जाता है। इसको हेजिंग, फेगिंग, बुलिंग, प्लेजिंग और हॉर्स प्लेइंग के नामों से जाना जाता है। किसी भी तरह का शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न, मानवीय गरिमा को भंग करने वाला कोई काम, लिख-बोलकर किसी का अपमान करना या चिढ़ाना, डराना या धमकी देना, घर में बंद करना आदि कार्य को रैगिंग माना जाता है।
माना जाता है कि 7 से 8वीं शताब्दी में ग्रीस के खेल समुदायों में नए खिलाड़ियों में स्पोर्ट्स स्प्रिट जगाने के उद्देश्य से रैगिंग की शुरुआत हुई। इसमें जूनियर खिलाड़ियों को चिढ़ाया और अपमानित किया जाता था। यह कार्य समय के साथ—साथ बढ़ता गया और रैगिंग में बदलता गया। इसके बाद सेना में भी इसको अपनाया गया। खेल और सेना के बाद रैगिंग से शिक्षण संस्थान भी नहीं बचे और छात्रों इसको अपनाकर भयावह रूप दे दिया।
रैगिंग का भयावह रूप हाॅस्टल रैगिंग में दिखाई देता है। हाॅस्टल रैगिंग के दौरान छात्रों को नंगे बदन नाचने से लेकर अपना पेशाब पीने तक के लिए मजबूर किया जाता है। इन प्रताड़नाओं से बचने के लिए अक्सर छात्रों को मजबूरन हास्टल छोड़ने पड़ता है। कड़ी मेहनत और अभिभावाकों के अथक प्रयासों के बाद ही किसी अच्छे संस्थान में दाखिला मिल पाता है। लेकिन सारे प्रयासों और मेहनत पर तब पानी फिर जाता है जब रैगिंग रूपी दानव से घबराकर छात्र पढ़ाई छोड़ देते हैं या फिर रैगिंग के चलते अपनी जान गंवा देते हैं।
अब जब देश के विभिन्न शिक्षण संस्थानों में नये छात्रों के प्रवेश का सिलसिला आरंभ होने वाला है, यूजीसी ने एक बार फिर सख्ती दिखाई है। उसने रैगिंग के नये तौर-तरीकों से कड़ाई से निपटने का निर्देश दिया है। दरअसल, विभिन्न प्रसंगों में देखा गया है कि सीनियर छात्र नये छात्रों को परेशान करने के लिये नये तौर-तरीके इस्तेमाल कर रहे हैं। रैगिंग पर यूजीसी विनियमन, 2009 का पालन सभी उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए अनिवार्य है।
यूजीसी के मुताबिक, ऐसे मामले प्रकाश में आये हैं कि सीनियर छात्र अनौपचारिक व्हाट्सएप समूह बनाकर नये छात्रों को उससे जुड़ने के लिये बाध्य करते हैं। फिर छात्रों के मानसिक उत्पीड़न का सिलसिला आरंभ हो जाता है। यहां तक कि भयाक्रांत होने से कई छात्र विश्वविद्यालय या कॉलेज छोड़ने तक के लिए बाध्य हो जाते हैं। यही वजह है कि यूजीसी ने नये छात्रों को परेशान करने के इस नये तरीके के प्रति शिक्षा संस्थानों के अधिकारियों को चेताया है कि ऐसे मामले भी रैगिंग विरोधी नियमों के दायरे में आते हैं। इन मामलों में भी सख्त कार्रवाई की जाएगी।
देशभर के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में वर्ष 2020 से 2024 के दौरान रैगिंग के कारण से 51 छात्रों की मौत हो गई। सोसाइटी अगेंस्ट वायलेंस इन एजुकेशन नामक संस्था द्वारा प्रकाशित ‘स्टेट ऑफ रैगिंग इन इंडिया 2022-24’ रिपोर्ट में इस तथ्य को उजागर किया गया है। रिपोर्ट में मेडिकल कॉलेजों को भी रैगिंग की शिकायतों के लिए हॉटस्पॉट के रूप में पहचाना गया है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘मेडिकल कॉलेज चिंता का एक विशेष क्षेत्र हैं, क्योंकि 2022-24 के दौरान कुल शिकायतों का 38.6 प्रतिशत मेडिकल कॉलेज से ही संबंधित है, जबकि गंभीर शिकायतों का 35.4 प्रतिशत और रैगिंग से संबंधित मौतों का 45.1 प्रतिशत हिस्सा है। कुल छात्रों का केवल 1.1 प्रतिशत ही रैगिंग से संबंधित है।
