नई दिल्ली। विदेशी निवेशक आने वाले समय में भारतीय बैंक में ज्यादा हिस्सेदारी ले सकेंगे। इसके लिए आरबीआई संबंधित नियमों में बदलाव की तैयारी कर रहा है। इससे भारत में लंबी अवधि के लिए पूंजी निवेश में मदद मिलेगी। आरबीआई ने मई में नियमों में ढील देकर जापान के सुमितोमो मित्सुई बैंकिंग कॉरपोरेशन को यस बैंक में 20 फीसदी हिस्सा खरीदने की मंजूरी दे दी थी। कनाडा की फेयरफैक्स होल्डिंग्स और एमिरेट्स एनबीडी भी इस समय आईडीबीआई बैंक में 60 फीसदी हिस्सा खरीदने की दौड़ में हैं। इससे विदेशी मालिकाना हक के नियमों को आसान बनाने के संकेत मिल रहे हैं। आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने पिछले सप्ताह कहा, केंद्रीय बैंक व्यापक समीक्षा के तहत बैंकों के लिए शेयरधारिता और लाइसेंसिंग नियमों की जांच कर रहा है।
विदेशी बैंक भारत में सौदे के लिए उत्सुक
आरबीआई विनियमित वित्तीय संस्थाओं को बड़ी हिस्सेदारी रखने की मंजूरी देने की सोच सकता है। हालांकि, यह हर मामले में अलग हो सकता है। विदेशी बैंक सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था भारत में सौदों के लिए उत्सुक हैं। खासकर तब, जब भारत क्षेत्रीय व्यापार समझौतों के लिए इच्छुक है। ऐसे समझौते एशिया और मध्य पूर्व में वैश्विक ऋणदाताओं के लिए भारत में नए अवसर खोल सकते हैं।
दुनिया के बड़े बैंकों का परिचालन भारत में
सिटीबैंक से लेकर एचएसबीसी और स्टैंडर्ड चार्टर्ड तक अधिकांश बड़े वैश्विक बैंकों का परिचालन भारत में है। वे मुख्यतः रोजी-रोटी के लिए कर्ज देने के बजाय अधिक लाभदायक कॉरपोरेट और लेनदेन बैंकिंग क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। भारत में बैंकों के कुल कर्ज में विदेशी बैंकों का हिस्सा 4 फीसदी से भी कम है।
बड़े बाजार की पहुंच से प्रेरित है यह सोच
भारतीय बैंक संघ के उपाध्यक्ष माधव नायर ने कहा, यह सोच भारत की मजबूत आर्थिक वृद्धि और बड़े बाजार की पहुंच से प्रेरित है। भारतीय विनियामकों को चिंता है कि बैंकिंग पूंजी जुटाने में भारत अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से पीछे है, जो तेज आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण होगा। मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस की एसोसिएट मैनेजिंग डायरेक्टर अलका अनबरसु ने कहा, भारत को मध्यम अवधि में अपनी बैंकिंग प्रणाली के लिए ज्यादा पूंजी की जरूरत होगी।