घोसी विधानसभा का उपचुनाव  ‘एनडीए’ व ‘आइएनडीआइए’ गठबंधन के दमखम  की भी परीक्षा है।

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जब आप ये लेख पढ़ रहे होंगे तब शायद उत्तरप्रदेश के मऊ की  घोसी विधानसभा  उपचुनाव  का रिजल्ट आना शुरू हो चुका होगा पर उसके पहले  आपको इस उपचुनाव की पृष्टभूमि बताना आवश्यक है क्योकि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले हुए घोसी विधानसभा सीट के उपचुनाव में एनडीए‘ व आइएनडीआइए‘ गठबंधन के दमखम  की भी परीक्षा हो रही है। सेमीफाइनल के तौर पर देखे जा रहे इस उपचुनाव में दोनों ही गठबंधनों की यह पहली परीक्षा हैजिसका परिणाम आज  आठ सितंबर को आ रहा हैं ।

यह उपचुनाव  दोनों ही दलों के कई दिग्गज नेताओं का भविष्य भी तय करेगा। सपा विधायक रहे दारा सिंह चौहान के इस्तीफा देने से रिक्त हुई घोसी विधानसभा सीट के उपचुनाव में भाजपा ने दारा सिंह चौहान को अपने टिकट से लड़ाया  वहींसपा ने यहां से अपने पुराने धुरंधर नेता व पूर्व विधायक सुधाकर सिंह पर दांव लगाया । चुनाव के नतीजे जिस के पक्ष में आएंगेउसका पूर्वांचल में लोकसभा चुनाव तक असर रहेगा। यदि भाजपा प्रत्याशी को जीत मिली तो न केवल सपा के हाथ से एक सीट छिनेगीबल्कि पूर्वांचल में लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए को बड़ा मनोवैज्ञानिक लाभ होगा। नतीजा सपा के पक्ष में आया तो उत्तरप्रदेश  में इंडिया‘ को मजबूती मिलेगी। उप चुनाव में भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान के समर्थन में एनडीए के अपना दल (एस)सुभासपानिषाद पार्टी पूरी ताकत से डटे रहे थे । वहीं सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह को भी कांग्रेस , आप पार्टी और रालोद ने समर्थन दिया था । चुनावी माहौल से साफ नजर आ रहा था  कि चुनाव दो प्रत्याशियों में नहींबल्कि दो गठबंधन के बीच है। 436 लाख मतदाताओं के जातीय समीकरण ने मुकाबले को कांटे का बना रखा । भाजपा प्रत्याशी के लिए पूरी योगी सरकारभाजपा और आरएसएस के वैचारिक संगठन मैदान में डटे रहे । मुख्यमंत्री भी प्रतिदिन वहां की रिपोर्ट लेते रहे थे ।

इस घोसी उपचुनाव में मंगलवार को करीब 50.03 प्रतिशत वोट ही पड़े। 2022 में यहां 58 प्रतिशत और 2017 में 57 प्रतिशत वोट पड़े थे। घोसी में कम मतदान ने इन दोनों नेताओं की टेंशन भी बढ़ा दी है। सियासी गलियारों में वोटिंग कम होने के अलग – अलग  मायने निकाले जा रहे हैं। घोसी में सपा और भाजपा  ने प्रचार के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी। पहली बार इटावा-मैनपुरी से बाहर किसी उपचुनाव में सपा के रामगोपाल यादव घर-घर वोट मांगते देखे गए थे। वहीं भाजपा  ने अपने दोनों उपमुख्यमंत्रियों समेत करीब दर्जन मंत्रियों को फील्ड में उतार रखा था। राजनीतिक जानकार घोसी उपचुनाव को उत्तरप्रदेश  में इंडिया गठबंधन का लिटमस टेस्ट भी बता रहे हैं। भाजपा  के लिए भी यह चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण माना जा रहा था। ऐसे में कम वोट प्रतिशत ने सबकी धुकधुकी बढ़ा रखी  है।

