बांग्लादेश : अस्थिरता, अराजकता और हिंसा के चक्रव्यूह में

ram

पड़ोसी देश बांग्लादेश के हालात ठीक नहीं है और बांग्लादेश पिछले 17-18 महीनों से लगातार अस्थिरता , अराजकता और धर्मांधता की आग में झुलस रहा है। हाल ही में बांग्लादेश में फिर से हिंसा भड़क उठी, यह बहुत ही दुखद है।जानकारी के अनुसार एक छात्र नेता का शव पहुंचने के बाद ढाका में आगजनी की घटनाएं हुईं और यह दावा किया जा रहा है कि मुख्य आरोपी भारत भाग गया है तथा इधर, बॉर्डर पर भारतीय सेना अलर्ट है। गौरतलब है कि बांग्लादेश में शेख हसीना के विरोधी नेता उस्मान हादी का शव 19 दिसंबर 2025 शुक्रवार शाम सिंगापुर से ढाका पहुंचा और इस बीच ढाका में आंदोलनकारी फिर हिंसक हो गये। मीडिया में उपलब्ध जानकारी के अनुसार उदिची संस्था के कार्यालय को जला दिया गया। ये संस्था कट्टरपंथियों के विरोध में काम करती है। दरअसल, उदिची शिल्पी गोष्ठी बांग्लादेश का एक प्रमुख सांस्कृतिक संगठन है,जो 1968 में स्थापित हुआ था। यह प्रगतिशील कला, संगीत और रंगमंच को बढ़ावा देता रहा है। वास्तव में यह लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आजादी और मानवाधिकारों से जुड़े आंदोलनों में भी सक्रिय भूमिका निभाता रहा है। हाल फिलहाल, यह बताया जा रहा है कि हत्यारों को ट्रांसपोर्टेशन में सपोर्ट करने वाले आरोपियों ने अदालत में हत्या के मुख्य आरोपी फैसल करीम के भारत भागने का दावा किया है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इससे पहले उस्मान हादी की गुरुवार रात मौत हो गई थी और इसके बाद बांग्लादेश में हिंसा भड़क गई थी। इस दौरान आंदोलनकारियों ने ढाका में 2 प्रमुख मीडिया हाउस, आवामी लीग(शेख हसीना की पार्टी के ऑफिस) के कार्यालय को फूंक दिया। इतना ही नहीं, ढाका के नजदीक भालुका में धर्म का अपमान करने के आरोप में एक हिंदू युवक को पीट-पीटकर मार डाला गया।एक रिपोर्ट के मुताबिक, युवक के शव को नग्न करके एक पेड़ से लटका कर उसे आग लगा दी।मृतक की पहचान दीपू चंद्र दास के रूप में हुई है। सोशल मीडिया पर इस घटना का एक वीडियो भी वायरल हुआ, जिसमें लोग ‘अल्लाह-हू-अकबर’ के नारे लगाते दिख रहे हैं। बहरहाल, यहां यह कहना ग़लत नहीं होगा कि इन दिनों में शायद ही कोई ऐसा महीना रहा होगा, जब यहां हिंसा ना भड़की हो। सच तो यह है कि शेख हसीना की सरकार गिराने के बाद देश में शांति लाने का वादा करने वाली मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार हिंसा रोकने में पूरी तरह से नाकाम रही है। हालांकि,यह बात अलग है कि यूनुस ने हाल ही की घटना पर यह बात कही है कि बांग्लादेश में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है। पाठकों को बताता चलूं कि बांग्लादेश में मुहम्मद यूनुस ने शुक्रवार को छात्र नेता उस्मान की मौत के बाद भड़की हिंसक प्रदर्शनों के बीच एक हिंदू व्यक्ति की पिटाई और हत्या की कड़ी निंदा की है। यूनुस ने जोर देकर कहा कि ‘नए बांग्लादेश में ऐसी हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है’। उन्होंने कहा कि इस अपराध में शामिल किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा।बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने पत्रकारों पर हमलों की भी कड़ी निंदा की है। दरअसल,उपद्रवियों ने देश के सबसे बड़े अखबार डेली स्टार और प्रोथोम आलो के ऑफिस में भी घुसकर तोड़फोड़ की थी और आग लगा दी थी। सरकार ने यह बात कही है कि वह हिंसा, धमकी, आगजनी और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की हर घटना की साफ और बिना किसी शर्त के निंदा करती है।