चाय पर चर्चा’और ‘मैं भी चौकीदार’ के बाद विपक्ष ने कैसे दे दिया मोदी को नया नारा ?

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2014 से लेकर आज तक विपक्ष नरेन्द्र मोदी को कोई न कोई ऐसा मौका दे देता है जिसका काट उसके पास भी नहीं होता है व नरेन्द्र मोदी मैदान मार जाते है । लगातार दस सालों तक सत्ता से बाहर रहने के बाद भाजपा ने हिंदुत्व के पोस्टर ब्वाय और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को 2014 में एनडीए के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया था। जैसा कि मीडिया का दस्तूर है, हर एक्शन पर रिएक्शन लेने की परंपरा है उसी परंपरा को निभाते हुए पॉलिटिकल रिएक्शन लेने मीडिया जा पहुंचा कांग्रेस महाधिवेशन में। सामने थे देश की सबसे पुरानी पार्टी के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर । अय्यर ने रिएक्शन दिया भी, वो ऐसा रिएक्शन, जिस पर एक नई तरह का सियासी एक्शन ही शुरु हो गया। मगर इससे पहले की हम उस बयान के बाद उठे सियासी बवंडर पर जाएं तो सवाल था कि क्या कांग्रेस नरेंद्र मोदी को चुनौती मानती है? अय्यर ने जवाब दिया कि मैं आपसे वादा करता हूं कि नरेंद्र मोदी इक्कीसवीं सदी में कभी भी देश के प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे, नहीं बनेंगे, नहीं बनेंगे, हां यहां आकर इस समय जारी कांग्रेस अधिवेशन में चाय बेचना चाहें तो हम उसका इंतजाम कर सकता हूँ ।

फिर क्या था भाजपा नेताओं ने सत्ताधारी यूपीए पर सियासी बाउंसरों की बौछार कर दी। कहा कि नरेंद्र मोदी के पिता चाय बेचा करते थे। यहां तक की खुद मोदी भी बचपन में अपने पिता की दुकान पर लोगों को चाय पिलाने का काम करते थे। मणिशंकर अय्यर के बयान को भाजपा ने मोदी के उसी बैकग्राउंड से जोड़ दिया। आरोप लगाया कि कांग्रेस वाले व्यक्तिगत कटाक्ष कर रहे हैं। मामला हाथ से निकलता देख कांग्रेस ने अय्यर को पार्टी से निलंबित भी कर दिया। मगर तब तक भाजपा 2014 के लोकसभा चुनाव का एक ‘धारदार हथियार’ तरकश ने निकाल चुकी थी। वो हथियार था- ‘चाय पर चर्चा’ ।

2 फरवरी 2014 को भाजपा ने ‘चाय पर चर्चा’ अभियान का आगाज़ किया। देशभर में चुनिंदा जगहों पर नरेंद्र मोदी ने लोगों के बीच बैठकर चाय पी और चाय के बहाने अलग-अलग मुद्दों पर चर्चा की। हर एक कार्यक्रम का दर्जनों जगहों पर थ्री डी टेलीकास्ट भी किया गया। ‘चाय पर चर्चा’ के बहाने भाजपा ने ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं को नरेंद्र मोदी से सीधा कनेक्ट करने का काम किया। इसका बड़ा योगदान चुनाव नतीजों में भी देखने को मिला।2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने 427 सीटों पर पर चुनाव लड़ा। जिनमें से 282 सीटों पर जीत दर्ज की। बोले तो अपने दम पर पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया। जबकि एनडीए को 336 सीटों पर जीत मिली। सिर्फ भाजपा का वोट शेयर 31 फीसदी का रहा। जबकि 464 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस 44 सीटों पर सिमट गई। पार्टी को 19.31 प्रतिशत वोट मिले। पूरी की पूरी यूपीए महज़ 59 सीटें ही हासिल कर पाई।

एनडीए की सरकार बनी और नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री। देखते-देखते 5 साल बीत गए। साल 2019, एक बार फिर चुनाव की बेला आ गई। उन्हीं दिनों भारत और फ्रांस के बीच लड़ाकू विमान राफेल की डील हुई थी। कांग्रेस ने डील में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। हर मंच पर पार्टी नेताओं ने राफेल के बहाने प्रधानमंत्री मोदी को घेरना शुरु कर दिया। डूंगरपुर के सांगवाड़ा में कांग्रेस की रैली हुई। तारीख थी 8 फरवरी 2019। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंच से राफेल का ज़िक्र किया और कह बैठे कि नरेंद्र मोदी ने कहा था कि मैं देश का प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहता हूं, मैं देश का चौकीदार बनना चाहता हूं। और अब देश के दिल में एक नई आवाज़ उठ रही है, गली-गली में शोर है, हिंदुस्तान का चौकीदार चोर है।

राहुल ये बोलने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर राफेल ख़रीदारी में घोटाला करने और कारोबारी अनिल अंबानी को फ़ायदा पहुंचाने का आरोप लगाया। मगर एक बार फिर भाजपा ने इस बाउंसर को हुक करते हुए बाउंड्री पार पहुंचाने की ठानी। 16 मार्च 2019 को नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर ‘मैं भी चौकीदार’ अभियान का आगाज कर दिया। भाजपा ने दावा किया कि देश हित में सोचने वाला हर शख्स चौकीदार है।फिर क्या था ट्विटर से लेकर फेसबुक तक तमाम सोशल मीडिया साइट्स पर भाजपा समर्थकों ने ‘मैं भी चौकीदार’ की जैकेट अपनी प्रोफाइल पिक्चर पर लगानी शुरु कर दी। ‘चौकीदार चोर है’ बनाम ‘मैं भी चौकीदार’ 2019 चुनाव का एक बड़ा मुद्दा बन गया। और जब इ वी एम के नतीजे आए तो भाजपा ने 37.30 % वोट शेयर और 303 सीटें हासिल करने में कामयाबी हासिल कर ली थी। यूं तो कांग्रेस को भी 2014 के मुकाबले 8 सीटों का फायदा हुआ था और वो 52 सीटें जीतने में कामयाब रही। मगर ये कामयाबी 272 के जादुई आंकड़े से कहीं कम थी। उत्तर भारत में कांग्रेस को जबरदस्त नुकसान हुआ। यहां तक की राहुल गांधी खुद अपने सबसे मजबूत गढ़ अमेठी में चुनाव हार गए थे।

वक्त का पहिया एक बार फिर घूमा और देखते ही देखते 5 साल बीत गए। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए को चुनौती देने के लिए इंडिया ब्लॉक बना लिया। इसी विपक्षी गठबंधन की जनविश्वास महारैली बिहार की राजधानी पटना में हो रही थी। तारीख- रविवार 3 मार्च, 2024। आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव रैली को संबोधित कर रहे थे। खुद पर लगने वाले परिवारवाद के आरोपों का जवाब देते हुए लालू ने प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधा और कहा कि प्रधानमंत्री आजकल परिवारवाद की बात कर रहें हैं। उनके पास परिवार नहीं है। वो हिन्दू भी नहीं हैं। मोदी कोई चीज हैं, क्या हैं? वो कहते हैं लोग परिवार के लिए लड़ रहे हैं। आपके पास परिवार नहीं है। आपकी माता जी का देहांत हुआ। हर हिंदू शोक में अपने बाल और दाढ़ी छिलवाता है। आपने क्यों नहीं छिलवाया?

प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर इस व्यक्तिगत टिप्पणी पर पलटवार किया और देश की 140 करोड़ जनता को अपना परिवार बता दिया। फिर क्या था, भाजपा के नीति निर्धारकों को बैठे बिठाए एक और कैम्पेन का आइडिया मिल गया। दो दिन के अंदर ही जगह-जगह ‘मोदी का परिवार’ नाम से बैनर-पोस्टर लगने लगे। इन सब घटनाओं के बीच राजनीतिक विश्लेषक ये कह रहे हैं कि 2024 के चुनावों से पहले विपक्ष ने एक बार फिर भाजपा को उसके नए इलेक्शन कैम्पेन का आइडिया दे दिया है।

अब सवाल ये है कि अब विरोधी दलों के नेता क्या करेंगे? क्या जवाब देंगे? परिवारवाद के खिलाफ मोदी की लड़ाई को कैसे फेस करेंगे? ये देखने में तो छोटा मुद्दा है, लेकिन बिहार, बंगाल,झारखंड, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, तमिलनाडु से लेकर जम्मू कश्मीर और आन्ध्र प्रदेश तक हर राज्य में विरोधी दलों के नेताओं को परिवारवाद के सवालों का सामना करना पड़ेगा। ये सही है कि नरेन्द्र मोदी अपने भाषणों में विरोधियों पर तीखा प्रहार करते हैं, विपक्ष के नेताओं के घपलों, घोटालों का जिक्र करते हैं, परिवारवाद का इल्जाम लगाते हैं, परिवारवाद को लोकतन्त्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बताते हैं, लेकिन कभी किसी नेता पर व्यक्तिगत हमले नहीं करते। लालू ने जो बात कही, वह नरेन्द्र मोदी पर व्यक्तिगत हमला था, राजनीतिक मर्यादा और शालीनता के खिलाफ था। इसलिए मोदी ने बिना देर किए पूरे देश को, 140 करोड़ लोगों को अपना परिवारजन बता दिया। लालू यादव के खिलाफ पटना के गांधी मैदान थाने में शिकायत दर्ज करवाई गई। भाजपा के नेताओं ने देशभर में लालू यादव के खिलाफ प्रदर्शन भी किया। लालू यादव ने फुलटॉस गेंद फेंकी और मोदी ने सिक्सर मार दिया।

