अलवर। नेता प्रतिपक्ष टीकाराम बोले प्रदेश में न केवल जंगल राज है बल्कि स्वास्थ्य विभाग के पैमाने का ग्राफ भी लगातार गिरता जा रहा है। राजस्थान प्रदेश में गुंडाराज तो भारतीय जनता की पार्टी के राज में पनप चुका लेकिन अगर यहां की जनता अपने स्वास्थ्य के उपचार कराने के लिए यदि अस्पताल जा रही है तो वह भी इस सरकार के कर्मचारी उनकी जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं।यह किसी विडंबना से कम नहीं है।आज प्रदेश की शासन व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा चुकी है। पूरी सरकार चुनाव में व्यस्त है और जनता पर्ची सरकार की विफलता का दंश झेलने का मजबूर है। अंधे राज में गलत ब्लड चढाने से एक गर्भवती महिला की मृत्यु हो गई है और दो अन्य प्रसूताएं निजी अस्पताल में जीवन के लिये संघर्ष कर रही हैं।
जूली ने बताया कि मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार शनिवार की रात को तीन गर्भवती महिलाओं को नीम का थाना जिला अस्पताल में प्रसव के लिये भर्ती करवाया गया था। चिकित्सकीय परामर्श के पश्चात् तीनों महिलाओं के रक्त की कमी बताये जाने पर उनके रक्त चढाने के लिये कहा गया और अस्पताल में तीनों के ग्रुप का रक्त उपलब्ध नहीं होने की बात कहे जाने पर उनके परिजनों को निजी ब्लड बैंक से रक्त लाने के लिये कहा गया। इस पर शाहपुरा रोड स्थित निजी ब्लड बैंक सीता ब्लड बैंक से लाया गया रक्त रविवार को तीनों महिलाओं के चढाने के पश्चात् तीनों ही महिलाओं की तबीयत बिगडने लगी, जिस पर उन्हें जयपुर लाया गया। इनमें से एक महिला की तो जयपुर के जनाना अस्पताल में मृत्यु हो गई और निजी अस्पताल में भर्ती दो महिलाओं में से एक के प्रसव होने के पश्चात् नवजात शिशु की मृत्यु हो गई और दोनों महिलाएं जीवन जीने के लिये संघर्ष कर रही हैं।
जूली ने कहा कि यह सरासर पर्ची सरकार की विफलता और लापरवाही का असर है। प्रदेश की जनता त्रस्त है और सरकार आलाकमान का स्तुतिगान करने में व्यस्त है। चिकित्सा विभाग सिर्फ कमेटी का गठन कर अपने कर्तव्य की इति श्री कर लेता है और सरकार की लापरवाही का खामियाजा आम जनता भुगतने को मजबूर है।
जूली ने कहा कि संक्रमित रक्त चढाने से पिछले चार दिनों में तीन महिलाओं की मौत हो चुकी है। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार की घटनाएं चार दिन पहले भी घटित हो चुकी हैं, जिनमें नीम का थाना की दो महिलाओं की इसी निजी ब्लड बैंक से लाया गया रक्त चढाये जाने के बाद मृत्यु हो चुकी है। यदि उसी दिन निजी ब्लड बैंक के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई की जाती तो सरकार की लापरवाही का शिकार हुई तीन महिलाओं और नवजात बच्चों को बचाया जा सकता था।



