चंडीगढ़ मेयर चुनाव पर ऐतिहासिक फैसला

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सर्वोच्च न्यायालय ने चंडीगढ़ के महापौर चुनाव में हुई गड़बड़ी पर सख्त रवैया अपनाते हुए जिस तरह आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के संयुक्त उम्मीदवार को निर्वाचित घोषित किया उसकी सर्वत्र प्रशंसा हो रही है । न्यायपालिका की यही निडरता देश में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करने में सहायक है । यद्यपि राजनेताओं को ये अच्छा नहीं लगता और अनेक मर्तबा इस बात को लेकर बहस भी चली कि न्यायाधीश अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर निकलकर कार्यपालिका और विधायिका के दैनंदिन कार्यों में भी हस्तक्षेप करते हैं। चंडीगढ़ नगर निगम के मेयर चुनाव पर सर्वोच्च

न्यायिक पीठ ने जो न्याय किया है, वह ऐतिहासिक और क्रांतिकारी है। संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सर्वोच्च अदालत ने, चुनाव जैसे मुद्दे पर, जिस विशेषाधिकार का इस्तेमाल किया है, वह अभूतपूर्व है। यह ऐसा फैसला है, जिसे कोई चुनौती नहीं दे सकता। न्यायपालिका ने लोकतंत्र और उसमें निहित जन-शक्ति को बचाकर मिसाल कायम की है। वोट की लूट नहीं मचाई जा सकती और न ही चुनाव प्रक्रिया में धांधलियां कामयाब हो सकती हैं। सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले के जरिए यह संदेश पूरे देश को दिया है। मेयर चुनाव के पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह को ‘कदाचार’ का दोषी भी करार दिया गया है। अब उनके खिलाफ मुकदमा चलेगा और 3 से 7 साल तक की सजा भी दी जा सकती है। प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों ने पहली बार अदालत में ही किसी चुनाव के वोट जांचे और नतीजा घोषित किया।

न्यायाधीशों ने कहा कि चुनावी लोकतंत्र की प्रक्रिया को धोखाधड़ी से नाकाम करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। जहां असाधारण स्थितियां बनती हैं, वहां अदालत को दखल देना पड़ता है, ताकि बुनियादी जनादेश को संरक्षित किया जा सके। अनुच्छेद 142 के तहत अदालत का यह पहला ‘सुप्रीम फैसला’ है। इससे पहले भोपाल गैस त्रासदी कांड के पीड़ितों को राहत पहुंचाने और उन्हें मुआवजा दिलाने, राजीव गांधी के हत्यारे पेरारिवलन को जेल में 30 लंबे साल की सजा काटने के बाद रिहाई दिलाने और अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि के संदर्भ में अनुच्छेद 142 के तहत फैसले सुनाए गए थे।

बेशक चंडीगढ़ मेयर चुनाव का मुद्दा अपेक्षाकृत छोटा है, लेकिन इसके प्रभाव व्यापक होंगे, क्योंकि यह आम चुनाव के कुछ दिन पहले ही सामने आया है और अदालत ने 19 दिनों में हस्तक्षेप कर फैसला सुनाया है। अब भाजपा की चुनावी साजिशों और मंसूबों पर लगातार सवाल उठाए जाएंगे। न्यायिक पीठ ने 30 जनवरी को घोषित मेयर का चुनाव खारिज कर दिया और अवैध मतपत्रों को ‘वैध’ करार दिया और उन्हीं के आधार पर आम आदमी पार्टी (आप) एवं कांग्रेस के साझा प्रत्याशी कुलदीप कुमार को चंडीगढ़ का मेयर घोषित कर दिया।

भाजपा के रणनीतिकार, पैरोकार दलीलें देते रहे कि चुनाव दोबारा कराया जाए। चूंकि भाजपा ने ‘आप’ के तीन पार्षदों को तोड़ कर बहुमत का जुगाड़ कर लिया था, लेकिन सर्वोच्च अदालत ने उन दलीलों को खंडित कर कइयों को बेनकाब किया है। अकेला पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह इतनी बड़ी धांधली का ‘मसीहा’ नहीं हो सकता, जाहिर है कि इस साजिश में बड़ी मछलियां भी संलिप्त होंगी। अदालत के फैसले में उन्हें पर्दाफाश नहीं किया जा सका, लेकिन मसीह पर जो मुकदमा चलेगा, संभवतः उसके दौरान साजिशकार बेनकाब हों! ‘आप’ के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल ने इस सीमित धांधली को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य दे दिया है कि जो मेयर के चुनाव में धोखाधड़ी कर सकते हैं, वे लोकसभा चुनाव में कितनी व्यापक धांधली कर सकेंगे, यह सोचकर ही रूह कांपने लगती है।

