कोरोना काल में शिक्षकों ने किया बेहतरीन कार्य

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भारत में हर साल शिक्षकों के सम्मान में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है. ठीक इसी तरह पूरी
दुनिया में शिक्षकों को सम्मानित करने के लिए 5 अक्टूबर को ‘विश्व शिक्षक दिवस मनाया जाता है। विश्व
शिक्षक दिवस के अवसर पर यूनेस्को संगठन की तरफ से 2023 का थीम कोविड-19 महामारी में बेहतरीन
कार्य करने वाले शिक्षकों के लिए रखा गया है। इस वर्ष इस दिवस की थीम शिक्षा का परिवर्तन शिक्षक के
साथ शुरू होता है रखी गई है। अंतरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस यूनिसेफ, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन और
अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा के साथ साझेदारी में मनाया जाता है। शिक्षक दिवस मनाने का उद्देश्य शिक्षकों के
महत्व और उनके योगदान को सम्मान दिलाना है। अंतरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर को दुनिया भर
में शिक्षकों की भूमिका और उसकी जिम्मेदारियों को समझाने के लिए मनाया जाता है। 1966 में यूनेस्को
और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की एक बैठक हुई जिसमें शिक्षकों के अधिकारों, जिम्मेदारियों, रोजगार और
आगे की शिक्षा के साथ गाइडलाइन बनाने की बात कही गई थी। संयुक्त राष्ट्र में विश्व शिक्षक दिवस को
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाने के लिए साल 1994 में 100 देशों के समर्थन से यूनेस्को की सिफारिश को पारित
कर दिया गया। इसके बाद 5 अक्टूबर 1994 से अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस मनाया जाने लगा। वैसे अलग-
अलग देशों में अलग तारीखों को शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि कोरोना काल में शिक्षकों के सामने चुनौतियां बढ़ गई थी । इस अवधि में
शिक्षकों की भूमिका अहम हो गई थी क्योंकि ऑनलाइन शिक्षण के जरिए बच्चों को रूचिकर शिक्षा के
जरिए जोड़े रखना चुनौती पूर्ण कार्य था जिसे शिक्षकों ने भलीभांति निभाया। । ऑनलाइन टीचिंग से लेकर
स्कूल खुलने पर दो-दो पालियों में शिक्षक-शिक्षिकाओं को स्कूल में समय देना पड़ा । शिक्षकों को घर-घर से
बच्चों को पठन पाठन के लिए भी बुलाना पड़ा । पढ़ाई में तकनीक का ज्यादा से ज्यादा उपयोग कैसे हो, नए
तरीकों को कैसे अपनाएं, छात्रों की मदद कैसे करें यह शिक्षकों ने सहजता से अपनाया।
कोरोना काल में शिक्षा और शिक्षकों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो गई । कोरोना ने सम्पूर्ण शिक्षा का
परिदृश्य ही बदल कर रख दिया । विकसित देशों ने अपने साधन जुटाते देर नहीं की मगर विकाशसील और
गरीब देश प्राथमिक और बुनियादी सुविधा नहीं जुटा पाए जिसके फलस्वरूप पठन और पाठन का कार्य
अधूरा रहा। देश में कोरोना संकट ने सबसे ज्यादा पठन पाठन पर असर डाला । ऑनलाइन पढाई जरूर हुई
मगर साधनों के भाव में यह ज्यादा सफल नहीं हुई।

कोरोना काल में सबसे ज्यादा हमारी शिक्षा व्यवस्था प्रभावित हुई है। कोविड 19 ने पूरी शिक्षा व्यवस्था को
एकदम नई और तकनीकी पर आश्रित कर दिया है। कोरोना संकट के दौर में शैक्षणिक संस्थानों के आगे जो
चुनौती है उसमें ऑनलाइन एक स्वाभाविक विकल्प है। आज शिक्षा और पठन-पाठन से जुड़ा हुआ हर शख्स
मोबाइल, आईपैड्स, लैपटॉप्स, डेक्सटॉप्स, टैब्स पर आ चुका है। शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्ति को सफल
जीवन जीने के लिए सशक्त बनानां, परिवार, समाज, राष्ट्र के लिए सर्वश्रेष्ठ योगदान देना है। कोरोना की
वैश्विक महामारी के दौर में भारत में शिक्षक और शिक्षार्थी नई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
कोरोना महामारी से पूर्व भारत के अधिकांश शिक्षण संस्थानों को ऑनलाइन शिक्षा का कोई विशेष अनुभव
नहीं रहा है, ऐसे में शिक्षण संस्थानों के लिये अपनी व्यवस्था को ऑनलाइन शिक्षा के अनुरूप ढालना और
छात्रों को अधिक-से-अधिक शिक्षण सामग्री ऑनलाइन उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती होगी। वर्तमान
समय में भी भारत में डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर की बहुत कमी है, देश में अब भी उन छात्रों की संख्या काफी
सीमित है, जिनके पास लैपटॉप या टैबलेट कंप्यूटर जैसी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। अतः ऐसे छात्रों के लिये
ऑनलाइन कक्षाओं से जुड़ना एक बड़ी समस्या है। शिक्षकों के लिये भी तकनीक एक बड़ी समस्या है, देश के
अधिकांश शिक्षक तकनीकी रूप से इतने प्रशिक्षित नहीं है कि औसतन 30 बच्चों की एक ऑनलाइन कक्षा
आयोजित कर सकें और उन्हें ऑनलाइन ही अध्ययन सामग्री उपलब्ध करा सकें। इंटरनेट पर कई विशेष
पाठ्यक्रमों या क्षेत्रीय भाषाओं से जुड़ी अध्ययन सामग्री की कमी होने से छात्रों को समस्याओं का सामना
करना पड़ सकता है। कई विषयों में छात्रों को व्यावहारिक शिक्षा की आवश्यकता होती है, अतः दूरस्थ
माध्यम से ऐसे विषयों को सिखाना काफी मुश्किल होता है।

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