जन-जीवन और संतुलित पर्यावरण

ram

मानव निर्मित तकनीक तथा आधुनिकरण से पर्यावरण प्रतिदिन प्रभावित हो रहा है।हमें इसी कारण पर्यावरण प्रदूषण,अतिवृष्टि,अनावृष्टि,अम्लीय वर्षा,बादल फटना,भूस्खलन,,सूखा-बाढ,पेयजल की कमी आदि खतरों को झेलना पड़ रहा है। पर्यावरण के बिना जीवन की कल्पना असंभव है। मनुष्य के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए पर्यावरण की सेहत का ख्याल रखना जरुरी है। यह जिम्मेदारी किसी एक इंसान की नहीं बल्कि पृथ्वी पर रहने वाले हरेक व्यक्ति की ठहरती है।
पर्यावरण दो शब्दों ‘परि’ (जो हमारे चारों ओर है) और ‘आवरण’ (जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है) के मेल से बना है, जिसका शाब्दिक का अर्थ है हमारे चारों ओर का आवरण यानी की वातावरण। पर्यावरण फ्रेंच भाषा के शब्द एनविरोनिया (Environia) से लिया गया है जिसका मतलब है हमारे आस-पास या चारों ओर! वह परिवेश या वातावरण जिसमें हम निवास करते हैं यह उस परिवेश के जैविक पर्यावरण (जो जीवित होते हैं) और अजैविक पर्यावरण (जो जीवित नहीं होते हैं) दोनों का मिलाजुला रुप पर्यावरण है। पर्यावरण और जीव प्रकृति के दो प्रमुख संगठित और जटिल घटक हैं।पर्यावरण हमारे जीवन को नियंत्रित करने का काम करता है!सजीवों को चारों तरफ से घेरे रहता है और उनके जीवन को प्रभावित करता है।पर्यावरण वायुमंडल, जलमंडल, स्थलमंडल और जीवमंडल से मिलकर बना है। मिट्टी, पानी, हवा, आग और आकाश पर्यावरण के मुख्य घटक हैं, जिन्हें पंचतत्व कहते हैं।
पर्यावरण के मुख्य रूप से चार प्रकार हैं, पहला प्राकृतिक पर्यावरण- यह पर्यावरण का वह भाग है जो प्रकृति से हमें वरदान में मिला है। प्राकृतिक शक्तियाँ, प्रक्रियाएँ और तत्व मनुष्य के जीवन को प्रभावित करते हैं,उन्हें प्राकृतिक पर्यावरण कहते है।ये वो शक्तियाँ हैं जिनसे पृथ्वी पर विभिन्न वातावरणीय चीजें जन्म लेती हैं, इसमें जैविक चीजें और अजैविक चीजें दोनों शामिल हैं। जैविक चीजों में मनुष्य,पेड़-पौधे, जीव-जंतु,वनस्पति आदि हैं,वहीं अजैविक में जल,तापमान,हवा,तालाब, नदी, महासागर, पहाड़, झील,वन,रेगिस्तान,ऊर्जा,मिट्टी,आगआदि शामिल हैं। दूसरा मानव निर्मित पर्यावरण है,जिसमें मानव द्वारा निर्मित चीजें- उद्योग, शैक्षणिक संस्थाएँ, अधिवास, कारखाने, यातायात के
साधन,वन,उद्यान,श्मशान,कब्रिस्तान, मनोरंजन स्थल, शहर, कस्बा, खेत, कृत्रिम झील, बांध, इमारतें, सड़क, पुल, पार्क, अन्तरिक्ष स्टेशन यदि है। मानव शिक्षा और ज्ञान के बल पर विज्ञान तथा तकनीक की मदद से भौतिक पर्यावरण से क्रिया कर जिस परिवेश का निर्माण करे वहीं मानव निर्मित पर्यावरण हैं।
तीसरा भौतिक पर्यावरण जिसमें प्रकृति से बनी चीजों पर प्रकृति का सीधा नियन्त्रण होता है। जहां मानव हस्तक्षेप शामिल नहीं है।इसमें जलमण्डल, स्थलमण्डल और वायुमण्डल शामिल है। इनके अलावा स्थलरूप, जलीय भाग, जलवायु, मृदा, शैल तथा खनिज पदार्थ आदि विषय भी इसमें शामिल है।चौथा जैविक पर्यावरण जिसमें मानव और जीव-जन्तुओं के एक-दूसरे की मदद से बना जैविक पर्यावरण है।मानव सामाजिक प्राणी है,इस वजह से सामाजिक, भौतिक तथा आर्थिक गतिविधियों से जुड़ा है। इसमें सभी तरह की जीव प्रणाली शामिल हैं। इन सभी के बीच जो संबंध होता है उसे परिस्थितिकी कहा जाता है,पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने की प्रक्रिया है। इसके अंतर्गत पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, सूक्ष्म जीव, मानव आदि आते है।
