शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन साधना और संयम की देवी मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित होता है। यह दिन आत्मानुशासन, ज्ञान और तपस्या की ओर अग्रसर होने का संदेश देता है। मां दुर्गा के इस स्वरूप का ध्यान करते हुए साधक न केवल अपनी आंतरिक ऊर्जा को जाग्रत करते हैं, बल्कि मानसिक दृढ़ता और आत्मबल को भी मजबूत करते हैं। ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है ‘ब्रह्म की ओर चलने वाली’ — यानी वह शक्ति जो हमें आत्मज्ञान की दिशा में मार्गदर्शन करती है। पूजन विधि की बात करें तो, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा शुद्धता और एकाग्रता के साथ की जाती है। सफेद वस्त्र धारण कर भक्त देवी को सादा जल, अक्षत, पुष्प और चंदन अर्पित करते हैं। दीप प्रज्वलित कर “ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः” मंत्र का जाप करने से मन स्थिर होता है और साधना की शक्ति मिलती है। पूजा के समय मां की मूर्ति या चित्र के समक्ष बैठकर ध्यान लगाना और उनके गुणों का स्मरण करना साधक के भीतर शांति और साहस का संचार करता है।
पूजन विधि
नवरात्रि के दूसरे दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र करने के बाद माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। दीपक प्रज्वलित कर संकल्प लें और “ॐ ब्रह्मचारिण्यै नमः” मंत्र का जप करें। देवी को लाल या पीले वस्त्र अर्पित करें। चंदन, अक्षत, कुमकुम और पुष्प चढ़ाकर उनकी पूजा करें। धूप और कपूर से आरती करें और मिश्री, गुड़, शहद या शक्कर का भोग लगाएं।
आवश्यक पूजन सामग्री
लाल/पीला वस्त्र या कपड़े से ढका आसन
माता की प्रतिमा या चित्र
कलश, नारियल और आम्रपत्र
गंगाजल, रोली, अक्षत, कुमकुम और पंचमेवा
पुष्पमाला, बेलपत्र और चंदन
दीपक, धूपबत्ती और कपूर
मिश्री, गुड़, शक्कर, दूध, दही, घी, शहद (पंचामृत)
मौली/कलावा और सिंदूर
मां ब्रह्मचारिणी के मंत्र
“ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः”
या –
“दधाना कर पद्माभ्याम् अक्षमालाकमण्डलु।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥”
विशेष उपाय
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के समय गंगाजल में मिश्री डालकर अर्पण करना शुभ माना जाता है। यह साधक को धैर्य और स्पष्ट बुद्धि प्रदान करता है। पूजा पूर्ण होने के बाद किसी कन्या को खीर, मिश्री या दूध का प्रसाद देना विशेष फलदायी माना जाता है।
मां ब्रह्मचारिणी की कथा
कथाओं के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए वर्षों तक कठोर तप किया। इस तपस्या के बल पर उन्हें ‘ब्रह्मचारिणी’ कहा गया। उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया। इसीलिए नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से भक्त को इच्छित वरदान की प्राप्ति होती है और कठिन परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति मिलती है। नवरात्रि का यह दिन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मचिंतन और आत्मशुद्धि का अवसर भी है। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से व्यक्ति अपने जीवन में अनुशासन, त्याग और साधना को स्थान देता है, जो कि आध्यात्मिक विकास की नींव हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, देवी ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए वर्षों तक कठिन तप किया था। उनका यह तप इस बात का प्रतीक है कि सच्चे संकल्प और आत्मनियंत्रण से कोई भी लक्ष्य पाया जा सकता है। इसी भाव से जब भक्त मां ब्रह्मचारिणी की आराधना करते हैं, तो उन्हें भी तप, संयम और वैराग्य जैसे दिव्य गुणों की अनुभूति होती है। यह दिन विशेष रूप से उन साधकों के लिए महत्वपूर्ण होता है जो आत्मिक उन्नति की राह पर अग्रसर हैं।