आंकड़ों से यह भी पता चला है कि इस अवधि के दौरान रैगिंग के कारण 51 छात्रों की जान चली गई, जो कोटा में दर्ज 57 छात्रों की आत्महत्याओं से लगभग बराबर है।’ लेखकों ने दावा किया कि शिकायतों की संख्या रिपोर्ट में दी गई संख्या से कहीं अधिक थी। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ऐसा नहीं है कि पूरे भारत में तीन वर्षों में केवल 3,156 रैगिंग की शिकायतें दर्ज की गईं। ये केवल राष्ट्रीय एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन पर दर्ज की गई शिकायतें हैं। बड़ी संख्या में शिकायतें सीधे कॉलेजों में दर्ज की जाती हैं, और अगर मामला गंभीर है तो सीधे पुलिस में भी दर्ज की जाती हैं।’
रैगिंग के खिलाफ देश में कई बड़े अभियान छेड़े जा चुके हैं मगर ये रुकने का नाम नहीं ले रही है। बीते मार्च में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्यसभा को यह जानकारी दी थी कि 2024 में मेडिकल कॉलेजों में रैगिंग की सबसे अधिक 33 शिकायतें उत्तर प्रदेश में आयीं जबकि बिहार में इस तरह की 17, राजस्थान में 15 और मध्यप्रदेश में 12 शिकायतें मिलीं।
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन, हर कॉलेज में एंटी रैगिंग कमेटी, विश्वविद्यालय स्तर पर निगरानी और यूजीसी की हेल्पलाइन.. इन सबके बावजूद रैगिंग की घटनाओं पर रोक नहीं लग पा रही है। यूजीसी हेल्पलाइन पर पिछले एक दशक में रैगिंग की 8,000 से अधिक शिकायतें दर्ज की गई हैं, और रैगिंग से जुड़ी मौतों का आंकड़ा भी भयावह है। 2012 से 2022 के बीच रैगिंग की शिकायतों में 208 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। 2022 में कुल 1,103 शिकायतें आईं और अक्टूबर 2023 तक 756 शिकायतें दर्ज की गईं। इन घटनाओं से यह साफ हो रहा है कि रैगिंग के कारण छात्रों की मानसिक और शारीरिक स्थिति पर गहरा असर पड़ता है।
यह भी देखा जाता है कि रैगिंग की घटना होने पर संस्थान अपनी साख बचाने के लिए कार्रवाई के नाम पर लीपापोती शुरू कर देते हैं। कई बार तो मामले को दबाने की कोशिश भी की जाती है। हालांकि हर मामले में ऐसा नहीं होता है। सीनियर छात्र नये छात्रों को परेशान करने के लिये नये-नये तौर-तरीके तलाश लेते हैं। उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले यूजीसी ने देश के 89 उच्च शिक्षा संस्थानों को कारण बताओ नोटिस जारी करके सख्त हिदायत दी है कि रैगिंग पर नियंत्रण करने वाले नियमों को सख्ती से क्यों लागू नहीं किया गया।
शीर्ष न्यायालय कई साल पहले सभी शिक्षण संस्थानों में रैगिंग विरोधी कानून सख्ती से लागू करने का आदेश दे चुका है। दोषी छात्रों को तीन साल जेल और जुर्माने का प्रावधान है। नियमों का पालन न करने पर संस्थानों की मान्यता रद्द करने का भी निर्देश है। फिर भी रैगिंग के बहाने आज भी दूसरों को प्रताड़ित करने और उपहास उड़ाने की प्रवृत्ति खत्म नहीं हुई है। कई बार ऐसा लगता है कि सख्त नियम-कायदे के बावजूद रैगिंग करने वाले युवाओं के भीतर कानून का भी न कोई डर है, न उन्हें अपने भविष्य की कोई चिंता है। निचली कक्षाओं के विद्यार्थियों पर रौब जमाना या किसी को प्रताड़ित करना यह बताता है कि कुछ युवाओं में दमन की कुंठित मानसिकता काम करती रहती है।
ध्यान रखने की जरूरत है कि रैगिंग का शिकार विद्यार्थी प्रताड़ना और अपमान को भूल नहीं पाता। ऐसी घटनाओं के बाद कुछ पीड़ितों ने खुदकुशी भी कर ली। निस्संदेह ऐसे मामले न केवल मानवाधिकारों का हनन हैं, बल्कि गरिमा के विरुद्ध भी हैं।असल में यहां सवाल एक मासूम जिंदगी का न होकर देश के स्वर्णिम भविष्य का है। और छात्र रूपी भविष्य को सुरक्षित रखना हम सब की नैतिक व सामाजिक जिम्मेदारी है।
-रोहित माहेश्वरी