पर्यावरण संरक्षण का आशय-चारों ओर के वातावरण का संरक्षण तथा जीवनानुकूल बनाए रखना हैं क्योंकि पर्यावरण तथा प्राणी एक-दूसरे पर आश्रित हैं। पर्यावरण के प्रति जागरुकता रखकर पर्यावरण दिवस मनाने की शुरुआत सर्वप्रथम स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम से हुई। इसी देश में दुनिया का सबसे पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें कुल 119 देशों ने हिस्सा लिया सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की नींव रखी गई और प्रतिवर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का संकल्प लिया गया। सन् 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने वैश्विक स्तर पर पर्यावरण प्रदूषण की समस्या और चिंता की वजह से विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की पहल की गई। हमारे देश में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रकृति और पर्यावरण के प्रति चिंताओं को जाहिर किया। विश्व पर्यावरण दिवस मनाना तभी सफल है जब दुनियाभर के सभी लोग पर्यावरण प्रदूषण की चिंताओं से अवगत रहे! हमारा दायित्व है प्रकृति तथा पर्यावरण का महत्त्व जानकर संरक्षण का प्रयत्न करे।
हमारे जीवन में पौधे और पेड़, हवा, भोजन तथा अन्य दैनिक उत्पादों के आवश्यक स्रोत हैं। वन विभिन्न जीवित प्राणियों के निवास स्थान हैं। वन संरक्षण का मतलब अधिक से अधिक पेड़ लगाना और पेड़ो को काटने से बचाना है! मिट्टी का कटाव,भूस्खलन बाढ़ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। भूमि उपजों के लिए मिट्टी समृद्ध पोषक तत्वों से भरी है। हम उर्वरकों और जहरीले रसायनों का न्यूनतम उपयोग सुनिश्चित कर मिट्टी के हानिकारक औद्यौगिक कचरे को नष्ट मृदा संरक्षण कर सकते है!रोजाना बड़ी मात्रा में कचरा सड़कों पर फेंका जाता है इससे भयानक बीमारियों तथा मृदा प्रदूषण भी होता है। हम विभिन्न तकनीक जैसे थ्रीआर का विकल्प चुन सकते हैं यानि पुन: उपयोग और रीसाइक्लिंग, सूखे और गीले कचरे को अलग करना।
हमे ऊर्जा-कुशल उपकरणों के उपयोग की आदत डालनी है।प्राकृतिक नॉन-रिन्यूएबल रिसोर्सेज का सोच-समझकर उपयोग करना है!प्रतिवर्ष जंगल की आग के कारण बड़ी संख्या में वन्य जीव,पेड़ खो देते हैं। हमें इसका समाधान खोजना होगा।प्राकृतिक नॉन-रिन्यूएबल रिसोर्सेज का उचित प्रयोग करना होगा। हमें बढती जनसंख्या और प्रदूषण
को नियंत्रित करना है।ताकि विनाश के कगार वाली प्रजातियों को बचाया जा सकता है।हम सब इस दिवस पर संकल्प करें -हम पर्यावरण अनुकूल जीवन शैली अपनाएंगे और भावी संतति को स्वच्छ और सुंदर पर्यावरण की विरासत सौंपने के लिए कटिबद्ध रहेंगे।

-हरीश सुवासिया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *