देश में चुनाव आते ही कटु वचनों की बाढ़ सी आ जाती है। कटु वचन एक ऐसे जहर के सामान है जो भले ही पिया न जाये लेकिन वह असर जहर से भी तेजी से करता है। कटु वचन मित्र को भी शत्रु बनाते देर नहीं करता। देश में चुनावों के दौरान कटुता का जैसा सियासी वातावरण बन रहा है वह निश्चय ही हमारी एकता, अखंडता, भाईचारे और सहिष्णुता पर गहरी चोट पहुँचाने वाला है। इसके लिए कौन दोषी है और कौन निर्दोष है उस पर देशवासियों को गहनता से मंथन करने की जरुरत है। हम बात कर रहे है बिहार विधान सभा चुनावों की। नेताओं के बयानों, भाषणों और कटु वचनों से सियासी वातावरण जहरीला हो उठा है। जिस तरह से एक के बाद एक नेता विवादित बयान दे रहे हैं, उसकी वजह से चुनावी माहौल में सरगर्मी बढ़ गई है। विवादित बयान देने में आरजेडी, कांग्रेस नीत महागठबंधन और भाजपा जेडी यू नीत एनडीए सहित कोई भी नेता पीछे नहीं है। कहते है राजनीति के हमाम में सब नंगे है। यहाँ तक तो ठीक है मगर यह नंगापन हमाम से निकलकर बाजार में आ जाये तो फिर भगवान ही मालिक है। सियासत में विवादास्पद बयान को नेता भले अपने पॉपुलर होने का जरिया मानें, लेकिन ऐसे बयान राजनीति की स्वस्थ परंपरा के लिए ठीक नहीं होते। हमारे माननीय नेता आजकल अक्सर ऐसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे हमारा सिर शर्म से झुक जाता है। देश के नामी-गिरामी नेता और मंत्री भी मौके-बेमौके कुछ न कुछ ऐसा बोल ही देते हैं, जिसे सुनकर कान बंद करने का जी करता है।
देश को अमूमन हर साल कोई न कोई चुनाव का सामना करना ही पड़ता है । जैसे ही चुनाव आते है नेताओं के बांछे खिल जाती है । गंदे और कटु बोलों से चुनावी बिसात बिछ जाती है। पिछले दो दशक से गंदे और विवादित बोल बोले जा रहे है। नेताओं के बयानों से गाहे बगाहे राजनीति की मर्यादाएं भंग होती रहती है। अमर्यादित बयानों की जैसे झड़ी लग जाती है। राजनीति में बयानबाजी का स्तर इस तरह नीचे गिरता जा रहा है उसे देखकर लगता है हमारा लोकतंत्र तार तार हो रहा है। नेता लोग अक्सर चर्चा में रहने के लिए ऊल-जलूल और समाज में कटुता फैलाने वाले बयान देते रहते है। विशेषकर चुनावों के दौरान गंदे बोलों से चुनावी बिसात बिछ जाती है। कुछ सियासी नेताओं ने तो लगता है विवादित बयानों का ठेका ले रखा है। कई नेताओं पर विवादित बयानों पर मुक़दमे भी दर्ज़ हुए। कुछ को न्यायालय से सजा भी मिली। मगर इसका उनपर कोई फर्क नहीं पड़ा। विवादित बयानबाजी के कारण सुर्खियों में रहना नेताओं को शायद आनंद देने लगा है। पिछले दो दशक से गंदे और विवादित बोल बोले जा रहे है। नेताओं के बयानों से गाहे बगाहे राजनीति की मर्यादाएं भंग होती रहती है। अमर्यादित बयानों की जैसे झड़ी लग जाती है। राजनीति में बयानबाजी का स्तर इस तरह नीचे गिरता जा रहा है उसे देखकर लगता है हमारा लोकतंत्र तार तार हो रहा है।
जो लोग कटु वचन बोलते हैं और अपने वचनों से अन्य लोगों का मन दुखाते हैं। ऐसे लोगों के लिए रहीम दास जी ने अपने दोहे में बड़ी सीख दी है। रहीम दास जी ने कहा है, ”बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय। औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय।” भारत सदा सर्वदा से प्यार और मोहब्बत से आगे बढ़ा है। हमारा इतिहास इस बात का गवाह है हमने कभी असहिष्णुता को नहीं अपनाया। हमने सदा सहिष्णुता के मार्ग का अनुसरण कर देश को मजबूत बनाया। सहिष्णुता का अर्थ है सहन करना और असहिष्णुता का अर्थ है सहन न करना। सब लोग जानते हैं कि सहिष्णुता आवश्यक है और चाहते हैं कि सहिष्णुता का विकास हो। सहिष्णुता केवल उपदेश या भाषण देने मात्र से नहीं बढ़ेगी। सहिष्णुता भारतीय जनजीवन का मूलमंत्र है। मगर देखा जा रहा है कि समाज में सहिष्णुता समाप्त होती जारही है और लोग एक दूसरे के खिलाफ विषाक्त वातावरण बना रहे है जिससे हमारी गौरवशाली परम्पराओं के नष्ट होने का खतरा मंडराने लगा है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए सहनशील होना आवश्यक है। सहनशीलता व्यक्ति को मजबूत बनाती है, जिससे वह बड़ी से बड़ी परेशानी का डटकर मुकाबला कर सकता है। अक्सर देखा जाता है हम छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा कर देते हैं, जिससे बात आगे बढ़ जाती है और अनिष्ट भी हो जाता है। ऐसी ही छोटी-छोटी बातों को मुस्कुराते हुए सुनने वाला व्यक्ति ही सहनशील है।
– बाल मुकुन्द ओझा


