आज एआइ (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) के इस युग में दुनिया पल-पल बदल रही है। डिजिटल तकनीक और सोशल मीडिया ने हमारे जीवन के हर पहलू को कहीं न कहीं अवश्य ही प्रभावित किया है। संवाद के पारंपरिक माध्यम(पत्र-लेखन कला) अब इतिहास की किताबों में सिमटते जा रहे हैं। व्हाट्सऐप, ईमेल, इंस्टाग्राम और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म ने बातचीत को जितना तेज़ और सुविधाजनक बनाया है, उतना ही भावनाओं और गहराई को कम कर दिया है। इन्हीं बदलावों के बीच एक बहुत महत्वपूर्ण कला धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है- पत्र लेखन की कला। यहां कहना गलत नहीं होगा कि आज के समय में बहुत कम लोग ही पत्र लिखते हैं। एक दौर था जब पत्र केवल संदेश नहीं, बल्कि भावनाओं का वाहक होते थे। वे अपने साथ रिश्तों की गर्माहट, प्रतीक्षा की मिठास और आत्मीयता की सच्ची सुगंध लिए होते थे। घर के किसी कोने में रखे पत्रों के बक्से में अनगिनत यादें सहेजी जाती थीं। वास्तव में सच तो यह है कि पहले के समय में संचार का सबसे लोकप्रिय माध्यम पत्र हुआ करता था। लोग अपने सुख-दुख, शुभकामनाएं और समाचार एक-दूसरे तक पहुँचाने के लिए अंतर्देशीय पत्र और पोस्टकार्ड लिखा करते थे। डाकिए के इंतज़ार में लोग बेसब्री से पत्र की प्रतीक्षा करते थे। हर शब्द में अपनापन, भावनाएं और स्नेह झलकता था। उन पत्रों से रिश्तों की गर्माहट बनी रहती थी और दूरी के बावजूद मन जुड़ा रहता था।आज मोबाइल के एक संदेश से बात तो तुरंत हो जाती है, लेकिन वह गहराई और आत्मीयता शायद ही कभी महसूस होती है।पत्र लिखना मात्र एक कौशल नहीं, बल्कि एक तरह से एक सामाजिक गतिविधि भी है। यह व्यक्ति को सोचने, अभिव्यक्त करने और संवाद करने का संयम सिखाता है। जब हम पत्र लिखते हैं, तो शब्दों का चयन सोच-समझकर करते हैं। अपनी भावनाओं को सटीक शब्दों में पिरोने की कोशिश करते हैं। इस प्रक्रिया में भाषा की सुंदरता और भावनाओं की गहराई दोनों विकसित होती हैं। यही कारण है कि पुराने समय में पत्र लेखन को शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा माना जाता था। पत्र हमें आत्मीयता से जोड़ते हैं। जो बात पत्र लेखन में होती हैं,उसकी बात ही कुछ अलग होती है। मसलन,पत्र में व्यक्ति विशेष की लिखावट, स्याही की महक, और शब्दों में व्यक्ति विशेष की उपस्थिति का एहसास।सच बात तो यह है कि यह भावनात्मक अनुभव किसी भी डिजिटल संदेश से कहीं अधिक जीवंत होता है। आज समय बदल चुका है।समय के साथ चलना बहुत जरूरी है, क्यों कि जो व्यक्ति समय के साथ नहीं चलता है,वह जमाने से पीछे रह जाता है, लेकिन कुछ चीजें जीवन में ऐसी होतीं हैं, जो पुरातन व्यवस्था में ही अच्छी लगतीं हैं, और पत्र लेखन उनमें से एक है।यह समय की विडंबना ही है कि आज के समय में जब बच्चों की दुनिया मोबाइल, गेम्स और सोशल मीडिया तक सीमित हो रही है, ऐसे समय में पत्र लेखन का अभ्यास फिर से शुरू करना बेहद आवश्यक है। इससे न केवल उनकी भाषा-अभिव्यक्ति सुधरेगी, बल्कि उनमें धैर्य, संवेदनशीलता और विचारों की परिपक्वता भी आएगी। वास्तव में, आज स्कूलों में बच्चों को पत्र लेखन की ओर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए-माता-पिता, दादा-दादी या किसी मित्र को पत्र लिखने की आदत विकसित करनी चाहिए। जब बच्चा किसी को पत्र लिखेगा, तो वह न केवल शब्दों में अपनी भावना व्यक्त करेगा, बल्कि ‘संवाद की कला’ भी सीखेगा।