वह भी एक दिन था जब देश और दुनिया में मजदूरों के हक़ हकूकों के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी जाती थी। दुनिया के मजदूरों एक हो के नारे से समस्त संसार गूँज उठता था। मगर मजदूरों के अधिकारों की लड़ाई आज मुठी भर संगठनों के प्रदर्शनों में दबकर रह गई है। अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस को श्रमिक दिवस भी कहा जाता है।
यह हर साल 1 मई को दुनिया भर में मजदूरों और कामगारों के योगदान और उनके अधिकारों के सम्मान में मनाया जाता है। श्रमिक हमारे समाज का महत्वपूर्ण अंग है। अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 2024 की थीम ‘सामाजिक न्याय और सभी के लिए सभ्य कार्य रखी गई है। इसके अलावा भी कई बिंदुओं को रखा गया है। इस थीम का उद्देश है मज़दूरों की गरिमा का ख्याल रखना और उन्हें शांतिपूर्ण कामकाजी वातावरण प्रदान करना। अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस पूरे विश्व में 1 मई को मनाया जाता है।
मजदूर हमारे समाज का वह तबका है जिस पर समस्त आर्थिक उन्नति टिकी होती है। वह मानवीय श्रम का सबसे आदर्श उदाहरण है । आज के मशीनी युग में भी उसकी महत्ता कम नहीं हुई है । उद्योग, व्यापार ,कृषि, भवन निर्माण, पुल एवं सड़कों का निर्माण आदि समस्त क्रियाकलापों में मजदूरों के श्रम का योगदान महत्त्वपूर्ण होता है । मजदूर अपना श्रम बेचता है। बदले में वह न्यूनतम मजदूरी प्राप्त करता है।
उसका जीवन-यापन दैनिक मजदूरी के आधार पर होता है । जब तक वह काम कर पाने में सक्षम होता है तब तक उसका गुजारा होता रहता है। जिस दिन वह अशक्त होकर काम छोड़ देता है, उस दिन से वह दूसरों पर निर्भर हो जाता है । भारत में कम से कम असंगिठत क्षेत्र के मजदूरों की तो यही स्थिति है। असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की न केवल मजदूरी कम होती है, अपितु उन्हें किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा भी प्राप्त नहीं होती ।
महात्मा गांधी ने कहा था कि किसी देश की तरक्की उस देश के कामगारों और किसानों पर निर्भर करती है। उद्योगपति स्वय को मालिक या प्रबंधक समझने की बजाय अपने-आप को ट्रस्टी समझे । आजादी के बाद देश ने विज्ञान, कृषि, उद्योग, सूचना प्राद्योगिकी, तकनीक सहित अनेक क्षेत्रो में तरक्की की लेकिन इस तरक्की से कौसो दूर रहे मजदूर वर्ग को जीवन यापन के लिए आज भी कड़ी मशक्क्त से गुजरना पड़ता है।
देश के विकास में मजदूर वर्ग का एक बड़ा योगदान होने के बावजूद भी मजदूर वर्ग की निजी जिंदगियाँ विकास से अछूती रही हैं । दुनियां के मजदूरों एक हो का नारा हमने बुलंद किया। अनेक श्रम कानून बनाकर मजदूर वर्ग के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। संगठित क्षेत्रों में मजदूरों को इसका लाभ भी मिला मगर असंगठित क्षेत्र के मजदूर आज भी रोटी कपडा और मकान के लिए तरस रहे है। आजादी के 76 वर्षों के बाद भी हम कामगारों को न्याय नहीं दिला पाए है। मगर असंगठित क्षेत्र के मजदूर आज भी अपने हकों से मरहूम है। आज उनके लिए फर्नांडीज ,गोपालन या ठेंगड़ी जैसा नेता नहीं है।
आजादी के शुरू के 50 वर्षों में मजदूरों के हितों के लिए लड़ाई लड़ने वाले नेता थे मगर आज दूर दूर भी कोई संघर्षशील नेता दिखाई नहीं दे रहा है। देश का मज़दूर आज भी बेहाल है। रोटी कपड़ा और मकान के लिए उनका संघर्ष अनवरत जारी है। कारखाने, कंपनियां और छोटे बड़े सभी प्रकार के उद्योग दस-दस बारह-बारह घंटे काम के लेकर भी पूरी मज़दूरी का भुगतान नहीं करते।
अपने श्रम का पूरा भुगतान मांगने वालों पर बर्खास्तगी और छंटनी आदि का खतरा लगातार मंडराता रहता है। क्योंकि उनकी आवाज़ को बल देने वाले नेता अब नहीं है। आज मज़दूर संगठन भी है और नेता भी मौजूद है मगर वो धार नहीं है जिसकी आज जरुरत है। अब तो मजदूरों को मई दिवस भूलना पड़ेगा या संघर्ष की कमान खुद को ही संभालनी पड़ेगी तभी मई दिवस का सपना पूरा होगा।
– बाल मुकुन्द ओझा