सरकार ने कहा है कि इस समय बांग्लादेश एक ऐतिहासिक लोकतांत्रिक बदलाव के दौर से गुजर रहा है, जिसे नफरत और अराजकता से नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। अंतरिम सरकार ने लोगों से यह अपील की है कि वे भीड़ की हिंसा का विरोध करें। सरकार ने कहा कि कुछ कट्टर और हाशिए पर मौजूद तत्व देश को अस्थिर करना चाहते हैं। क्या यह चिंताजनक बात नहीं है कि भारतीय राजनयिक परिसरों और उनके घरों पर हमले किए गए हैं तथा पूर्व राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान के आवास में भी तोड़फोड़ की गई। वास्तव में सच तो यह है कि आज भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में हालात बहुत ही तेजी से बिगड़ते चले जा रहे हैं। वहां हिंसा और अराजकता बढ़ रही है और खास तौर पर हिंदुओं को निशाना बनाए जाने की खबरें लगातार सामने आ रही हैं। इसी बीच एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें पुराने ‘सिराजुद्दौला साम्राज्य’ को दोबारा बनाने की बात कही जा रही है, जिसमें भारत के कुछ हिस्सों को भी शामिल बताया गया है। वास्तव में,इससे माहौल और भी ज्यादा तनावपूर्ण हो गया है। बांग्लादेश में इन घटनाओं ने यह सवाल खड़े कर दिये हैं कि बांग्लादेश क्या सांप्रदायिक उग्रता की ओर बढ़ रहा है या फिर उसे जानबूझकर अस्थिर किया जा रहा है। भारत की चिंता यह भी है कि मौजूदा बांग्लादेशी नेतृत्व की नीतियां, बांग्लादेश में पाकिस्तान जैसी सोच को ही बढ़ावा दे रही हैं, जिससे भारत-विरोधी ताकतों को वहां खुला मंच मिल रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि मोहम्मद यूनुस, मोहम्मद अली जिन्ना की विचारधारा पर चल रहे हैं। यहां पाठकों को बताता चलूं कि 1920 से पहले जिस जिन्ना को ‘हिंदू-मुस्लिम एकता का राजदूत’ कहा जाता था, 1920 के बाद राजनीतिक परिस्थितियों के बदलने, कांग्रेस के बढ़ते वर्चस्व और मुस्लिम समुदाय के भविष्य को लेकर आशंकाओं के कारण उनकी सोच में परिवर्तन आ गया था और वे मुसलमानों के राजनीतिक अधिकारों और संवैधानिक सुरक्षा पर जोर देने लगे थे। 1937 के प्रांतीय चुनावों के बाद जिन्ना इस निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि हिंदू और मुस्लिम केवल धार्मिक नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी अलग राष्ट्र हैं, और इसी विचार से द्विराष्ट्र सिद्धांत तथा पाकिस्तान की मांग सामने आई थी। बहरहाल, भारतीय संसद की विदेश मामलों की समिति ने भी अपनी एक रिपोर्ट में यह बात कही है कि 1971 के बाद यह भारत के लिए बांग्लादेश से जुड़ा सबसे बड़ा कूटनीतिक और रणनीतिक संकट है। समिति के अनुसार, बांग्लादेश में चल रही हिंसा से भारत को गंभीर सुरक्षा और कूटनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।इसके साथ ही, भारत को यह डर भी है कि बांग्लादेश चीन के और करीब जा सकता है, जैसा कि चीन ने मोंगला बंदरगाह के विस्तार में भारी निवेश किया है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि मोंगला बंदरगाह बांग्लादेश का दूसरा सबसे बड़ा समुद्री बंदरगाह है तथा यह देश के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में, पशुर नदी के तट पर स्थित है और सुंदरबन के निकट होने के कारण रणनीतिक व पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। इसकी स्थापना 1950 के दशक में हुई थी।इस बंदरगाह से भारत ने अपनी सुरक्षा के लिए वहां रेलवे परियोजना में निवेश किया है। अंत में यही कहूंगा कि बांग्लादेश की स्थिति अब सिर्फ विदेश नीति की ही समस्या नहीं रही है, बल्कि यह भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए भी एक खतरा बनती जा रही है। दूसरे शब्दों में कहें तो बांग्लादेश में हालिया राजनीतिक-सामाजिक अस्थिरता ने भारत के लिए कहीं न कहीं गंभीर चिंता का विषय है। वहां बढ़ते विरोध-प्रदर्शन, हिंसा और भारत-विरोधी माहौल का असर सीमा सुरक्षा, द्विपक्षीय व्यापार और क्षेत्रीय स्थिरता पर पड़ रहा है। पिछले कुछ समय से भारत ने सीमावर्ती क्षेत्रों में और अधिक सतर्कता बढ़ाई है, क्योंकि अस्थिरता से अवैध गतिविधियों, शरणार्थी दबाव और बाहरी शक्तियों के प्रभाव की आशंका रहती है। कुल मिलाकर, बांग्लादेश का संकट भारत के लिए केवल पड़ोसी देश की समस्या नहीं, बल्कि सुरक्षा, कूटनीति और भू-राजनीतिक हितों से जुड़ा महत्वपूर्ण मुद्दा है।ऐसे हालात में भारत को बहुत सतर्क और समझदारी से कदम उठाने की जरूरत है।

-सुनील कुमार महला

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *