कोई झूमे भंग के नशे में कोई फाग के गीतों में

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रंग, उमंग, हास-परिहास और उल्लास का पर्व होली मुख्य रूप से रंगों का त्योहार है। इस
दिन लोग एकजुट होकर खुशियां मनाते हैं और एक दूसरे को प्यार और स्नेह के रंगों में
डुबोकर अपना उल्लास जाहिर करते हैं। हास-परिहास होली की आत्मा है। हँसना आदमी की
सेहत के लिए लाभप्रद माना गया है। रंगों के त्योहार होली का सबको आतुरता से इंतजार
रहता है। फाल्गुन महीना मौज़ मस्ती, उत्साह, मन की चंचलता से भरा होता है। फागुन का
महीना आते ही जैसे समूचा वातावरण रंगीन हो जाता है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को यह
त्योहार मनाया जाता है। होली का नाम सुनते ही हमारी रग रग फड़कने लग जाती है। यह
एक ऐसा अनूठा पर्व है जब लोग अपने गिले-शिकवे ख़त्म कर पुराने दुश्मन को भी गले
लगा लेते हैं। होली उन लोगों को भी हंसी-ठिठोली करने पर मजबूर कर देती है, जो धीर –
गंभीर भाव-भंगिमा में रहते हैं। इस दिन बच्चे से बुजुर्ग तक सभी उम्र के लोग एक दूसरे पर
रंग, अबीर-गुलाल आदि से होली खेलते हैं। ढोल मजीरे बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं
और घर-घर जा कर लोगों को गुलाल व रंग लगाया जाता है।
सचमुच होली में रंग है, प्यार है, उमंग है तरंग, आनंद और उल्लास है। यह त्योहार जाति-
भेद, छोटा – बड़ा अमीरी-गरीबी से ऊपर उठकर मित्रता और भाई-चारे का सन्देश देता है।
इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों में सरसों खिल उठती है।
बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब
उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। होली का यह रंग बिरंगा त्योहार मुख्य रूप से दो दिन
मनाया जाता है। पहले दिन होलिका दहन होती है। दूसरे दिन धुलेंडी मनाते है। इस दिन
एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल लगाते हैं. साथ ही ढोल बजा कर होली के गीत गाते हैं। देश
हमारा इतना रंगीला है कि इसका हर रंग पूरी दुनिया पर चढ़ गया है। बहुत से स्थानों पर
लोग ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। इस दिन
जगह-जगह टोलियाँ रंग-बिरंगे कपड़े पहने नाचती-गाती दिखाई पड़ती हैं। बच्चे पिचकारियों से
रंग छोड़कर अपना मनोरंजन करते हैं। सारा समाज होली के रंग में रंगकर एक-सा बन जाता
है। धुलेंडी के दिन एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके
बाद स्नान कर नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं। बच्चे
और युवा अपने बड़ों के पांव छूते है। एक दूसरे के गले मिलते हैं और मिठाइयाँ खिलाते हैं।

यह विशुद्ध मौज-मस्ती व मनोरंजन का सांस्कृतिक त्योहार है। रंगों का त्योहार होली समस्त त्योहारों
का शिरोमणि है। यह हर्षोल्लास, उमंग, उत्साह, एकता, प्रेम और मेल-मिलाप का अनुपम उपहार लेकर
आता है। आनन्द एवं उल्लास की अनुपम छटा बिखेरते इस अनूठे, चमत्कारी पर्व पर सभी प्रसन्न मुद्रा
में दिखाई देते हैं। चारों ओर रंग, अबीर, गुलाल की फुहार उड़ती दिखाई देती है। बच्चे से बुजुर्ग तक इसे
बड़े ही उत्साह व सौहार्दपूर्वक मनाते हैं। एक-दूसरे से मेल-जोल बढ़ाने और विभिन्नता में एकता का
माना जाता है। होली में मस्ती, ठिठोली और हुड़दंग देखने को मिलता है। होली की याद या चर्चा आते ही
मन मे हर्ष और मस्ती का सँचार हो जाता है ,रगँ अबीर गुलाल और फाग से हम सराबोर हो जाते है।
फाल्गुन के आगमन से ही मन मे अल्हडता चली आती है। जाने कहाँ गई वो होली जो कभी मेरे शहर को
रंगों से सराबोर कर देती थी, मस्त कर देती थी और उसे पहचान देती थी, लेकिन अब न तो वह होली
रही, न ही वह शोखी ,मस्ती ,रंगत एवं जिन्दादिली रही। आज होली बेनूर हो गई है।

– बाल मुकुन्द ओझा

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