ब्यावर। नेहरू गेट स्थित गीता भवन में सनातन धर्म सत्संग सभा के तत्वावधान में एक दिवसीय विशेष सत्संग कार्यक्रम में संत अर्जुनराम महाराज ने कहा कि प्रभु श्रीराम दीन दुखियों के कष्टों का हरण करने वाले व उद्धार करने वाले हैं। उन्होंने अपने चरण स्पर्श से अहिल्या का उद्धार किया और केवट से नाव मांगकर सिद्ध किया कि छोटे से छोटे व्यक्ति को भी पूर्ण सम्मान व समभाव प्रदान किया जाना उचित है। गीता भवन के मीडिया प्रभारी सुनील जैथल्या के अनुसार संत श्री ने बताया कि इस कलयुग में सांसारिक जीवन यात्रा भी एक युद्ध है। ईष्र्या, अहंकार, क्लेश, क्रोध व विभिन्न विकारों से बचकर जीवन यापन करना सहज नहीं है। सद्कर्म व धर्म का सहारा लेकर हम अपनी जिंदगी को सरल व सुखमय बना सकते हैं। राम चरित मानस के लंका कांड की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि युद्ध लडऩे के लिए रथ के दो पहिये शौर्य व धैर्य है, युद्ध भूमि हो या जीवन यात्रा शौर्य व धैर्य दोनों ही अति आवश्यक है, बल, विवेक ,दम व संयम रथ के घोड़े हैं और क्षमा, कृपा व समता ये तीनों रथ खींचने की रस्सियां हैं। अगर हम इन सब बातों को थोड़ी बहुत मात्रा में भी जीवन में उतार लें तो हम सुखमय व आनंदमय जीवन जी सकते हैं। महाराज ने आगे बताया कि सत्यवादी होना ठीक है, लेकिन सत्यशील होना श्रेष्ठ है, क्योंकि सत्य कटु हो सकता है, लेकिन सत्यशील व्यक्ति सदैव मीठा सत्य ही बोलेगा। कथा प्रारंभ से पूर्व जुगल किशोर मनियार, लादूराम सोमानी, श्याम सुंदर राठी आदि ने महाराज का पुष्पहार व शॉल, श्रीफल से सम्मान किया।

ब्यावर : युद्ध भूमि हो या जीवन यात्रा शौर्य व धैर्य अति आवश्यक है, सनातन धर्म सत्संग सभा के तत्वावधान में एक दिवसीय विशेष सत्संग कार्यक्रम
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