पत्र लेखन का सबसे पहला लाभ यह है कि यह व्यक्ति की भावनाओं और विचारों को सटीक रूप से व्यक्त करने का बेहतरीन माध्यम है। पत्र लिखते समय हम अपने मन की बातों को सोच-समझकर शब्दों में ढालते हैं, जिससे हमारी भाषा, लेखन कौशल और अभिव्यक्ति क्षमता विकसित होती है। दूसरा लाभ यह है कि पत्रों में भावनाओं की सच्चाई और आत्मीयता झलकती है, जो किसी भी संदेश को अधिक व्यक्तिगत और प्रभावशाली बना देती है। इसके अलावा, पत्र संवेदनाओं को सहेजने और यादों को संजोने का माध्यम भी हैं। पुराने पत्र पढ़ने पर हमें अपने जीवन के खास पलों और रिश्तों की गर्माहट फिर से महसूस होती है। साथ ही, पत्र लेखन धैर्य, अनुशासन और एकाग्रता को भी बढ़ाता है, क्योंकि इसमें तात्कालिक प्रतिक्रिया की बजाय सोच-समझकर संवाद करना पड़ता है। इस प्रकार पत्र लेखन न केवल संचार का साधन है, बल्कि यह संवेदनशीलता, संस्कृति और मानवीय संबंधों की गहराई को भी जीवित रखता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि जब हम किसी को पत्र लिखते हैं, तो उसमें अपना समय और मन दोनों लगाते हैं। हम सोचते हैं कि सामने वाला क्या महसूस करेगा, और उसके मन-मस्तिष्क पर हमारे शब्दों का क्या प्रभाव पड़ेगा ? यह सोच अपने-आप में सामाजिक व्यवहार का प्रशिक्षण है। इससे व्यक्ति दूसरों की भावनाओं को समझना सीखता है, जो किसी भी समाज के लिए बेहद जरूरी है। सोशल मीडिया के दौर में संवाद की गति तो तेज़ हुई है, लेकिन उसकी आत्मा कहीं खो गई है। ‘सीन(देखा)’ और ‘टाइपिंग…’ जैसे संकेत भले ही तत्काल प्रतिक्रिया दिखा दें, लेकिन उनमें वह आत्मीयता नहीं जो ‘प्रिय मित्र’ या “पूजनीय माता-पिता’ से शुरू होने वाले पत्रों में होती थी। तकनीक ने सुविधाएं तो दीं हैं, पर भावनाओं की गहराई छीन ली है। पत्रों का महत्व केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि ऐतिहासिक भी रहा है। इतिहास में अनेक महान व्यक्तियों के पत्रों ने युगों को प्रभावित किया है। महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, स्वामी विवेकानंद जैसे अनेक महानुभावों के पत्र आज भी प्रेरणा के स्रोत हैं। किसी म्यूजियम में आपको बहुत से आदर्श व्यक्तित्वों के पत्र पढ़ने को मिल सकते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि उनके पत्रों में विचारों की गहराई, संवेदना और समाज के प्रति जिम्मेदारी का बोध मिलता है। यह दिखाता है कि पत्र केवल व्यक्ति तक सीमित नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र तक अपनी भूमिका निभा सकते हैं। आज जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) हमारे लिए शब्द गढ़ रही है, तब यह और भी आवश्यक हो गया है कि हम ‘मानव संवेदना की भाषा’ न भूलें,जो कि पत्रों में निहित है। निश्चित ही आज के इस आधुनिक युग में एआइ हमारे लिए लेख, संदेश और उत्तर तैयार कर सकती है, लेकिन वह हमारी आत्मीयता, भावनाओं और रिश्तों की सच्ची गर्माहट को नहीं गढ़ सकती। यह कार्य केवल इंसान ही कर सकता है और पत्र लेखन उस मानवीय स्पर्श को जीवित रखने का एक सशक्त माध्यम है। इसलिए अब समय आ गया है कि हम फिर से पत्र लेखन की परंपरा को पुनर्जीवित करें और सप्ताह में एक बार किसी प्रियजन को पत्र लिखने की आदत डालें। स्कूलों में ‘पत्र दिवस’ मनाया जाना चाहिए, जहां बच्चे अपने परिवार या शिक्षकों को पत्र लिख सकते हैं। यह न केवल भाषा का अभ्यास होगा, बल्कि भावनाओं की अभिव्यक्ति का उत्सव भी साबित होगा। पत्रों के माध्यम से रिश्ते फिर से जीवंत होंगे, संवाद में गहराई आएगी, और समाज में आत्मीयता का वातावरण बनेगा, क्योंकि अंततः तकनीक चाहे कितनी भी आगे बढ़ जाए, मानव हृदय की सच्ची भाषा हमेशा शब्दों की नहीं, भावनाओं की होती है और उन्हें सबसे सुंदर रूप पत्र ही दे सकता है। अंत में यही कहूंगा कि पत्र लेखन की वापसी केवल एक पुराने अभ्यास की पुनरावृत्ति नहीं, बल्कि संवेदनशील समाज की ओर एक कदम है। वास्तव में,
पत्र लेखन एक ऐसी कला है जो मन की भावनाओं को सजीव रूप में अभिव्यक्त करती है। यह शब्दों के माध्यम से रिश्तों में आत्मीयता और संवेदना का संचार करती है। आज भले ही तकनीक ने संवाद के नए साधन दे दिए हों, पर पत्रों की गहराई अब भी अनोखी है। इसलिए पत्र लेखन की परंपरा को जीवित रखना हमारी सांस्कृतिक जिम्मेदारी भी है। तो आइए ! हम सब फिर से कागज़, कलम और दिल से लिखें शब्दों के संसार में लौटें-जहाँ हर पत्र एक पुल बने, जो दिलों को जोड़े और मानवीयता की सुगंध फैलाए।
-सुनील कुमार महला