घोसी उपचुनाव में कम मतदान के कई कारण रहे हैं । 1. वोटिंग के बीच बारिश ने घोसी के मतदान की रफ्तार रोक दी। स्थानीय जानकारों की मानें तो सुबह तक मतदान की गति तेज थीलेकिन दोपहर बाद बारिश की वजह से मतदाता घर से ही नहीं निकले।2. कम वोट पड़ने की एक वजह फिंगर प्रिंट का नियम भी था। कहा जा रहा है कि हर बूथ पर मतदाताओं के फिंगर लिए जा रहे थे। फिंगर मैच नहीं होने की वजह से भी मतदान में सुस्ती दिखी। 3. सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने आरोप लगाया है कि सरकार के कहने पर स्थानीय प्रशासन ने लोगों को वोट नहीं देने दिया। इसलिए मतदान प्रतिशत में कमी आई। सपा ने चुनाव आयोग में भी इसकी शिकायत भी  की है।4. जानकारों का कहना है कि उत्तरप्रदेश  के उपचुनाव में वोटिंग का ट्रेंड कम ही रहा है। इससे पहले खतौली उपचुनाव में 56 प्रतिशतजबकि रामपुर उपचुनाव में 39 प्रतिशत वोट पड़े थे। मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में भी 54 प्रतिशत वोट ही पड़े थे।

घोसी के सभी 10 उम्मीदवारों की किस्मत जो ईवीएम में कैद हो गई थी वह  आज खुल रही है । वोटों की गिनती तक   लोगों के बीच यह सवाल बना हुआ रहेगा  कि कम वोट पड़ने से किसको फायदा होगा?घोसी उपचुनाव में मायावती की पार्टी बसपा  ने दूरी बना रखी थीलेकिन अंतिम वक्त में पार्टी के ऐलान ने सबको चौंका दिया। बसपा  ने अपने वोटरों से वोट न करने की अपील की और वोट करो भी तो नोट को वोट दो ।

2022 के चुनाव में बसपा  उम्मीदवार को करीब 55 हजार वोट मिले थे। अब तक बसपा  के कोर वोटर्स भाजपा  में शिफ्ट होते रहे हैं। 2022 में बसपा  के प्रतिशत वोट एनडीए में शिफ्ट हो गया थे।घोसी में भी बसपा  वोटरों पर दारा सिंह की नजर थीलेकिन ऐन वक्त पर पार्टी की रणनीति ने कई समीकरण उलट-पलट दिए।

दारा सिंह चौहान के उम्मीदवार बनाने के बाद से ही भाजपा  कॉडर में नाराजगी की खबर आने लगी थी। पार्टी के कई सवर्ण नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर बिगुल फूंक दिया था।भाजपा  से बागी होकर उज्जवल मिश्र पर्चा भी भरने पहुंचे थेलेकिन वोटर लिस्ट में नाम न होने की वजह से उनका पर्चा खारिज हो गया था। मिश्रा अंतिम समय तक दारा के खिलाफ प्रचार करते रहे।जानकारों का कहना है घोसी में भाजपा  के कोर सवर्ण वोटर मतदान को लेकर उदासीन बने रहे।

गौरतलब है कि घोसी में सपा और भाजपा  ने अपने उम्मीदवारों के समर्थन में पूरी ताकत झोंक दी थी। दोनों पक्षों के बड़े से छोटे नेता मैदान में डटे हुए थे। ऐसे में रिजल्ट का सीधा असर उत्तरप्रदेश  की सियासत पर पड़ेगा।जो भी पार्टी जितेगीवो इस जीत को सीधे तौर पर 2024 से जोड़ने की कोशिश करेगी। क्योंकि 2024 चुनाव की घोषणा में अब बमुश्किल महीने का वक्त बचा हुआ है।

 ऐसे में सवाल यह है कि किसी भी दल की  हार – जीत का  उस  पार्टी पर क्या असर पड़ेगा?यदि बात करें भारतीय जनता पार्टी की तो उसने दलबदलू दारा सिंह चौहान को टिकट दिया थाजिसका पार्टी संगठन में भी काफी विरोध हो गया था। पार्टी ने डैमेज कंट्रोल के लिए संगठन को मैदान में उतार रखा था। अगर दारा चुनाव जितने में सफल हो जाते हैंतो भाजपा  संगठन को इसका क्रेडिट जाएगा। संगठन के मजबूती का असर सीधे 2024 के चुनाव पर पडे़गा।घोसी सीट अभी सपा के पास थी  और दारा सिंह पाला बदलकर भाजपा  में आए थे । दारा के साथ-साथ कई और विधायकों के सपा छोड़ने की अटकलें लग रही है। भाजपा  अगर घोसी जीत जाती हैतो इसका उदाहरण देकर सपा के कुछ विधायकों को अपने पाले में ला सकती है।भाजपा  के घोसी हारने पर सपा में हाल-फिलहाल शायद ही कोई बड़ी टूट हो। भाजपा  सपा के पिछड़ादलित और अल्पसंख्यक फॉर्मूला तोड़ने के लिए बड़े नेताओं को साधने की कोशिश में जुटी है।