बहरहाल, शीर्ष अदालत के फैसले ने आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व को प्राणवायु दे दी है। दिल्ली के मुख्यमंत्री व आप सुप्रीमो ने पुरानी कहावत दोहराते हुए कहा भी कि ‘सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं’। अब वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भाजपा पर नये सिरे से हमलावर हो रहे हैं। बल्कि वे भाजपा के आगामी लोकसभा चुनाव में जीत के दावों को लेकर भी सवाल उठा रहे हैं। दरअसल, चंडीगढ़ मेयर पद पर आप व कांग्रेस के साझे प्रत्याशी की जीत को अब इंडिया गठबंधन की जीत के रूप में दर्शाया जा रहा है। कहा जा रहा है कि पिछले महापौर चुनाव में ऊंच-नीच हुई थी, लेकिन मामला इतनी चर्चा में नहीं आया। अब तो राष्ट्रीय स्तर पर लोकसभा चुनाव को लेकर आप व कांग्रेस के तालमेल को लेकर नये सिरे से चर्चा होने लगी है। केजरीवाल आज खुश और उत्तेजित हैं कि भाजपा के चंगुल से जीत छीन कर लाई भी जा सकती है। बहरहाल इस संदर्भ को राष्ट्रीय व्यापकता में आंकना उचित नहीं है, क्योंकि 10 लाख से ज्यादा ईवीएम के जरिए जनादेश दिया जाता है। बहरहाल इस गड़बड़ी के लिए चुनाव आयोग बिल्कुल भी जिम्मेदार नहीं है, क्योंकि यह चुनाव उसके दायरे में नहीं था। चंडीगढ़ के उपायुक्त ने मनोनीत पार्षद मसीह को निर्वाचन अधिकारी नियुक्त करके शायद गलती की।

निश्चित रूप से लोकतंत्र में निर्वाचित प्रतिनिधियों को न्यायसंगत ढंग से अपने वोट का इस्तेमाल करने का अधिकार होना चाहिए। वहीं लोकतंत्र में संख्याबल का सम्मान किया जाना चाहिए। मेयर चुनाव में लोकतांत्रिक प्रक्रिया का मजाक बनाने वाले पीठासीन अधिकारी को शीर्ष अदालत की लताड़ निश्चित रूप से अन्य लोगों के लिये सबक साबित होगा। सवाल यह भी है कि पीठासीन अधिकारी ने यह कृत्य पार्टी के प्रति वफादारी जताने के लिये किया या फिर उस पर बाहरी दबाव था। निश्चित रूप से भाजपा नेतृत्व को भी हालिया घटनाक्रम से असहज स्थिति का सामना करना पड़ा है। उसकी छवि पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है। निस्संदेह, किसी लोकतंत्र की विश्वसनीयता तभी कायम रह सकती है जब चुनाव प्रक्रिया छल-बल के प्रभाव से मुक्त हो सके। हमारे तंत्र को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जनादेश का सम्मान करते हुए कोई चयन प्रक्रिया संपन्न हो।

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी दबंगई कानूनों का प्रयोग करते हुए इसमें सीधा हस्तक्षेप किया और स्वयं ने वोटों की फिर से गिनती करवाकर सही रूप से विजयी आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी को महापौर के रूप में घोषणा की, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव के नियमों का हवाला देते हुए उसमें की गई अनियमितताओं का भी उल्लेख किया और पीठासीन अधिकारी द्वारा अमान्य आठ मतों को मान्य कर संशोधित परिणाम घोषित कर दिया सर्वोच्च न्यायालय का यह कदम अब तक के भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण कदम बन गया, जो इसके इतिहास में दर्ज हो गया। चंडीगढ़ की इस छोटी सी घटना ने देश के प्रजातंत्री इतिहास में सर्वोच्च न्यायालय की अहम् भूमिका पुनः एक बार दर्ज करा दी। इस तरह पुनः एक बार देश को यह विश्वास हो गया कि इस देश में प्रजातंत्र की मुख्य संरक्षक न्यायपालिका ही है, जो हर अंग को अपने सही रास्ते पर लाने में सक्षम है।

आखिर क्यों हमारे राजनीतिक दल भी चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता कायम नहीं रख पाते? क्यों हर मामले में कोर्ट को दखल देकर न्यायसंगत चुनाव का मार्ग प्रशस्त करना पड़ता है? यदि कोर्ट नगर निगम और पालिकाओं के छोटे मामलों में बार-बार हस्तक्षेप करने को बाध्य होगी तो क्या राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को सुलझाने के लिये अदालत का समय प्रभावित नहीं होगा? कहीं न कहीं अदालतों में लगे वादों के अंबार के मूल में यह वजह भी है कि राजनीतिक दलों के पचड़े सुलझाने में कोर्ट का समय अनावश्यक रूप से व्यय होता है। माना जाना चाहिए कि चंडीगढ़ महापौर के मामले में दिया गया शीर्ष अदालत का फैसला भ्रष्ट राजनेताओं के लिये सबक ही नहीं, मार्गदर्शक नजीर भी साबित होगी।
-रोहित माहेश्वरी

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