गोवा मुक्ति आंदोलन में डॉ. लोहिया का योगदान

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गोवा मुक्ति दिवस प्रतिवर्ष 19 दिसम्बर को मनाया जाता है। गोवा मुक्ति आंदोलन के जनक समाजवादी
नेता डॉ राम मनोहर लोहिया थे। गोवा के आजादी के आंदोलन में उनका योगदान भुलाया नहीं जा सकता।
यह वह समय था जब पंडित नेहरू गोवा को भुला बैठे थे। लोहिया कहते थे बिना आंदोलन के पुर्तगाली गोवा
को छोड़कर नहीं जायेंगे। वही हुआ भारत की आजादी के काफी साल बाद भी पुर्तगाली गोवा को छोड़ने को
तैयार नहीं हुए तो लोहिया ने आंदोलन की अलख जगाई और अपने साथियों के साथ गोवा कूच किया । 18
जून 1946 को डॉ. राम मनोहर लोहिया ने गोवा जाकर स्थानीय निवासियों को पुर्तगालियों के खिलाफ
आंदोलन करने के लिए प्रेरित किया था। लंबे अरसे तक चले आंदोलन के बाद 19 दिसम्बर 1961 को गोवा
को पुर्तगाली आधिपत्य से मुक्त कराकर भारत में शामिल कर लिया गया था। 1946 में आज ही के दिन
डॉक्टर राममनोहर लोहिया ने पुर्तगालियों के खिलाफ आंदोलन का नारा दिया था। तब अंग्रेजी साम्राज्य डूब
रहा था, कई बड़े राष्ट्रीय नेताओं का मानना था कि अंग्रेजों के जाते ही पुर्तगाली भी गोवा से कूच कर जाएंगे।
पर स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया सहमत नहीं थे कि बिना आंदोलन छेड़े
ऐसा संभव हो पाएगा।
गोवा को 19 दिसंबर 1961 को आजादी कैसे मिली, इसकी कहानी बहुत मार्मिक है। गोवा मुक्ति आंदोलन में
समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया और उनके समाजवादी साथियों के योगदान को नहीं भुलाया जा
सकता। गोवा के कण कण में डॉ. राम मनोहर लोहिया मिलेंगे। विशेषकर लोकगीतों में लोहिया आपको
मिलेंगे। एक गीत यहाँ काफी प्रसिद्ध है, पहिली माझी ओवी, पहिले माझी फूल, भक्ती ने अर्पिन लोहिया
ना। धन्य लोहिया, धन्य भूमि यह धन्य उसके पुत्र । गोवा की आजादी का सिंहनाद डॉ. लोहिया ने किया था।
वहां के लोकगीतों में डॉ. लोहिया का वर्णन पौराणिक नायकों की तरह होता है। यदि गोवा की आजादी का
श्रेय किसी एक व्यक्ति को देना हो तो वे डॉ. राममनोहर लोहिया हैं, जिन्होंने पहली बार गोवा के आजादी के
मुद्दे को राष्ट्रीय अस्मिता का मुद्दा बनाया और बीमारी के बावजूद गोवा मुक्ति संग्राम की अगुवाई करते
हुए अपनी गिरफ्तारी दी।
लोहिया ने पहली बार गोवा के आजादी के मुद्दे को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठाया और लोगों का
ध्यान आकर्षित करने में सफल हुए। 15 जून 1946 को पंजिम में डा0 लोहिया की सभा हुई जिसमें तय हुआ
18 जून से सविनय अवज्ञा प्रारम्भ होगा। पुलिस ने टैक्सी वालों को मना कर दिया था। डा0 लोहिया मड़गाँव
सभा स्थल घोड़ागाड़ी से पहुँचे। घनघोर बारिश, 20 हजार की जनता और मशीनगन लिए हुए पुर्तगाली

फौज। गगनचुम्बी नारों के बीच डा0 लोहिया के ऊपर प्रशासक मिराण्डा ने पिस्तौल तान दिया, लेकिन
लोहिया के आत्मबल और आभामण्डल के आगे उसे झुकना पड़ा। पाँच सौ वर्ष के इतिहास में गोवा में पहली
बार आजादी का सिंहनाद हुआ। लोहिया गिरफ्तार कर लिए गए। पूरा गोवा युद्ध-स्थल बन गया। पंजिम
थाने पर जनता ने धावा बोल कर लोहिया को छुड़ाने का प्रयास किया । एक छोटी लड़की को जयहिन्द कहने
पर पुलिस ने काफी पीटा। 21 जून को गवर्नर का आदेश हुआ कि आम-सभा व भाषण के लिए सरकारी
आदेश लेने की आवश्यकता नहीं। लोहिया चौक पर झण्डा फहराया गया। गोवा को अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता तथा पुर्तगाल को तीन माह की नोटिस देकर लोहिया लौट आए। महात्मा गांधी लोहिया की
गिरफ्तारी का पुरजोर विरोध किया। तीन महीने पश्चात डा0 लोहिया दोबारा गोवा के मड़गाँव के लिए चले।
उन्हें कोलेम में ही गिरफ्तार कर लिया गया। 29 सितम्बर से 8 अक्टूबर तक उन्हें आग्वाद के किले में कैदी
बनाकर रखा गया, बाद में अनमाड़ के पास लाकर छोड़ा गया। 2 अक्टूबर को अपने जन्मदिन के दिन बापू ने
लार्ड बेवेल से लोहिया की रिहाई के लिए बात की। लोहिया पर गोवा-प्रवेश के लिए मनाही हो गई।
गोवा मुक्ति आंदोलन के इतिहास में जिन लोगों ने अपना खून पसीना बहाया और जेल की यंत्रणा सही इस
दिन उनका समरण देशवासियों के लिए जरुरी है। गोवा आंदोलन में समाजवादी नेता डॉ लोहिया और उनके
साथियों की भूमिका अविसमरणीय है जिन्होंने अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए गोवा को आजादी
दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लोहिया के लम्बे जनजागरण के बाद गोवा को आजादी मिली थी।

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