अब यदि बात करे  समाजवादी पार्टी  तो   उसने  घोसी से स्थानीय सुधाकर सिंह को उम्मीदवार बनाया था। यहां चुनाव की कमान खुद शिवपाल सिंह यादव ने संभाल रखी थी। अगर सपा यहां चुनाव जीतती हैतो सपा कार्यकर्ताओं में नया जोश आएगा। लोकसभा में शिवपाल की भूमिका बढ़ सकती है।सपा घोसी अगर जीतती हैतो यह संदेश जाएगा कि पूर्वांचल में सपा सीधे तौर पर भाजपा  को चुनौती देने में सक्षम है। 2022 में ओम प्रकाश राजभर के साथ रहकर अखिलेश यादव ने गाजीपुरअंबेडकरनगर और आजमगढ़ में क्लीन स्वीप किया था।

पूर्वांचल में लोकसभा की कुल 21 सीटें हैंजिसमें से अधिकांश सीटों पर अभी भाजपा  का कब्जा है।सपा अगर यहां चुनाव हारती हैतो कांग्रेस 2024 के सीट बंटवारे में दबाव बढ़ा सकती है। कांग्रेस यह तर्क दे सकती है कि उत्तरप्रदेश  में सपा भी अकेले दम पर चुनाव नहीं जीत पा रही है।साथ ही अखिलेश के पिछड़ादलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) फॉर्मूले पर सवाल उठेगा। अखिलेश उत्तरप्रदेश  में 24 के रण में इसी फॉर्मूले से आगे बढ़ने की रणनीति बना रहे हैं। उत्तरप्रदेश  में पीडीए वोटरों की संख्या करीब 80 प्रतिशत है।

भले ही  बहुजन समाज पार्टी ने यहाँ से चुनाव नहीं लड़ा क्योकि उपचुनाव में अपना उम्मीदवार उतरना उसकी नीति नहीं है पर  पूर्वांचल के घोसी और गाजीपुर उसका  गढ़ माना जाता रहा है। बसपा  ने यहां इस बार उम्मीदवार नहीं उतारा  हैं। ऐसे में अगर यहां कम मार्जिन से किसी पार्टी के प्रत्याशियों की जीत होती हैतो मायावती की उपयोगिता बनी रह सकती है।लेकिन अधिक मार्जिन से जीत होने पर मायावती की सियासत पर सवाल उठेंगे। हाल ही में सपा के प्रमुख महासचिव रामगोपाल यादव ने कहा था कि मायावती अब राजनीति में ज्यादा प्रभावी नहीं रही हैं।2017 के बाद से मायावती की पार्टी में भगदड़ मची है। 2022 में पार्टी को सिर्फ एक सीट पर जीत मिली थी। घोसी उपचुनाव में भी अगर मायावती की भूमिका अप्रसांगिक साबित होती हैतो 2024 में उनकी पूछ शायद कम हो जाए।

इसके आलावा  भाजपा  के साथ ही सुहेलदेव समाज पार्टी की प्रतिष्ठा भी इस सीट पर दांव में लगी है। ओम प्रकाश राजभर हाल ही में भाजपा  गठबंधन में शामिल हुए हैं। ओम प्रकाश पूर्वांचल में राजभर समाज की राजनीति करते हैं।घोसी में करीब 50 हजार राजभर मतदाता हैं। भाजपा  अगर यह चुनाव बड़ी मार्जिन से हारती हैतो राजभर के लिए भी यह एक झटका साबित हो सकता है। कहा जा रहा है कि उपचुनाव के बाद भाजपा  कैबिनेट विस्तार उत्तरप्रदेश  में करने की तैयारी में है।घोसी हारकर अगर भाजपा  कैबिनेट विस्तार करती हैतो राजभर को भले कैबिनेट में जगह मिल जाएलेकिन उनके मन के मुताबिक शायद ही विभाग मिले।

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