आश्चर्य यह है कि विरोधी दलों के बड़े बड़े नेता अभी तक मोदी को समझ ही नहीं पाए हैं। पिछले साल पन्द्रह अगस्त को लाल किले से राष्ट्र के नाम संबोधन में और उसके बाद हर मौके पर, हर रैली में, मोदी ने देश के लोगों को “मेरे परिवारजनों” कह कर पुकारना शुरू किया। लेकिन लगता है विरोधी दलों के नेता मोदी की लाइन पकड़ ही नहीं पाए और लालू ने मोदी के परिवार पर सवाल उठा कर वही गलती कर दी, जो राहुल गांधी ने पिछले चुनाव में चौकीदार पर सवाल उठा कर की थी। ऐसे मामलों में कोई मोदी को मात नहीं दे सकता। मोदी फुल टाइम प्रधानमंत्री की तरह काम करते है, अपने परिवार पर, भाइयों पर, भतीजे भतीजियों पर उनका ध्यान कभी नहीं जाता। लेकिन रविवार को पटना में मोदी-विरोधी मोर्चे की रैली में मंच पर जो नेता बैठे थे वो सब पार्ट टाइम पॉलिटिशियन हैं। बयान देने वाले लालू तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं, सोनिया गांधी राहुल को प्रधानमंत्री बनाना चाहती है, एम.के. स्टालिन अपने बेटे उदयनिधि को मुख्यमंत्री बनाने चाहते है, शरद पवार की चिंता सुप्रिया सुले के भविष्य को लेकर है, उद्धव की चिंता हमेशा ये रहती है कि आदित्य का क्या होगा? अखिलेश यादव को तो मुलायम सिंह यादव पूरे परिवार की चिंता सौंप कर गए हैं, अखिलेश ने पत्नी, चाचा, भाई, भतीजा, सबको मैदान में उतारा है।। ये लोग परिवारवाद के सवाल पर मोदी से कैसे मुकाबला कर सकते हैं?

गौरतलब है कि मोदी कुल पांच भाई और एक बहन हैं। नरेन्द्र मोदी तीसरे नंबर पर हैं। सोमभाई मोदी सबसे बड़े हैं। वो गुजरात के स्वास्थ्य विभाग में काम करते थे। करीब बीस साल पहले रिटायर हो चुके हैं। दूसरे नंबर पर अमृत मोदी हैं। ये प्राइवेट फैब्रिकेशन प्लांट में काम करते थे। वो भी रियटार हो चुके हैं। नरेन्द्र मोदी के दो छोटे भाई हैं। एक प्रह्लाद मोदी सरकारी राशन की दुकान चलाते हैं। सबसे छोटे भाई हैं पंकज मोदी, जो गुजरात सरकार के सूचना विभाग में थे। वो भी नौ साल पहले रिटायर हो चुके हैं। मोदी की एक बहन हैं, वासंती बेन। विसनगर में अपने परिवार के साथ रहती हैं। इन सारे भाई बहनों में से कोई राजनीति में नहीं है। मोदी के भाई बहनों को तो छोड़िए। उनके भतीजे और भतीजियों का भी राजनीति से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं हैं। यहां तक परिवार वालों को सार्वजनिक तौर पर नरेन्द्र मोदी के नाम के इस्तेमाल की भी मनाही है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रह्लाद मोदी की बेटी का दिल्ली में पर्स चोरी हो गया था लेकिन उसने पुलिस को ये नहीं बताया कि वो प्रधानमंत्री की भतीजी हैं। इसीलिए अब जब पूरे देश में नारा चलेगा – “पूरा देश मोदी का परिवार” – तो लोग विरोधी दलों के नेताओं से उनके परिवारों का हिसाब मांगेंगे, और ये हिसाब देना मंहगा पड़ेगा।

– अशोक भाटिया,

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