कोटा। वन्यजीव हमारे दुश्मन नहीं हैं, बल्कि वे भयभीत प्राणी हैं जो अपने आवास खत्म होने के कारण गाँवों की ओर आ जाते हैं। ऐसे मामलों में वन विभाग को तुरंत सूचना देना समाधान है, न कि प्रतिक्रिया स्वरूप हिंसा। यह बात अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर लंका गांव में आयोजित नुक्कड़ नाटक के दौरान ग्रामीणों को समझाई गई। कार्यक्रम में 120 से अधिक ग्रामीणों ने भाग लिया, जिनमें महिलाएं, बच्चे और स्वयं सहायता समूहों के सदस्य शामिल थे। राजस्थान फॉरेस्ट्री एंड बायोडायवर्सिटी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट (आरएफबीडीपी) की परियोजना निदेशक टी.जे. कविथा ने बताया कि नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से मानव-वन्यजीव संघर्ष कम करने, वन संरक्षण बढ़ाने और महिलाओं को सशक्त बनाने जैसे संदेश सरल और प्रभावशाली ढंग से लोगों तक पहुँचाए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि हमारा लक्ष्य है कि लोग अपने आस-पास के वनों को अपनी धरोहर मानें और उनके संरक्षक बनें। परियोजना का उद्देश्य प्राकृतिक वनों का संरक्षण एवं विकास, संकटग्रस्त प्रजातियों का संरक्षण, शुष्क घास भूमि की पुनर्स्थापना और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से सतत वन प्रबंधन को बढ़ावा देना है। उन्होंने कहा कि जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को प्रकृति और परियोजना से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। डीसीएफ अपूर्व कृष्ण श्रीवास्तव ने बताया कि आरएफबीडीपी का उद्देश्य है वनों एवं वन्य प्रजातियों का संरक्षण केवल नीति तक सीमित न रहे, बल्कि यह ग्रामीण जीवन का हिस्सा बने, खासकर उन लोगों के लिए जो प्रत्यक्ष रूप से वनों पर निर्भर हैं।
ग्रामीणों को समझाया वन्य जीव हमारे दुश्मन नहीं
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