जब भी पूजा-पाठ के समय किसी भी मंत्र का जाप किया जाता है, तो इसकी शुरूआत ‘ऊँ’ से की जाती है। योग और ध्यान की विधि में भी ‘ऊँ’ का उच्चारण किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह एक शब्द क्या है। इसका इतना महत्व क्यों है और मंत्र की शुरूआत में ‘ऊँ’ लगाने से क्या लाभ मिलता है। अगर आपके मन में इसी तरह के सवाल हैं, तो यह आर्टिकल आपके लिए है। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको ‘ऊँ’ के महत्व के बारे में बताने जा रहे हैं। ‘ऊँ’ शब्द तीन अक्षर अ, उ और म से मिलकर बना है। यह तीन अक्षर त्रिदेव यानी की ब्रह्मा, विष्णु और महेश को दर्शाते हैं। इसके अलावा यह तीन अक्षर रजो गुण, सतो गुण और तमो गुण का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। अ, उ और म यह तीन अक्षर सत, चित और आनंद है। साथ ही यह ब्रह्मांड की सबसे पहली ध्वनि और सृष्टि के उद्भव का प्रतीक होता है। इसका जाप करने से निगेटिव एनर्जी दूर होती है और हिंदू धर्म के अलावा बौद्ध व सिख धर्म में भी इसके महत्व को स्वीकार किया गया है। किसी भी मंत्र के आगे ‘ऊँ’ जुड़ने से मंत्र शक्तिशाली और शुद्ध हो जाता है। इसको बीज मंत्र भी कहा जाता है। साथ ही यह मंत्र जाप करने के समय किसी भी त्रुटि या दोष को दूर करने में सहायता करता है। इसके साथ ही यह एकाग्रता और ध्यान को बढ़ाने में भी मदद करता है। ऊँ का उच्चारण करने से मानसिक तनाव में कमी आती है।
‘ऊँ’ लगाने से बढ़ जाती है मंत्र की शक्ति, जानिए महत्व और उच्चारण के नियम
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