आपने कई लोगों को तांबे के बर्तन में रखा पानी पीते देखा होगा और लोगों को कहते भी सुना होगा, कि तांबे के बर्तन में रखा पानी, स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद फायदेमंद होता है। एक दौर था जब पीने का पानी ताँबे की गुंडियों, वेसल्स और लोटों में रखा जाता था। गाँव देहात में ये प्रचलन आज भी कहीं ना कहीं देखने में आ ही जाता है लेकिन बीते कुछ दशकों में हमने ताँबे को भुलाना शुरू कर दिया।
पहले के लोग रात भर तांबे के बर्तन में पानी रखते थे और अगले दिन उसे पीते थे। कई बार बुजुर्गों से आपने कहते सुना होगा कि ताँबे के बर्तन में रखा पानी हार्ट के लिए, किडनी के लिए और आंखों के लिए बेस्ट होता है, इसमें एन्टी एजिंग इफ़ेक्ट भी होते हैं जो आपको जवां रखते हैं। इतना ही नहीं माना जाता है कि तांबे के बर्तन में रखा पानी खुद को साफ करता है, अब सवाल ये उठता है कि क्या वाकई इतना कारगर है ताँबे का पानी?
लम्बे समय तक ताँबे के बर्तन में पानी को रखा जाए तो इस इफ़ेक्ट की वजह से कॉपर आयन्स पानी में उतर आते हैं। कॉपर आयन्स पानी के सूक्ष्मजीवों खासतौर से बैक्टीरिया को मार गिराने में सक्षम हैं। इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेदा एन्ड इंटेग्रेटिव मेडिसिन (FRLHT, बेंगलुरु का संस्थान) के वैज्ञानिकों ने बाकायदा एक स्टडी को सन् 2012 में जर्नल ऑफ हेल्थ न्यूट्रिशन एंड पापुलेशन में प्रकाशित किया। इस स्टडी में पाया गया कि तांबे के बर्तन में 16 घंटों तक पानी रखने से डायरिया के लिए जिम्मेवार बैक्टीरिया जैसे विब्रियो कोलॅरी, शिजेला फ्लेक्सनेरी, ई. कोलाई, साल्मोनेला एंटेरिका टायफी, साल्मोनेला पैराटायफी मारे जाते हैं।
वैज्ञानिक रीति शरण और उनके साथियों ने एक लैब स्टडी के जरिये सन् 2011 में जर्नल ‘बीएमसी जर्नल ऑफ इन्फेक्शस डिजीज’ में बताया था कि कम से कम 24 घंटों तक ताँबे के बर्तन में पानी रखने से साल्मोनेला टायफी, साल्मोनेला टायफीमरियम और विब्रियो कोलॅरी बेअसर हो जाते हैं। कुल मिलाकर इस बात के पूरे प्रमाण हाज़िर हैं कि ताँबे के बर्तन में कमसे कम 24 घंटे रखा हुआ पानी कई घातक सूक्ष्मजीवों को खत्म करने में सक्षम है।